बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर दो जनवरी, 1975 को स वक्त के रेल मिनिस्टर ललित नारायण मिश्रा के कत्ल से मुताल्लिक मामले में दिल्ली की एक अदालत चार लोगों को मुज़रिम करार दिया है. 39 सालों से यह मामला चल रहा था| चारों मुल्ज़िमों को 15 दिसंबर को कड़कड़डुमा कोर्ट सजा सुनाएगा. चारों को आईपीसी के सेक्शन 302 के तहत कत्ल मामले में सजा सुनाई गई है| कोर्ट ने चारों मुज़रिमों को हिरासत में भेज दिया है|
डिस्ट्रिक्ट जज विनोद गोयल ने 12 सितंबर को सीबीआई और इस कत्ल केस के चारों मुल्ज़िमों के वकीलों की दलीलें सुनने की कार्यवाही पूरी की थी| अदालत ने कहा था कि इस मामले में 12 नवंबर को फैसला सुनाया जाएगा, लेकिन बाद में इसे 8 दिसंबर के लिए मुअत्तल कर दिया गया था, क्योंकि फैसला तैयार नहीं हो सका था|
यह मामला 2 जनवरी, 1975 को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर एक तकरीब के दौरान हुए बम विस्फोट से मुताल्लिक है|उस वक्त के रेल मिनिस्टर ललित नारायण मिश्रा इस तकरीब में शामिल होने आए थे| ब्लास्ट में जख्मी हुए मिश्रा की अगले दिन मौत हो गई थी|
इस कत्ल केस के मुकदमे की सुनवाई के दौरान 200 से ज़्यादा गवाहों से पूछताछ हुई. इसमें प्रासीक्यूटर के 161 और बचाव फरीक के 40 से ज़्यादा गवाह शामिल थे| कत्ल केस में मुल्ज़िम वकील रंजन द्विवेदी को 24 साल की उम्र में आनंद मार्ग ग्रुप के चार मेम्बर के साथ मुल्ज़िम बनाया गया था |
द्विवेदी के इलावा इस मामले में संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत और गोपालजी मुल्ज़िम थे. एक मुल्ज़िम की मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी|
इससे पहले, मुलाज़्मीन ने मुकदमे का निबटारा होने में ज्यादा देरी की बुनियाद पर सारी कार्रवाई रद्द् करने के लिए आली अदालत का दरवाजा भी खटखटाया था| आली अदालत ने ही 17 अगस्त, 2012 को इनकी दरखास्त खारिज करते हुए कहा था कि 37 साल से मुकदमे की सुनवाई पूरी नहीं हो जाने की बुनियाद पर कार्रवाई रद्द् नहीं की जा सकती है|
ललित नारायण मिश्रा के कत्ल के मामले में इल्ज़ामात के छींटे उस वक्त की वज़ीर ए आज़म इंदिरा गांधी पर भी आए थे. तब इस तरह की खबरें उड़ी थीं कि इस कत्ल में इंदिरा गांधी का हाथ है| हालांकि यह बात कभी साबित नहीं हुई| यहां तक कि मुल्ज़िमों में भी इंदिरा गांधी का नाम नहीं था| लेकिन आज भी सियासी गलियारों में लोगों को यह कहते सुना जा सकता है कि इस कत्ल में इंदिरा गांधी का हाथ था|