कर्नाटक: केंद्र सरकार ने नोटबंदी का फैसला ऐसे समय में लिया जब देश के बहुत सारे राज्य सूखे की चपेट में हैं और वहां के किसान तथा आम जनजीवन इस सूखे से पहले ही बुरी तरह प्रभावित हैं. सरकार के इस फैसले ने इन्हें और ज्यादा बेहाल कर दिया है.
कर्नाटक को बीते तीन सालों से सूखे का सामना करना पड़ रहा है. स्थानीय लोगों को अपना जीवन बचाने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है, क्योंकि महिलाओं और बच्चों को पानी की तलाश में अपने जीवन तक को जोखिम में डालना पड़ रहा है. स्थिति इस कदर खराब हो चुकी है कि स्कूली छात्रों को भी इसका शिकार होना पड़ रहा है.
नेशनल दस्तक के रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक जल संकट के शिकंजे में है जिसकी शुरुआत वर्षों पहले हो गई थी. राज्य के उत्तरी हिस्सों में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक के चिलचिलाते स्तर तक पहुँच गया है. भविष्यवाणी की है कि कर्नाटक सरकार को जल की कमी, जल प्रदूषण और बीमारियों के कारण आगामी दस वर्षों में आधे बंगलुरु को खाली कर देना होगा. कर्नाटक के एक सेवानिवृत्त अतिरिक्त मुख्य सचिव ने राज्य की राजधानी में जल संकट का विस्तृत अध्ययन किया. भविष्यवाणी सच होती दिख रही है, क्योंकि पिछले तीन सालों से कर्नाटक बीते चालीस वर्षों के सर्वाधिक भीषण सूखे का सामना कर रहा है. निराश-हताश किसानों को उसने उनके हाल पर छोड़ दिया है. अनेक किसानों ने आत्महत्या तक कर ली है. और इसका सिलसिला जारी है.
उल्लेखनीय है कि जहाँ आम जनजीवन पहले ही इतना परेशान हो चुका है वहां नोटबंदी ने कर्नाटक को और भी बुरी स्थिति में धकेल दिया है. कम बारिश से ऐसे ही किसान फसलों पर नुकसान झेल रहे हैं. अब नोटबंदी ने उनसे बाजार को भी दूर कर दिया ऐसे में किसान या तो अपनी फसल को ऐसे ही मंडियों में छोड़ जा रहे हैं या फिर फसलों को मवेशियों को खिलाने को मजबूर हैं. क्योंकि मंडी में नोटबंदी की वजह से व्यापारी इनके फल और सब्जियों के मनमाने ढंग से कीमत लगा रहे हैं. नोटबंदी की कहर से वहां के लोग दिन ब दिन आर्थिक तंगी ओर बढ़ रहे है.