सेहत के लिए सुबह की चहलक़दमी शाम की चहलक़दमी से बेहतर

मुंबई, २१ सितंबर ( एजेंसी) कुछ लोग सुबह उठ कर चहलक़दमी करने में बड़ी बेज़ारगी महसूस करते हैं जबकि सुबह की चहलक़दमी जब सूरज तलूअ ना हुआ हो सेहत के लिए नेअमत साबित होती है ।

इस वक़्त फ़िज़ा में ना तो सूती आलूदगी होती है और ना कोई दीगर आलूदगी जिस की वजह से इंसानी फेफड़ों में ताज़ा हवा पहुंचती है । ऐसे लोग जिन्हें फ़ज्र की नमाज़ पढ़ने सुबह में मंदिर जाने की आदत होती है वो अक्सर-ओ-बेशतर अपनी इबादात से फ़ारिग़ होकर चहलक़दमी के लिए निकल पड़ते हैं ।

जिस वक़्त घर वापसी होती है इस वक़्त जिस्म की ज़ाइद कैलोरीज़ जल चुकी होती हैं और मादा भी ख़ाली हो जाता है । इस वक़्त अगर कोई पेट भर नाशतादान करता है तो माहिरीन के नज़दीक उस ग़िज़ा से सिर्फ ख़ून ही बनता है और ये बात हम बख़ूबी जानते हैं कि इंसान के जिस्म के लिए ख़ून कितनी एहमीयत का हामिल है ख़ून में जितने ज़्यादा सुर्ख़ जर्रात होंगे हमारा जिस्म इतना ही सेहतमनद होगा और साथ ही साथ चेहरे पर एक ख़ूबसूरत सी सुर्ख़ी के आसार भी नुमायां हो जाएंगे ।

ज़रूरत इस बात की है कि चहलक़दमी के दौरान ख़ुद को ज़रूरत से ज़्यादा थका हुआ समझा जाय बल्कि जिस्म को सिर्फ इस हद तक मसरूफ़ रखा जाय जहां हमें ये यक़ीन हो जाए कि फ़ासिद कैलोरीज़ और चर्बी से हम छुटकारा पा सकते हैं । रही बात दीगर वरज़िशों की तो इसके लिए हर एक का अपना अपना इंतिख़ाब ( चयन) होता है ।

कोई घर पर वरज़िश करने को तर्जीह देता है तो कोई जिम जाकर मुख़्तलिफ़ मशीनों का इस्तेमाल करता है जिस से हमें ( मर्द-ओ-ख़वातीन) अपने जिस्म को एक ख़ूबसूरत साख्त में ढालने में मदद मिलती है । बाअज़ लोगों के नज़दीक सुबह की चहलक़दमी बेहतर है और बाअज़ लोग उसे शाम के औक़ात में किसी बाग़ या गार्डन में अंजाम देते हैं ।