सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रूमा लाल ने सामाजिक सुधार और लिंग सम्बन्धी कानून पर आम सहमति का इंतज़ार करने को अव्यवहारिक बताते हुए बुधवार को कहा कि कोर्ट को सक्रियता से पक्षपाती और अनुचित निजी कानून की समीक्षा हमारे संविधान के एक समान और पक्षपाती सिद्धांत को ध्यान में रख कर करनी चाहिए।
जस्टिस पाल ने कहा कि सरकार के विपरीत कोर्ट के राजनैतिक स्वभाव से निजी कानून के सुधर के प्रति विश्वसनीयता बढ़ जाती है। सामान आचार सहिंता पर विधि पब्लिक भाषण का उदघाटन करते हुए जस्टिस पाल ने कहा कि आदर्श सुधार हर निजी कानून के अंदर होने चाहिए ना की समान कानून हर एक धर्म और समुदाय पर लागू कर देना चाहिए। जबकि उन्होंने कहा मुस्लिम निजी कानून के लिंग पक्षपात को दूर करना चाहिए। या तो तीन तलाक़ और बहुविवाह जैसी पक्षपाती प्रथा को खत्म करना चाहिए या फिर यह मुस्लिम महिलाओं के लिए भी आरम्भ करनी चाहिए।
सामान आचार सहिंता को लागू करने से बहुसंस्कृति पर कोई असर नहीं होना चाहिए और कानून आर्टिकल 14 के तहत समानता और पक्षपाती कानून को सुनिश्चित करना चाहिए।
आर्टिकल 44 के अंतर्गत राज्य को सामान आचार सहिंता की सुरक्षा के लिए काम करना चाहिए और अलग अलग धर्म एवं समुदायों के निजी कानूनों को बदलने के लिए भाग लेना चाहिए। यह प्रावधान डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ़ स्टेट पालिसी में के अंतर्गत है जो किसी भी कोर्ट के द्वारा लागु नाहु किये गए हैं।
लॉ कमीशन ने जनता की राय जानने की एक अच्छी शुरुआत की। लेकिन बहुत से मुस्लिम समूहों जिसमे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड भी शामिल था ने इसका विरोध किया बहुत सी मुस्लिम औरतों ने सुप्रीम कोर्ट से इस तीन तलाक़, बहुविवाह और हलाला को असंवैधानिक घोषित करने के लिए निवेदन किया। जस्टिस पाल ने यूनिफार्म का मतलब समझाते हुए बताया कि इसको समानता के नज़रिए से देखे जाना चाहिए लेकिन समानता का मतलब हर एक समुदाय और हर एक व्यक्ति के लिए एक ही कानून का होना नहीं है।