नई दिल्ली
मर्कज़ी वज़ीर-ए-ख़ारिजा सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान पर दरपर्दा तन्क़ीद करते हुए आज दहशतगर्दी को जुनूबी एशिया को दरपेश इंतेहाई हस्सास चैलेंजस में से एक क़रार देते हुए कहा कि इस से सिर्फ़ हर मुल्क की जानिब से ये एहसास करने के नतीजे में कि दहशतगर्द अच्छा या बुरा नहीं होता मुक़ाबला मुम्किन है।
उन्होंने कहा कि तमाम दहशतगरदों को एक जैसा समझना चाहिए। उन्होंने सार्क ममालिक से कहा कि एक दूसरे के सयान्ती अंदेशों के बारे में उन्हें हस्सास होना चाहिए और किसी भी ऐसी सरगर्मी की हौसलाअफ़्ज़ाई नहीं करनी चाहिए और ना इस में मुलव्विस होना चाहिए जो पड़ोसी मुल्क की फ़लाह-ओ-बहबूद और सयानत के लिए मज़ीद हो।
उन्होंने कहा कि ऐसी सूरत में ही हम हक़ीक़ी, तआवुन पर मबनी जुनूब एशियाई सयान्ती बिरादरी तशकील दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि इनका ये तबसेरा जम्मू-ओ-कश्मीर में पाकिस्तानी अस्करीयत पसंदों के बढ़ते हुए हमलों के पेशे नज़र मंज़रे आम पर आया है जिन से एक माह से भी कम मुद्दत में 14 हिन्दुस्तानी फ़ौजी हलाक होचुके हैं।
फ़ौज और सयान्ती इदारों को यक़ीन है कि अस्करीयत पसंद सरहद पार से आए थे। मआशी फ़रोग़ और इलाक़ाई समाजी तरक़्क़ी की बात करते हुए सुषमा ने कहा कि पुरअमन और महफ़ूज़ माहौल में ही ऐसा मुम्किन होसकता है। उन्होंने कहा कि पूरे जुनूबी एशियाई इलाक़े को दरपेश इंतेहाई संगीन चैलेंजों में से दहशतगर्दी भी एक है और इसका सामना उसी सूरत में मुम्किन है जबकि तमाम इलाक़ाई ममालिक महसूस करले कि अच्छे या बुरे दहशतगर्द नहीं होते, तमाम एक जैसे होते हैं।
वो जुनूब एशियाई यूनिवर्सिटी के ज़ेर-एएहतेमाम मुनाक़िदा एक तक़रीब से ख़िताब कररही थीं। उन्होंने कहा कि जब भी दहशतगर्दी से मुक़ाबले का सवाल पैदा होता है, पाकिस्तान हमेशा अपने पसंदीदा दहशतगरदों की ताईद करता है। तहरीक तालिबान पाकिस्तान के दहशतगरदों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाती है जबकि हिन्दुस्तान के दुश्मन दहशतगर्द ग्रुप्स और दहशतगरदों को परवान चढ़ाया जाता है।
उन्होंने कहा कि पड़ोसी की हैसियत से हमें एक दूसरे के सयान्ती अंदेशों के बारे में हस्सास रहना चाहिए और ना तो ख़ुद किसी ऐसी सरगर्मी में मुलव्विस होना चाहिए और ना उसकी हौसलाअफ़्ज़ाई करनी चाहिए जो पड़ोसी मुल्क की फ़लाह-ओ-बहबूद और सयानत के लिए मज़ीद हो। उन्होंने कहा कि दहशतगरदों को महफ़ूज़ पनाह गाहें , मालिया और तर्बीयत फ़राहम करने से इनकार करके इस बात को यक़ीनी बनाया जाना चाहिए कि हम अपनी बैन-उल-अक़वामी और इलाक़ाई ज़िम्मेदारीयों की तकमील करते हैं।