नई दिल्ली: याकूब मेमन की फांसी की सजा पर आखिरी फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि सिर्फ उसे ही फांसी क्यों दी गई, बम रखने वाले 10 मुजरिमों को क्यों नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि याकूब ही अहम साजिशकार था, बाकी 10 मुजरिम जरूर थे लेकिन याकूब के इशारे पर काम कर रहे थे। एक दूसरे की मौत ट्रायल के दौरान ही हो गई थी। यही वजह थी कि बाकियों की सजा को उम्र कैद में बदल दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याकूब के वकील जसपाल सिंह ने दलील पेश की कि उसका कोई क्रिमिनल रेकॉर्ड नहीं था, साल1996 से डिप्रेशन का शिकार था और 19 साल उसने जेल में गुजार दिए थे। यह दलील इतनी मजबूत नहीं थी कि याकूब की सजा में कोई नरमी बरती जाती।
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि मामले के बम प्लांट करने वाले मुजरिमों की वकील फरहाना शाह ने जो सबूत और दलील पेश किए, वे उनकी सजा में रियायत करने के काबिल थे। शाह ने कहा कि खातियों को अपने किये का पछतावा था, वे गरीब थे, उनका कोई क्रिमिनल रेकॉर्ड नहीं था, ब्लास्ट के वक्त उनमें से कइयों की उम्र काफी कम थी और उन्होंने जांच में पूरी मदद भी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘अपील करने वाले सभी 10 मुजरिम समाज के निचले तबके के थे और उनमें से कइयों के पास पेट पालने के लिए नौकरी नहीं थी। अपने-अपने हालातों की वजह से ये लोग उन साजिशकार के मोहरे बन गए थे, जिनका छिपा हुआ मकसद लोगों में दहशत फैलाना था।’ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि इन लोगों का मकसद याकूब जैसा नहीं था, इसीलिए उन्हें फांसी की सजा नहीं सुनाई गई।