बी जे पी के साबिक़ सदर नशीन गडकरी ने मर्कज़ी काबीना के इस फ़ैसले की ताईद की जहां सियासी पार्टीयों को कुछ राहत देने केलिए क़ानून हक़ मालूमात में तरमीम का इशारा दिया गया था।
इस मौके पर अपने ख़्यालात का इज़हार करते हुए उन्होंने कहा कि सियासी पार्टीयां हुकूमत के मालिया की मरहून-ए-मिन्नत नहीं हैं। लिहाज़ा सियासी जमातों को आर टी आई के दायरा कार में लाना मुनासिब नहीं है और इस बिल को पार्लियामेंट में पेश किया जाना एक अच्छी अलामत है।
ऐसे मुक़ामात जहां-जहां हुकूमत के अतायात हुकूमत के बजट से अलाहदा तौर पर मुख़तस की गई रक़ूमात जाती हैं आर टी आई इन इलाक़ों के लिए बेहतर है। जब उन से ये कहा गया कि आर टी आई क़ानून में तरमीम से किया सियासी जमातों में माली तौर पर साफ सुथरी नहीं होगी ?
उस का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अगर ऐसी शिकायतें मिलती हैं कि सियासी जमातें फंड्स का ग़लत इस्तिमाल कररही हैं तो आर टी आई के दायरे कार में लाए बगै़र उनके ख़िलाफ़ तहक़ीक़ात करवाई जा सकती है। याद रहे कि जुमेरात को नई दिल्ली में वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह की सदारत में एक जलसा मुनाक़िद हुआ था जहां काबीना से सियासी पार्टीयों को आर टी आई के दायरे कार में ना लाने की ताईद की जबकि इस क़ानून में शफ़्फ़ाफ़ियत केलिए तरमीम मुश्किल है।
यहां इस बात का तज़किरा दिलचस्प होगा कि काबीना का ये फ़ैसला सैंटर्ल इन्फ़ार्मेशन कमीशन के इस हुक्मनामा के सिर्फ़ दो माह बाद सामने आया है जहां छः सियासी पार्टीयों बी जे पी कांग्रेस नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी कमीयूनिस्ट पार्टी आफ़ इंडिया कमीयूनिस्ट पार्टी आफ़ इंडिया ( मारकससट ) और बहुजन समाज पार्टी को आर टी आई के दायरे कार में लाने की बात कही गई थी।
जून को सी आई सी के इस हुक्मनामा में वाज़ह किया गया था कि मर्कज़ी हुकूमत ने मज़कूरा बाला तमाम छः सियासी पार्टीयों को काबिल लिहाज़ तौर पर फंड्स सरबराह किए हैं लिहाज़ा उन पार्टीयों को अपनी अवामी साख बनाए रखने के लिए पब्लिक इन्फ़ार्मेशन ऑफीसर्स मुक़र्रर करने की ज़रूरत है।