सालिहीन की ख़ुशी का सबब

पस जिस को दे दिया गया इसका नामा अमल दाएं हाथ में तो वो (फ़र्त मुसर्रत से) कहेगा लो पढ़ो मेरा नामे अमल। मुझे यक़ीन था कि में अपने हिसाब को पहुँचूगा। पांचवें ये (ख़ुशनसीब) पसंदीदा ज़िंदगी बसर करेंगे, आलीशान जन्नत में, जिस के ख़ोशे झुके होंगे। (इज़न मिलेगा) खाओ और पियो मज़े उड़ाओ और ये इन आमाल का अज्र है जो तुम ने आगे भेज दिए गुज़श्ता दिनों में। (सूरतुल हाक़ा। १९ ता२४)

सालिहीन और अबरार को इनका सहीफ़ा अमल दाएं हाथ में पकड़ाया जाएगा। ये गोया इस अम्र की अलामत होगी कि ये लोग जन्नती हैं। अल्लाह तआला ने उन को बख़्श दिया है। उस वक़्त उन की मुसर्रत-ओ-शादमानी का कौन अंदाज़ा लगा सकता है। वो ख़ुशी से फूले ना समाएंगे और अपने अहबाब और अइज़्जा को दावत देंगे कि वो इनका सहीफ़ा अमल ख़ुद पढ़ लें, ताकि उन्हें तसल्ली हो जाये।

वो जन्नत जिस की शान बड़ी ऊंची होगी, फिर भी इसके ख़ोशे ऊंचे नहीं होंगे कि जन्नतियों की दस्तरस से बाहर हों या उन को तोड़ने में उन्हें ज़हमत उठानी पड़े, बल्कि नीचे झुके होंगे। खड़े, बैठे, लेटे, जिस हाल में जन्नती होंगे, उन को तनावुल कर सकेंगे।

मज़कूरा आयात में लफ़्ज़ सलफ़ इस्तेमाल हुआ है। सल्फास चीज़ को कहते हैं जो पहले भेज दी गई हो। यानी जो आमाले सालिहा यहां पहुंचने से पहले अल्लाह के नेक बंदों ने भेज दिए हैं।