सुप्रीम कोर्ट की हिदायात के बावजूद बाग़े आम्मा में मज़हबी ढांचा की तामीर

सुप्रीम कोर्ट ने गुज़िश्ता साल एक तारीख़ी रोलिंग देते हुए मर्कज़ी और रियास्ती हुकूमतों को हुक्म दिया था कि किसी भी सरकारी अराज़ी पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिर्जाघर या दीगर मज़हबी ढांचा तामीर करने की इजाज़त ना दें।

अदालते उज़्मा ने क़ीमती सरकारी आराज़ीयात पर मुफ़ाद परस्त और नाआक़बत अंदेश अनासिर की जानिब से बिना ख़ौफ़ो ख़तर किए जा रहे नाजायज़ क़ब्ज़ों का संजीदा नोट लेते हुए सरकारी आराज़ीयात पर मज़हबी ढाँचों की तामीर पर एक तरह से पाबंदी आइद करदी लेकिन नुक़्स अमन के ख़ाहां और क़ानून के दुश्मनों ने सुप्रीम कोर्ट की हिदायात को नजर अंदाज़ कर दिया। बाग़े आम्मा और फिर बाग़े आम्मा (पब्लिक गार्डन) की हैदराबाद में अपनी एक मुनफ़रद पहचान है।

क़ल्ब शहर में वाक़े इस बाग़ को 1846 में आसिफ़ साबह नवाब मीर उसमान अली ख़ान सिद्दीक़ी बहादुर ने तामीर करवाया था। चुनांचे इस बाग़ को हमारे शहर का क़दीम तरीन बाग़ होने का एज़ाज़ भी हासिल है। इस बाग़ में हुज़ूर निज़ाम के दौर में 1920 के दौरान एक ग़ैर मामूली म्यूज़ीयम भी क़ायम किया गया जिसे पुलिस एक्शण के बाद आंध्र प्रदेश स्टेट म्यूज़ीयम का नाम दे दिया गया।

इस तारीख़ी बाग़े आम्मा में जानबूझ कर गै़र क़ानूनी तौर पर मंदिरें तामीर करने की मुसलसल कोशिश कर रहे हैं। आला हुक्काम और क़ानून नाफ़िज़ करने वाली एजेंसीयों की ख़ामूशी के नतीजे में उन के हौसले इस क़दर बुलंद हो गए हैं कि अब वहां गै़र क़ानूनी तौर पर 3 ता 4 मज़हबी ढाँचों की तामीर शुरू हो गई है।

उस की ताज़ा तरीन मिसाल आसिफ़ टेनिस कोर्ट के बिलकुल क़रीब गै़र क़ानूनी तौर पर तामीर की जा रही एक इबादतगाह है अब देखना ये है कि हुक्काम और क़ानून नाफ़िज़ करने वाली एजेंसीयां बाग़े आम्मा में गै़र क़ानूनी मज़हबी ढांचा के मुआमला में सुप्रीम कोर्ट की हिदायत पर अमल आवरी को यक़ीनी बनाती हैं या फिर ऐसे अनासिर की हौसला अफ़्ज़ाई करती हैं। abuaimalazad@gmail.com