मंसूबा बंदी कमीशन के नायब सदर नशीन मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने आज कहा कि सी ए जी रिपोर्टस मुफ़ीद मवाद होते हैं लेकिन पार्लियामेंट की राय मुक़द्दम होनी चाहिए जैसा कि फ़ाज़िल अदालत ने कहा है। उन्हों (दो सुप्रीम कोर्ट जजस) ने अपने दाइरा-ए-कार से आगे बढ़ कर कहा है कि सी ए जी एक दस्तूरी अथार्टी है।
उसकी रिपोर्ट मुफ़ीद मवाद है। इस पर पी ए सी (पब्लिक अकाउंट कमेटी) को ग़ौर करना चाहिए। फिर पी ए सी की राय होती है जो मुक़द्दम रहती है और इस के बाद पार्लियामेंट की राय सामने आना चाहिए, अहलुवालिया ने यहां फ़िक्की (एफ़ आई सी सी आई) के 86 वीं सालाना उमूमी इजलास से ख़िताब करते हुए ये बात कही।
उन्होंने मज़ीद वज़ाहत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला जहां दो जजों ने ये तास्सुर ज़ाहिर किया कि उन्होंने सहाफ़त में ऐसा रुजहान पाया है कि कम्पटरोलर ऐंड आडिटर जनरल आफ़ इंडिया (सी ए जी) रिपोर्ट की बातों को नाक़ाबिल चैलेंज सच्चाई के तौर पर देखा जाता है। अहलुवालिया ने कहा, हमारे पास एसा पुरज़ोर रुजहान है कि जो कुछ भी मिल सके इसे हासिल किया जाये जो (सी ए जी रिपोर्ट में) कलीदी मालूम होता है और फिर बात आगे बढ़ती है।