सीरिया यमन में ज़ंग की नीतियों ने सऊदी अरब में आर्थिक संकट पैदा किया, बजट बिगाड़ा!

तेल के अपार स्रोतों से संपन्न होने के बावजूद आले सऊद शासन की ग़लत नीतियों के कारण इस देश को बुरी आर्थिक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति हर साल पिछले साल से बदतर होती जा रही है और इधर एक दो वर्षों में यह अत्यंत भयावह हो गई है।

सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ के नरेश बनने के बाद से सऊदी अरब आर्थिक दृष्टि से अधिक कमज़ोर हो गया है और उसे विकास में कमी, उत्पादन में कमी, मुद्रास्फ़ीति की दर में वृद्धि और युवाओं के बीच बेरोज़गारी बढ़ने जैसी समस्याओं का सामना है।

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 में सऊदी अरब का आर्थिक विकास शून्य था जो इस देश के इतिहास में अभूतपूर्व है। वर्ष 2018 में सऊदी अरब के बजट में 116 अरब डाॅलर का घाटा रिकाॅर्ड किया गया जबकि यह घाटा वर्ष 2016 में 84 अरब डाॅलर था।

इसी तरह हम देखते हैं कि सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ के इस देश का नरेश बनने के बाद पिछले 25 बरसों में पहली बार सऊदी अरब को बजट घाटे की भरपाई के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंकों से ऋण लेने पर मजबूर होना पड़ा।

ब्रिटिश समाचारपत्र फ़ाइनेंशियल टाइम्ज़ के अनुसार सऊदी अरब ने विश्व बैंक को लगभग 12 अरब डाॅलर के ऋण का आवेदन दिया है। पत्र ने एक सऊदी अधिकारी के हवाले से लिखा है कि यमन पर हमले में सऊदी अरब अब तक 120 अरब डाॅलर से अधिक झोंक चुका है।

यमन के ख़िलाफ़ सऊदी अरब के युद्ध में आले सऊदी को भारी राजनैतिक, आर्थिक और सामरिक क़ीमत चुकानी पड़ी है। यह एेसी स्थिति में है कि जब विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के मैदान में भी सऊदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान ने डील आफ़ द सेंचुरी के अंतर्गत अपने देश के लोगों की संपत्ति भी अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के हवाले कर दी है।

ट्रम्प ने इस योजना के अंतर्गत अरब नेटो बनाने की बात की है जिसके तहत सऊदी अरब के इतिहास में हथियारों का सबसे बड़ा समझौता हुआ। इसी समझौते के बाद से सऊदी अरब की आर्थिक स्थिति तेज़ी से बिगड़ती चली गई।

इस डील का उद्देश्य अरब देशों को लूटना और उन्हें संसार के सबसे ऋणी देशों में बदलना है और इसका सबसे पहला शिकार ख़ुद सऊदी अरब बन रहा है।