सेकुलरिज्म का मतलब ममलकत का कोई मज़हब ना होना

मुंबई

विल्सन कॉलेज मुंबई के तलबा-ए-से नायब सदर जम्हूरिया हामिद अंसारी का तबादला-ए-ख़्याल

नायब सदर जम्हूरिया मुहम्मद हामिद अंसारी ने आज कहा कि सेकुलरिज्म की इस्तेलाह का सिर्फ़ ऐसी ममलकत पर इतलाक़ होता है जिस का अपना कोई मज़हब ना हो। इन का ये बयान सियासी पार्टीयों के दरमियान एक इश्तिहार के बारे में जारी तनाज़े के पस-ए-मंज़र में एहमियत रखता है।

विज़ारते इत्तेलाआत-ओ-नशरियात ने दस्तूर के दीबाचा की तस्वीर के साथ एक इश्तेहार जारी किया था जो दस्तूर के दीबाचा में 42 वीं तरमीम से पहले का था। इस में अलफ़ाज़ सेकुलर और सोशलिस्ट इस्तेमाल नहीं किए गए थे। नायब सदर जम्हूरिया ने कहा कि सेकुलर ज़म के लफ़्ज़ का हम क्या मतलब समझते हैं, ये एक हक़ीक़त है कि हमारा मुआशरा जिस में मुख़्तलिफ़ अक़ाइद के लोग शाना बशाना ज़िंदगी बसर कररहे हैं, हर एक के लिए चैलेंज ये है कि सरकारी एतबार से सेकूलरिज़म का मतलब ये है कि ममलकत का अपना कोई मज़हब नहीं होता।

हामिद अंसारी ने विल्सन कॉलेज जुनूबी मुंबई के तलबा के साथ तबादला-ए-ख़्याल के दौरान अपना ये तास्सुर ज़ाहिर किया। उन्होंने कहा कि ममलकत को मज़हब की बुनियाद पर शहरियों के दरमियान फ़र्क़-ओ-इमतियाज़ नहीं करना चाहिए। जब भी तरक़्क़ीयाती प्रोग्रामों और वज़ाइफ़ का सवाल आता है ममलकत को मारुज़ी बुनियाद पर फ़ैसला करना चाहिए।

मज़हब, सिनफ़ या नसल की बुनियाद पर नहीं। उन्होंने कहा कि सनफ़ी फ़र्क़-ओ-इमतियाज़ एक ऐसी बीमारी है जिस में हमारा मुआशरा मुबतला है। सदर नशीन राज्य सभा ने कहा कि इस मसले की समाजी यकसूई ज़रूरी है। सिनफ़ की बुनियाद पर तास्सुब क़ानूनी लिहाज़ से ममनू है लेकिन हम सब जानते हैं कि मुआशरा मुख़्तलिफ़ किस्म की बीमारीयों में मुबतला है और इन में से एक सनफ़ी तास्सुब भी है।

ये एक चैलेंज है। उसकी समाजी यकसूई ज़रूरी है। ज़रूरी नहीं कि ये क़ानूनी यकसूई हो। क़ानूनी एतबार से जो कुछ मुम्किन था हम करचुके हैं। क़वानीन वज़ा किए गए हैं। तास्सुब के लिए जुर्मानों का ताय्युन किया गया है लेकिन हमें मालूम है कि मतलूबा नताइज हासिल नहीं होरहे हैं।

उन्होंने कहा कि हर शहरी का फ़र्ज़ है कि दस्तूर के जज़बे का वफ़ादार रहे। दस्तूर का नज़रिया इस के मतन में मौजूद है। बहैसियत शहरी हर एक को तहे दिल से दस्तूर का लफ़ज़न-ओ-मानन वफ़ादार होना चाहिए। एक सवाल का जवाब देते हुए सदर नशीन राज्य सभा ने जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के वाइस चांसलर भी रह चुके हैं, कहा कि मुल्क के शहरीयों की हैसियत से तलबा-ए-को अवामी ज़िंदगी में उसकी फ़िक्र किए बगै़र कि वो सही हैं या ग़लत शिरकत करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि किसी भी शहरी को कोई भी चीज़ मुतास्सिर नहीं करती। मुआशरे में पेश आने वाले वाक़ियात शहरी को मुतास्सिर करते हैं। इस लिए आप को अवामी ज़िंदगी में दिलचस्पी लेना चाहिए और अपने नज़रियात-ओ-मफ़रूज़ात की बुनियाद पर ऐसा किया जाना चाहिए। ज़रूरी नहीं कि आप हमेशा दुरुस्त ही हो।