अहद फ़ारूक़ी में बैत-उल-माल के इंचार्ज मकीब बयान करते हैं कि सैयदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० ने एक मर्तबा दोपहर के वक़्त मुझे बुलाया। जब मैं उनकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ तो वो अपने बेटे आसिम को किसी बात पर डांट रहे थे।
फिर मुझ से फ़रमाया तुम्हें मालूम है इसने क्या किया है?। ये इराक़ गया था और वहां के लोगों को ये ख़बर दी कि वो अमीरूल मोमिनीन का बेटा है। फिर उनसे अपने अख़राजात के सिलसिले में मदद तलब की। उन्होंने उसे कुछ बर्तन, चांदी, कुछ सामान और एक मुनक़्क़श तलवार दी है। आसिम ने अर्ज़ किया मैंने हरगिज़ ऐसा नहीं क्या, मैं तो सिर्फ़ कुछ मुसलमानों के पास गया और उन्होंने मुझे ये सब कुछ दिया।
सैयदना फ़ारूक़ आज़म रज़ी० बैत-उल-माल के इंचार्ज से मुख़ातिब हुए और फ़रमाया ये सब चीज़ें बैत-उल-माल में जमा कर लो। अगर इसने सवाल नहीं किया, तब भी हुकमरानों और सरकारी ओहदेदारों को मिलने वाले जुमला तहाइफ़ ( तोहफे) सरकारी मिल्कियत हैं, उनकी ज़ाती मिल्कियत नहीं हैं।
सैयदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० का इस मसला में दो टूक मौक़िफ़ था कि ऐसे तहाइफ़ बैत-उल-माल में जाएंगे, इसीलिए उन्होंने अपनी अहलिया हज़रत उम्मे कुलसूम को दिए गए तहाइफ़ भी बैत-उल-माल में करवा दिए थे। अमीरूल मोमिनीन ने महसूस किया कि उनके बेटे को ये माल सिर्फ़ इसलिए मिला कि वो अमीरुल मोमिनीन के बेटे हैं, चुनांचे वो इस माल को अपने बेटे आसिम के लिए जायज़ नहीं समझते थे।
इनका मौक़िफ़ ये था कि इस माल के हुसूल में उनके बेटे की कोई मेहनत शामिल नहीं। इनका ये अमल रसुलूल्लाह (स०अ०व०) के अस्वा हुस्न(अच्छे अखलाक)के ऐन मुताबिक़ था। रसूल अकरम स०अ०व० ने इब्ने अल तबीया उज़्दी को आमिल बनाकर भेजा। वो आकर कहने लगा ये माल तो आप का है और ये तहाइफ़ मुझे दिए गए हैं।
हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० ने जब ये सूरत-ए-हाल देखी तो मिंबर पर तशरीफ़ फ़र्मा हुए और अल्लाह की हम्द ओ सना के बाद फ़रमाया हम कुछ लोगों को आमिल बनाकर भेजते हैं, वो वापस आकर हमें ये जवाब देते हैं कि ये आप लोगों का माल है और ये मुझे तहाइफ़ की सूरत में मिला है। वो शख़्स अपने वालदैन के घर में बैठे, फिर हम देखते हैं कि उसे कितने तहाइफ़ ( तोहफे) मिलते हैं।