सुधा टॉकीज़ लाइब्रेरी के अक्ब(पीछे) में गैर मुस्लिम के मकानात में क़ुबूर!

नुमाइंदा ख़ुसूसी- अख़बार सियासत के ज़रीये रोज़ बरोज़ औक़ाफ़ी जायदाद , मसाजिद और क़ब्रिस्तानों के ताल्लुक़ से उसे चौंका देने वाले इन्किशाफ़ात सामने आ रहे हैं जिन का इस से पहले तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता था । और ये सिलसिला दराज़ होता जा रहा है । थमने का नाम नहीं है । ऐसे ही एक और वाक़िया से आप को फिर हैरत में डाला जाता है कि शाह अली बंडा रूबरू (सामने)सुधा टॉकीज़ , लाइब्रेरी के बिलकुल अक्ब(पीछे) में गैर मुस्लिमों की कसीर आबादी वाला मुहल्ला जिसे हस्सास इलाक़ा माना जाता है । इस में मकान नंबर 23-5-861/16 के बिलकुल मुत्तसिल एक गैर मुस्लिम के मकान में 15 क़ुबूर मौजूद हैं । जो देखने से ऐसी लगती हैं कि तक़रीबा 100 साला क़दीम होंगी । जिन में से 10 क़ब्रें अच्छी हालत में हैं और माबक़ी 5 तक़रीबन ख़स्ता हो चुकी हैं ।

नीज़ एक क़ब्र पर एक मूर्ती भी रखी हुई है इस घर में तीन ख़ानदान तीन अलग अलग कमरों में रहते हैं । इस घर तक पहुंचने के लिये पतली पतली तीन गलियों से हो कर जाना पड़ता है । मेन रोड से अंदाज़ा ही नहीं किया जा सकता कि इतनी अंदर गलियों में जाकर किसी मकान के अंदर इतनी क़ब्रें होंगी । महिकमा बलदिया का एक फ़र्ज़शनास और इमानदार मुलाज़िम हमारा तआवुन ना करता तो इस मकान तक रसाई मुम्किन ही नहीं थी जिस की तफ़सील ये है कि बलदिया के एक मुलाज़िम जिन का नाम देवेंद्र है । दफ़्तरी काम के सिलसिले में इस गली में इन का जाने का इत्तिफ़ाक़ हुआ । जैसे ही वो इस मकान में दाख़िल हुए तो इस के अंदर मुस्लमानों की 15 क़ुबूर को देख कर हैरतज़दा रह गए ।

उन के वालिद जो तक़रीबा 72 साल के हैं । उर्दू से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं । रोज़नामा सियासत ज़ेर मुताला रहता है । और वक़फ़ा- वक़फ़ा से औक़ाफ़ी जायदाद के तहफ़्फ़ुज़ के हवाले से रोज़नामा सियासत में आ रही रिपोर्ट अपने साहब ज़ादे को सुनाते रहते हैं । इस पस-मंज़र में इस ऑफीसर ने अपने वालिद से इस हैरत अंगेज़ वाक़िया का तज़किरा किया तो उन के वालिद ने रोज़नामा सियासत को बज़रीया फ़ोन इत्तिला दी और साथ ही कहा कि आप मुआइना के लिये आएं । मेरा बेटा आप की मुकम्मल रहनुमाई भी करेगा । पूरी मदद भी , तयशुदा वक़्त के मुताबिक़ जब उन के हमराह हम मज़कूरा मकान के मुआइना के लिये गए तो इस ऑफीसर ने हमारे मुआमला को मख़फ़ी रखने के लिये अहल मकान के सामने ये ज़ाहिर किया कि ये हमारे ही महिकमा से ताल्लुक़ रखते हैं ताकि इस ख़ानदान को किसी तरह का शक ना हो ।

इस हीले और बहाने के बाद ही हमें मुआइना का मौक़ा मिला । इस के बावजूद जब हम क़ुबूर की तस्वीरकुशी करने लगे तो आस पास की 15 ता 20 ख़वातीन(ख्वातीन) जमा हो कर एतराज़ करने लगीं । तो हम ने वहां से फ़ौरी निकलने में ही आफ़ियत महसूस की । बादअज़ां हम ने वक़्फ़ बोर्ड का रेकॉर्ड तलाश किया तो अल्हम्दुलिल्ला इस क़ब्रिस्तान का वक़्फ़ बोर्ड में रेकॉर्ड मौजूद मिला । नीज़ ये यक़ीन के साथ कहा जा सकता है कि ये क़ब्रिस्तान काफ़ी वसीअ रहा होगा । आहिस्ता आहिस्ता क़ुबूर को मिस्मार कर के मकानात तामीर कर दीए गए । और इस बात का भी क़ुवी इमकान है कि ये क़ुबूर भी चंद रोज़ की मेहमान हूँ जो हमेशा के लिये नज़रों से ओझल हो सकती हैं और उन पर भी कोई मकान तामीर किया जा सकता है ।

ये क़ब्रें तक़रीबा 100 गज़ ज़मीन पर मुश्तमिल हैं । क़ारईन ! इस वाक़िया से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब कोई काम अच्छे मक़ासिद और नेक नियत से किया जाता है तो क्या अपने क्या पराए सभी मदद के लिये आगे आते हैं । जिस की वाज़िह मिसाल मक़ामी बलदिया के ऑफीसर जनाब देवेंद्र हैं । जिन की कोशिश से ही ये मुआमला मंज़रे आम पर आ सका । लेकिन इस ऑफीसर के बाद अब हमारी क्या ज़िम्मेदारी बनती है हर कोई बख़ूबी जानता है । देवेंद्र ने अपने अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि एक ना एक दिन हमें ख़ुद इस ज़मीन के अंदर जाना है और अपने किये का जवाब देना है । फिर क्यों अपने बुज़ुर्गों और बड़ों की क़ब्रों को मिटा कर मकानात तामीर करते हैं ।

और मुर्दों को भी चैन से रहने नहीं दिया जाता । मज़ीद कहा कि मेरा तो ख़्याल है कि हमारे ऊपर मुसीबत हमारे आमाल ही की वजह से आती हैं । क़ारईन ! हमारी बात से आप इत्तिफ़ाक़ करेंगे कि ये तो ग़ैरों का मुआमला था कि हमारी क़ुबूर को मिस्मार कर के मकानात तामीर कर लिए । लेकिन क्या हमारे अपनों ने भी किया कुछ कम किया है । हमारे अपनों ने भी कई मकानात और मुहल्ले क़ब्रिस्तानों की अराज़ी (भूमी ) पर क़ायम कर दीए । अफ़सोस का मुक़ाम है मगर मालूम रहे कि अल्लाह पाक उन लोगों से भी सवाल करेंगे जो बुराई को देख कर ख़ामोशी इख़तियार कर लेते हैं और ये कहते हैं कि ये उन का ज़ाती मुआमला है हमें क्या लेना , शरीयत की रोशनी से ये बात साबित है कि ऐसे अफ़राद की भी पकड़ होगी ।नीज़ वक़्फ़ बोर्ड की आसानी के लिये हम ने मकान नंबर और पता का हवाला दिया है ।

अब देखना ये है कि वक़्फ़ बोर्ड कुछ कार्रवाई करता है यह ख़ामोशी इख़तियार कर के उन लोगों को मज़ीद क़ुबूर मिस्मार कर के मकानात तामीर करने का मौक़ा फ़राहम करता है । क़ारईन ! अगर हम इसी रिपोर्टों को ये सोच कर सामने ना लाएं कि अब ये आम सी बात है । ऐसे सैंकड़ों वाक़ियात होते रहते हैं तो हम में और बेहिसों में क्या फ़र्क़ रह जाएगा । इस के साथ शहर में ऐसे लोगों की भी एक टीम होनी चाहीए जो मुक़ामी ज़बान से बख़ूबी वाक़िफ़ हों और ऐसे लोगों के पास जाकर उन के मज़हब के हवाले से ये बताया जाय कि कोई भी मज़हब ये इजाज़त नहीं देता कि दूसरे मज़ाहिब की इबादतगाहों और क़ब्रिस्तानों पर क़बज़ा कर के उन पर मकानात तामीर किये जाएं इस तरह काम करने की ज़रूरत है । इन्शा अल्लाह इस के बेहतर नताइज सामने आएंगे।