सीमा आंध्र में इंतिख़ाबी मुहिम से “बिरादरान” क्यों हुए दूर?

हिंदुस्तानी सियासत में नजूमियों को ख़ास अहमियत हासिल है। सियासतदां बाबाओं आमिलों और स्वामियों के अड्डों के चक्कर काटते रहते हैं। हैरत की बात ये है कि ये ख़ुद साख़्ता बाबाएं अवाम को बेवक़ूफ बनाने वाले सियासतदानों को भी बेवक़ूफ़ बनाकर छोड़ते हैं।

हमारे मुल्क में एक कहानी बहुत मशहूर है। अलाउद्दीन का चिराग़ इस कहानी में चिराग़ घिसते ही एक जिन अचानक मंज़रे आम पर आकर हुक्म मेरे आक़ा कहता है लेकिन इस का अंदाज़ इस क़दर भयानक होता है कि बेचारा अलाउद्दीन कुछ देर के लिए डर जाता है।

हैबत के मारे उस पर कपकपी तारी हो जाती है लेकिन जो जादूगर उसे जादूई ग़ार में बंद रखते हुए जादूई चिराग़ और अँगूठी हासिल करने का ख़ाहां होता है उसे नाकामी होती है जब कि इला उद्दीन इस चिराग़ के ज़रीए जिन से मुख़्तलिफ़ काम करवाता रहता है। रियासत की सियासी जमातों में एक जिन बहुत ज़्यादा मशहूर है।

अगर्चे वो बेचारा एक अवामी नुमाइंदा है इस के बावजूद छोटे भाई और बड़े भाई जब भी चिराग़ घिसते हैं तो वो हुक्म मेरे आक़ा कहते हुए ख़िदमात अंजाम देने के लिए तैयार हो जाता है।

अब ये सियासी जिन सीमा – आंध्र में अपनी पार्टी की इंतिख़ाबी मुहिम का सितारा मुहिम जो बन गया है। इस ज़िमन में सियासी जमातों के क़ाइदीन अब इस्तिफ़सार करने लगे हैं कि छोटे भाई और बड़े भाई जो तेलंगाना ख़ासकर शहर में पार्टी की इंतिख़ाबी मुहिम में ख़ुद को मर्कज़ तवज्जा बनाए हुए थे। आख़िर सीमा- आंध्र की इंतिख़ाबी मुहिम में सरगर्मी क्यों नहीं दिखाया जब कि वहां लोक सभा की 25 और असेंबली की 175 नशिस्तों के लिए रायदही होने वाली है। कांग्रेस का वहां कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।

सियासी तजज़िया निगारों का कहना है कि असेंबली के 2241 और लोक सभा के लिए 333 उम्मीदवारों की क़िस्मत का फैसला 17 मई को हो जाएगा लेकिन जो जमात या इत्तिहाद शिकस्त से दो-चार होगी वो तारीख का एक हिस्सा बन जाएगी।