सुप्रीम कोर्ट ने आज सहारा सरबराह सुबराता राय को बैरून-ए-मुल्क सफ़र के लिए उबूरी अहकाम जारी करने से ये कह कर इनकार कर दिया कि सहारा ग्रुप अगर अदालत के से पहले जारी करदा हुक्मनामा में तरमीम का ख़ाहिशमंद है तो वो एक नई जायज़ा दर्ख़ास्त का इदख़ाल करें ताकि पहले से मुल्क से बाहर ना जाने के अदालती हुक्म पर नज़रसानी की जा सके।
जस्टिस के बी राधा कृष्णन और ए के सीकरी पर मुश्तमिल एक बेंच ने जहां इस मुआमला को सहारा के वकील ने पेश किया था, ये कह कर उबूरी अहकाम जारी करने से इनकार कर दिया कि सहारा ग्रुप को इस केलिए एक ताज़ा दर्ख़ास्त देना पड़ेगा अगर वो इस बात के ख़ाहिश् हैं कि अदालत अपने से पहले जारी किए गए हुक्मनामा में तबदीली करे।
सहारा ग्रुप की नुमाइंदगी करने वाले सीनियर ऐडवोकेट सी ए सुंदरम ने मिसाल पेश किया कि वो मुअज़्ज़िज़ अदालत से हुक्मनामा पर नज़रसानी केलिए नहीं कह रहे हैं बल्कि इस जानिब मुअज़्ज़िज़ अदालत की तवज्जो करवाना चाहते हैं जहां फ़ैसलों में फर्क पाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की वैब साईट पर दिए गए फ़ैसला और खुली अदालत के फ़ैसले में फर्क है।
अलबत्ता सुंदरम के मिसाल से बेंच मुतमइन नहीं हुई और सिर्फ़ इतना कहा कि आप को जायज़ा दर्ख़ास्त का देना ही पड़ेगा और सिर्फ़ उसी सूरत में बेंच दिए गए हुक्मनामा पर नज़रसानी करसकती है। याद रहे कि सहारा ग्रुप ने कल अपेक्स अदालत से रुजू होकर ये दावा किया था कि इसके 29 अक्टूबर को जारी किए गए हुक्मनामा में ग़लती है जहां राय पर उस वक़्त तक हिंदुस्तान से बाहर जाने पर पाबंदी आइद की गई थी जब तक वो अपनी इमलाक जिस का तख़मीना 20,000 करोड़ रुपये है, की डीड सेबी के हवाले नहीं करदेते।