सियासी हो या आम, इफ़्तार पार्टी का आयोजन हलाल पैसों से होना चाहिए- फतेहपुरी मस्जिद इमाम

फतेहपुर सिकरी मस्जिद के इमाम ने कहा कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का इफ्तार देना सियासी कदम होता है। यह इफ्तार की तुलना में समाजी कार्यक्रम ज्यादा होता है। जहां तक बात रही उनके इफ्तार नहीं देने की तो देखिए, सियासत तो बदलती रहती है।

उन्हें अभी लगता है कि यह माहौल इफ्तार देने का नहीं है तो वे नहीं दे रहे हैं। हो सकता है कि एक-दो साल बाद उनके सलाहकार उन्हें सलाह दें तो वह इफ्तार फिर से देने लगेंगे। इनका मतलब सियासी होता है, सबाब (पुण्य) कमाना नहीं होता है। इन्हें जब लगेगा कि इफ्तार देने की जरूरत है तब वे इफ्तार देने लगेंगे।

वे अपने वोटों और समर्थकों और सियासी नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर इफ्तार देते हैं। पहले बहुत से उलेमा ने फतवे भी दिए हैं कि राजनीतिक इफ्तार में नहीं जाना चाहिए क्योंकि उनका मकसद सबाब कमाना नहीं होता है, बल्कि सियासी होता है। बेहतर तो यही है कि सियासी पार्टियों की इफ्तार दावतों में नहीं जाना चाहिए क्योंकि यह सियासी मामले हैं।

शाम के वक्त रोजेदार जब रोजा खोलते हैं, उसे इफ्तार कहते हैं। किसी रोजेदार को इफ्तार कराने का उतना ही सबाब है जितना रोजे रखने का। यह सबाब का काम है। भले ही आप इफ्तार में एक खजूर क्यों न खिलाएं, मगर अहम बात यह है कि यह इफ्तार जायज कमाई से दिया जाना चाहिए।

सारी राजनीतिक पार्टियों का एक ही मामला है और कोई भी पार्टी अलग नहीं है। इन सब पार्टियों के अपने-अपने एजेंडे होते हैं और ये उसी पर काम करते हैं, और उसी हिसाब से यह इफ्तार देने या नहीं देने का फैसला करते हैं।

उनका मकसद कभी भी मजहबी नहीं होता है। उनका एक ही मकसद होता है, वह है राजनीति। राजनीतिक पार्टियां इफ्तार का सियासी इस्तेमाल करती रही हैं। इसलिए आम मुसलमान पर इनके इफ्तार देने से या नहीं देने से कोई असर नहीं पड़ता है।

इन दलों के कुछ कार्यकर्ता मुसलमान भी हैं। इसके अलावा यह इफ्तार चुनाव देखकर दिए जाते हैं, कहां पर मुसलमानों की जरूरत है और कहां पर नहीं है, यह देखा जाता है।

यह सिर्फ राजनीतिक एजेंडे के तहत होते हैं। ये इफ्तार दे या न दें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये लोग कभी रूमाल गले में डाल लेते हैं तो कभी सिर पर टोपी पहन लेते हैं। यह सब नाटक है। इनके इफ्तार देने से कोई फर्क नहीं पड़ता है और आम मुसलमान इससे प्रभावित नहीं होते हैं। इन्हें सियासी नजर से देखा जाना चाहिए।

साभार- ‘इंडिया टीवी डॉट कॉम’