सुष्मिता सेन सूरा असर पढ़ती हैं, एतेज़ाज़ अहसन को सूरा इख़लास याद नहीं

सोश्यल मीडीया पर आजकल पिछ्ले साल और चंद साल पहले के वो वीडीयोज़ फिर एक बार दिखाई दे रहे हैं जिस में आला तालीम-ए-याफ़ता क़ानून के माहिर बिसात सियासत पर चालें चलने में अपना जवाब ना रखने वाले पाकिस्तानी सियासतदानों की दीनी तालीम से दूरी को ज़ाहिर किया गया है।

एक एसा शख़्स जिस ने इलम के मैदान में कामयाबी के झंडे गाड़ दिए हूँ। इस का शुमार इस्लामी जमहूरीया पाकिस्तान के सर-ए-फ़हरिस्त क़ानून दानों में होता हो। आयन-ओ-क़ानून का जिसे पण्डित समझा जाता हो, जिस के नाम के साथ बैरिस्टर जुड़ा हुआ हो मग़रिबी ममालिक की यूनीवर्सिटीज़ में जो क़ानून सियासत आलमी सूरते हाल दहश्तगर्दी और इंतहापसंदी के मौज़ूआत पर अपने लकचररस के ज़रीये लोगों पर अपनी दानिशमंदी की धाक जमाने में कामयाब रहा हो एसे शख़्स से यही उम्मीद की जाती हैके वो दीनी इलम भी रखता होगा।

शरीयत से अच्छी तरह वाक़िफ़ होगा लेकिन अफ़सोस दुनिया के नक़्शा पर एक इस्लामी मुलक की हैसियत से वजूद में आने वाली पाकिस्तान के इस सीनीयर बैरिस्टर एतेज़ाज़ अहसन को सूरा इख़लास याद नहीं। लोग फेसबुक पर इस तरह का वीडीयो गशत करा रहे हैं जिस में एतेज़ाज़ अहसन आसिफ़ अली ज़रदारी की एक इस्तिक़बालीया तक़रीब में बड़े जोश-ओ-ख़ुरोश के साथ इन का ख़ौरमक़दम कररहे हैं।

एक मरहले पर तिलावत भी उन्होंने शुरू की और सूरा इख़लास की तिलावत में बार बार गलतीयां करते रहे। इस्लामी जमहूरीया पाकिस्तान के इस बाअसर सियासतदां ने बर्तानिया से क़ानून की आला डिग्री हासिल की। यही नहीं उन्होंने अपनी बेटी की शादी भी नार्वे के शहरी आऊँ जॉन्स से की। वो पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की बार एसोसीएशन के सरबराह भी रह चुके।

तीन वुज़राए आज़म के मुक़द्दमात लड़ने का भी उन्हें एज़ाज़ हासिल रहा लेकिन दीनी तालीम के मुआमले में वो इंतेहाई जाहिल निकले। पाकिस्तान के मुमताज़ सियासतदानों की दीन से दूरी कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी हुकूमत के दौरान वज़ीर-ए-दाख़िला के बावक़ार ओहदा पर फ़ाइज़ रहे। साबिक़ ब्यूरोक्रेटिक और बर्तानवी शहरीयत के हामिल रहमान मलिक भी का बीनी मीटिंग में सूरे इख़लास की सही तिलावत ना करसके।

उन्होंने सूरे इख़लास तीन मर्तबा पढ़ा लेकिन हरबार गलतीयां करते रहे। एक और अहम सियासतदां मुशाहिद हुसैन सय्यद भी जिन्होंने दुनियावी इलम और सियासत के मैदान में काफ़ी तीर मारे हैं सूरत अलफ़लक़ की तिलावत करने से क़ासिर रहे। उन्हें ये सूरा याद ही नहीं रहा।

एक मौके पर उन्हें सूरा फ़लक़ की तिलावत में गलतीयां करने के बाइस शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। ये तो दीन इस्लाम के नाम पर वजूद में आने वाले पाकिस्तान के कुछ मुमताज़ सियासतदानों की दीनी उलूम से लाइलमी इस के बरअक्स 19 नवंबर 1975 को हैदराबाद दक्कन में पैदा हुई बाली वुड अदाकारा और साबिक़ा हसीना आलम सुष्मिता सेन जिन का ताल्लुक़ रक़्स-ओ-सुरूर की महफ़िलों से है, वो मुस्लमान नहीं। इस्लाम के बारे में शायद उन का सूचना हैके रहमान मलिक मुशाहिद हुसैन सय्यद और एतेज़ाज़ अहसन बहुत कुछ जानते हैं और उसकी अपनी मालूमात सिफ़र हो लेकिन नाच गानों के ज़रीये लोगों की तफ़रीह-ओ-तबा का सामान करनेवाली सुष्मिता सेन दीनी मालूमात में एसा लगता हैके मज़कूरा पाकिस्तानी सियासतदानों से बहुत आगे हैं।

पिछ्ले साल मुस्लमान माह रमज़ान उल-मुबारक की मुबारकबाद देते हुए सुष्मिता सेन ने अपने पयाम में कहा था आप सब को तहा दिल से रमज़ान के महीने की बहुत बहुत मुबारकबाद पेश करती हूँ।

ये कहने के बाद सुष्मिता सेन ने ये कहते हुए सूरतुल-असर की तिलावत की और इस का तर्जुमा पेश किया कि में इस सूरा में बहुत यक़ीन रखती हूँ। सूरा असर पढ़ने के बाद सुष्मिता सेन ने इस सूरा में अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल ने जो हिदायत दी है इस का मफ़हूम इस तरह पेश किया।

हर उस इंसान को जिस में सब्र है इस में बड़ी ताक़त होती है। उसे ज़िंदगी में जो चाहे वो मिलता है। सुष्मिता सेन ने मुसलमानों को माह रमज़ान की मुबारकबाद देते हुए ये भी कहा मेरे दिल से ये दुआ हैके आप के दिल में जो ख़ाहिश वो वो सब्र के साथ पूरी हो। सोशल मीडीया पर सुष्मिता सेन एतेज़ाज़ अहसन और पाकिस्तान का आला तरीन सिविल एज़ाज़ निशान इमतियाज़ हासिल करने वाले रहमान मलिक के वीडीयोज़ लाखों लोग देख रहे हैं।

हमारे शहर में भी फ़िलवक़्त पाकिस्तानी सियासतदानों की देन के दूरी और सुष्मिता सेन को सूरा असर पढ़ने का मुआमला मौज़ू बेहस बना हुआ है। हम ने देखा कि जिन लोगों ने भी रहमान मुलक और एतेज़ाज़ हुस्न के वीडीयोज़ देखे अफ़सोस का इज़हार करते हुए
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन पढ़ा। यूट्यूब पर सुष्मिता सेन और पाकिस्तानी सियासतदानों के वीडीयोज़ देख कर एक नौजवान इंजीनियर ने अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि दुनिया पाने के चक्कर में इस तरह के लोग अपनी आख़िरत तबाह कररहे हैं। उन लोगों के लिए अब भी मौक़ा हैके दीन से क़रीब होजाएं बल्कि दीन में दाख़िल होजाएं वर्ना उन्हें ये बात ज़हन नशीन रखनी चाहीए कि
ज़िंदगी बे बंदगी शर्मिंदगी