हैदराबाद 11 मार्च (नुमाइंदा ख़ुसूसी) शहर के चंद मसरूफ़ तरीन बाज़ार ऐसे हैं, जहां ग़ैर समाजी अनासिर, पहलवान की पुश्त से दादागिरी करने वाले अफ़राद पुलिस और पुलिस मुख़्बिर ग़रीब ब्योपारियों से ज़बरदस्ती रक़म वसूल करते हैं, वर्ना बाज़ार में ठहर कर कारोबार करना उन ग़रीब लोगों के लिए मुश्किल बना दिया जाता है।
जब समाज में अच्छे काम होते हैं, कोई महकमा चाहे, वो पुलिस हो या बलदिया अच्छी कारकर्दगी का मुज़ाहरा करता है तो उस की सताइश की जानी चाहीए, लेकिन ग़रीबों, मासूमों, बेकसूरों और छोटे मोटे कारोबार करने वालों का अगर ख़ून चूसा जाता है तो इस तरह के अनासिर को बेनकाब करने और उन के स्याह चेहरों पर चढ़े हुए सफ़ेद नक़ाब को अपने क़लम और तहरीरों के ज़रीए नोच कर निकाल फेंकना एक सहाफ़ी का फ़रीज़ा है।
क़ारईन! हम ने शहर के एक इंतिहाई मसरूफ़ तरीन बाज़ार सुलतान बाज़ार कोठी का दौरा किया। दफ़्तर सियासत को इस बात की शिकायात वसूल हुई थीं कि मुक़ामी पहलवान एक मख़सूस सयासी जमात से ताल्लुक़ रखने वाला लीडर, मुक़ामी पहलवान के पालतू आदमी, ट्रैफ़िक पुलिस और पुलिस मुखबिरों ने अपने काँधों पर मुख़्तलिफ़ सामान का बोझ उठाए मेहनत कश नौजवानों और कोठी सबवे में किताबों की दुकानात चलाने वालों से ज़बरदस्ती रक़म वसूल कर रहे हैं जिस के नतीजा में इन बेचारों की ज़िंदगीयां अजीरन हो गई हैं।
इसी तरह वहां अक्सर मोहरी का पानी जमा रहता है। ऐसे में वहां गाहक भी नहीं आते। पाँच साल कब्ल फुटपाथ पर 150 दुकानात हुआ करती थीं जिस से ग़रीब तलबा और दुकानदार सब को फ़ायदा होता था। आज कुतुबफ़रोश और तलबा सब परेशान हैं।
हद तो ये है कि सुलतान बाज़ार में कारोबार करने वाला हर ताजिर बी जे पी के एक मुबैयना लीडर से लेकर ट्रैफ़िक पुलिस सब को भत्ता देता है और ये भत्ता 10 ता 50 रुपये मुक़र्रर है। इस तरह यौमिया हज़ारों रुपये भत्ते वसूल किए जाते हैं।
इस बात का भी इन्किशाफ़ हुआ है कि सबवे में एक पहलवान ने 6×6 की जगह किसी से 50 हज़ार रुपये तो किसी से एक लाख रुपये एडवांस हासिल करते हुए दिया है और वो हर रोज़ 150 रुपये वसूल करता है। कारोबारी लोग अपनी ज़बानों पर उस का नाम लेने से तक डर रहे हैं।
पुराना शहर से ताल्लुक़ रखने वाले एक नौजवान ने बताया कि वो हर रोज़ 50 रुपये मामूल देता है। इस के लिए वो 10 , 10 रुपये के नोट तैयार रखता है। ये लड़का वहां रोज़मर्रा की इस्तेमाल की अशीया फरोख्त करता है।
बैग्स फरोख्त करने वाले एक और लड़के ने बताया कि तीन साल से वो सुलतान बाज़ार में बैग्स फरोख्त कर रहा है। वो भी यौमिया 50 रुपये मामूल देता है। इस का कहना है कि कारोबार चले या ना चले ट्रैफ़िक जवान और लीडर के लोगों को ज़रूर पैसे देना पड़ता है।
एक और नौजवान जो बंडी पर कारोबार करता है, उस का कहना है कि हर रोज़ 70 ता 80 रुपये अदा करना पड़ता है। कई पुलिस वाले अपने आला ओहदेदारों से कह कर सुलतान बाज़ार में ड्यूटी दिलाते हैं ताकि घर जाते वक़्त एक मोटी रक़म अपनी बीवी और बच्चों को ख़ुश करने के लिए ले जाएं लेकिन उन्हें मालूम होना चाहीए कि वो इस रक़म के ज़रीए ख़ुशीयां नहीं बल्कि ग़रीबों की बददुआएँ ले जाते हैं।