सियासी जागरुकता लाकर लोकतंत्र को मजबूत करने के आंदोलन का नाम है रिहाई मंच

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गोण्डा/लखनऊ 1 फरवरी 2016। हलधर मऊ गोण्डा में रिहाई मंच के सम्मेलन को संबोधित करते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फंसाने की साजिशें फिर से शुरु करने की फिराक में सरकारें हैं। इसी साजिश के तहत पिछले दिनों संभल से बेगुनाह नौजवानों को अलकायदा के नाम पर तो लखनऊ समेत देश के दूसरे हिस्सों से आईएस के नाम पर पकड़ा जा रहा है। सबसे शर्मनाक कि सूबे की सपा सरकार में शामिल तथाकथित मुस्लिम चेहरे तक इन मसलों पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसलिए जरूरी हो जाता है कि इस चुनौती का सामना करने के लिए इसंाफ पसंद अवाम संगठित हो। रिहाई मंच इसी अभियान के तहत पूरे सूबे में संगठन निर्माण कर नाइंसाफी के खिलाफ इंसाफ के झंण्डे को बुलंद करने का प्रयास कर रहा है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जुबैर खान ने कहा कि इंसाफ के बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता। रिहाई मंच इंसाफ के लिए संघर्ष करते हुए लोकतंत्र को बचाने का काम कर रहा है। यह आंदोलन जितना व्यापक होगा लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संघ के मुजफ्फरनगर कार्यालय में शोध छात्र अनिल यादव को प्रताणित किया गया वह साबित करता है आरएसएस अपने घिनौने विचारों को छुपाने के लिए शोध छात्रों को भी प्रताणित करने पर उतारू हो गया है।

रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि इस देश व प्रदेश में आई अब तक की तमाम सरकारों ने मुसलमानों को कुछ दिया तो नहीं उल्टे जिंदा रहने के मौलिक अधिकार को भी उनसे छीनने का प्रयास कर रही हैं। इसीलिए हम देखते हैं कि सरकार चाहे जिसकी हो कभी सांप्रदायिक हिंसा के बहाने तो कभी आतंकवाद के बहाने मुसलमानों का उत्पीड़न जारी है। उन्होंने कहा कि एक षडयंत्र के तहत मुसलमानों की इस हालत के लिए उनकी अशिक्षा और बेरोजगारी को ही जिम्मेदार बताया जा रहा है। जबकि इस समस्या की असल वजह मुसलमानों में सियासी जागरुकता का न होना है। अल्पसंख्यकों में सियासी जागरुकता लाकर लोकतंत्र को मजबूत करने के आंदोलन का नाम रिहाई मंच है।

इंसाफ अभियान के महासचिव और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता दिनेश चैधरी ने कहा कि इस दौर में सबसे ज्यादा हमला दलितों और मुसलमानों पर है। लेकिन ब्राह्नमणवाद के खिलाफ नारा लगाने वाली पार्टी जहां उसी ब्राह्नमणवादी एजेण्डे को लागू कर रही है तो वहीं साप्रदायिकता से लड़ने के नाम पर मुसलमानों को वोट बटोरकर सत्ता में आई सपा ने अपने कार्यकाल में यूपी में दंगाईयों को खुली छूट देकर सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिलाया। लेकिन जिस तरह दलित छात्र रोहित वेमुला जिसे याकूब मेमन से लेकर मुजफ्फरनगर जैसे सवालों को उठाने की वजह से आत्महत्या करनी पड़ी और उसके बाद जिस तरीके से अंबेडकर विश्वविद्यालय में दलित छात्रों द्वारा मोदी गो बैक का नारा दिया गया, उसने साफ कर दिया है कि वैचारिक आधार पर दोनों की एकजुटता बन रही है।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि इंसाफ के सवाल को लेकर जिस तरीके से पूरे सूबे में रिहाई मंच की कमेटियों को गठित करने के लिए अवाम आगे आ रही है वह साबित करता है कि खुफिया एजेंसियों के सांप्रदायिक खेल को मुसलमान अब समझने लगा है और अब वह डरने के बजाए लड़ने के लिए तैयार हो रहा है। उन्होंने अपील की कि भविष्य की राजनीति को बदलने की क्षमता रखने वाले मुसलमानों में आए इस बदलाव के बयार को और संगठित करने के लिए लोग अपने यहां रिहाई मंच की कमेटियों को कायम करें।
रिहाई मंच ने आज हलधर मऊ गोण्डा में सम्मेलन कर 32 सदस्यीय संयोजन समित गठित की। जिसके संयोजक एडवोकेट रफीउद्दीन खान, सह संयोजक एडवोकेट हादी खान व आसिफ खान आबू बने।

सम्मेलन में आरिफ खान, अरशद खान, अब्दुल हादी, मुहम्मद अरशद खान, वकास खान, जकरिया खान, रशीद अहमद, अकमल खान, समीउद्दीन खान, गुलाम मुहम्मद, मजहरुल खान, फखरुल इस्लाम खान, मोहम्मद अहमद खान, मुशीर खान, कफील खान, हकीक खान, अनवार अहमद खान, एडवोकेट अब्दुल मुत्तलिब खान, एडवोकेट मजहर हुसैन खान, डा0 एमएस खान, डा0 हबीबुल्लाह, मुहम्मद अबरार, आदम खान, फरीद खान, नोमान खान, अरबाज खान, मो0 स्वालेह खान, मो0 अकरम खान, खतीबुल्लाह खान, साहिल खान, इंतखाब आलम खान, मो0 शुऐब खान, असहाब खान, गुलाम मोहम्मद खान, हकीकुर रहमान खान, खलील, मो0 यासर खान, फखरुल हसन खान, महबूब आलम खान, सूफियान खान, नौशाद अली, अबू कलाम खान, मोहसिन खान, हाफिज अलाउद्दीन खान, डाॅ0 अबुल आला खान, डाॅ0 समीउल्लाह खान, सुल्तान खान, यावर खान, फहद आलम खान, नूर आलम खान आदि मौजूद थे।