मुंबई, २९ दिसम्बर: (एजेंसीज़) बदउनवानी के हस्सास मौज़ू को अवामी प्लेट फ़ार्म पर लाने अन्ना हज़ारे कामयाब ज़रूर हुए हैं लेकिन ये कहना भी मुबाल्ग़ा आराई नहीं होगी कि बदउनवानी या पैसे के गै़रक़ानूनी लेन देन पर अन्ना हज़ारे ने जो तहरीक चला रखी है, वो दरअसल उन के शख़्सी नुक़्ता-ए-नज़र की अक्कासी करती है।
एक ऐसी तहरीक जो हीरो वर्शिप का शिकार होती नज़र आरही है, वहां बदउनवानी के मौज़ू पर मज़ीद तफ़सीली मुबाहिस की ज़रूरत थी। इन ख़्यालात का इज़हार फ़िल्मसाज़-ओ-हिदायतकार और समाजी कारकुन महेश भट्ट ने किया।
जमईता अलालमाए महाराष्ट्रा की जानिब से मुनाक़िद की गई एक प्रेस कान्फ़्रैंस में कल उन्हों ने शिरकत की थी। महेश ने मज़ीद कहा कि बदउनवानीयों के ख़िलाफ़ तहरीक अपनी जगह लेकिन फ़िर्कावाराना बदउनवानी और समाज के पिछड़े और महरूम तबक़ा का ज़िम्मेदार कौन है?
यहां इस बात का तज़किरा भी ज़रूरी है कि महेश भट्ट ने माह अगस्त में भी अना हज़ारे की तहरीक पर अपने इख़तिलाफ़ात का इज़हार किया था जिस पर उन्हें अना हज़ारे के हामीयों की नाराज़गी भी मूल लेनी पड़ी थी। उन्हों ने एक बार फिर अपनी बात दुहराते हुए कहा कि बदउनवानी से मुताल्लिक़ मुबाहिसा को मज़ीद वुसअत देने की ज़रूरत है।
उन्हों ने कहा कि फ़िर्कावाराना बदउनवानी दरअसल समाजी मआशी नाइंसाफ़ी का नाम है। हमारी सियोल सोसाइटी में दलितों और कबायलियों की नुमाइंदगी क्यों नहीं है। अक़ल्लीयतों और कबायलियों को भी इस तहरीक का हिस्सा होना चाहिए। शायद मैं वाहिद हिंदूस्तानी हूँ जो अन्ना हज़ारे से इख़तिलाफ़ रखता हूँ। एक ऐसा क़ाइद जो गानधियाई होने का दावा करते नहीं थकता, अगर फ़िर्कावाराना बदउनवानी के मौज़ू पर लब कुशाई नहीं करता तो वो मेरा नुमाइंदा नहीं हो सकता।
महेश भट्ट ने सच्चर कमेटी का भी हवाला दिया जिस में गुज़श्ता 63 साल से जारी इमतियाज़ी रवैय्ये , जांबदारी और तास्सुब का तज़किरा किया गया है तो मेरे ख़्याल में तहफ़्फुज़ात का फ़ैसला एक अच्छा फ़ैसला है।