नई दिल्ली ०१ फरवरी (फैक्स) उत्तर प्रदेश के असेंबली इंतेख़ाबात सर पर हैं , मुस्लमानों के लिए ये रियासत सब से अहम है। यहां तमाम रियासतों के मुक़ाबले में मुस्लमानों की आबादी सब से ज़्यादा है यानी कल मुस्लिम आबादी का 22फीसद और रियास्ती आबादी में मुस्लमानों का तनासुब 15 फ़ीसद है।
कम अज़ कम 100हलक़ों में मुस्लमान वोटरों का तनासुब 30 फ़ीसद से ज़्यादा है जहां वो फैसला कुन हैं । कम अज़ कम 50 हलक़ों में मुस्लमानों का तनासुब 35 40 फीसद से ज़्यादा है जहां वो अपने बल पर जीत सकते हैं ।इन का हक़ है कि कम अज़ कम 75 मुस्लमान जीते।
अब तक रियासती सियासत में इन का रोल वोट बैंक का रहा है जिसे हर पार्टी ने इस्तेमाल किया है या करने की कोशिश की है।किसी पार्टी ने मुस्लमानों को उन के तनासुब से टिकट नहीं दिए ना इसे हलक़ों से दिए जहां वो जीत सकते हूँ ना उसे लोगों को दिए जिन पर मुस्लिम अवाम को एतबार हो और जो मुस्लिम अवाम के नज़दीक हूँ ।
उन्होंने अपने उम्मीदवारों में भी 19 फीसद टिकट मुस्लमानों को नहीं दिया। आम तौर से एक से ज़्यादा पार्टियों ने हर मुस्लिम हलक़े से उम्मीदवार दिए ।नतीजा ये है कि आम तौर से उत्तरप्रदेश में मुस्लमानों की नुमाइंदगी कम रही और बे असर भी रही ।
पार्टियों के नुमाइंदे मुस्लिम मसाइल पर अक्सर ख़ामोश रहते हैं और आज़ादी से मुस्लमानों के मसाइल को छेड़ भी नहीं सकते।साबिक़ एम पी सैयद शहाब उद्दीन ने ये बात कही। आज उत्तरप्रदेश में 4 बड़ी पार्टियां मैदान में हैं INC,BSP, SP और BJP बी जे पी ने फिर एक बार हिंदूतवा के नारे बुलंद किए हैं इसलिए वो मुस्लिम दायरा इंतेख़ाब से बाहर है इंतेख़ाबात के वक़्त कुछ लोग रियासती सतह पर मुस्लिम इत्तेहाद की बात उठाते हैं जो बेमानी है इस लिए कि इतनी बड़ी रियासत में जहां मसलकी , बिरादरी और सयासी इख़तिलाफ़ात हूँ और कई छोटी बड़ी नई, पुरानी पार्टियां इलेक्शन के वक़्त अपने फ़ायदे के लिए यह किसी और को फ़ायदा यह नुक़्सान पहुंचाने के लिए हर हलक़े में उतरती हैं और मुस्लमान वोटरों को तक़सीम करके बहतरे हलक़ों में बे असर कर देती हैं।
वक़्त आ गया है कि मुस्लमान वोटर हलक़े की सतह पर अपने आप को मुनज़्ज़म करे । इस सतह पर इत्तिहाद मुम्किन है और कम अज़ कम मुस्लिम कसरती हलक़ों में पार्टियों के फ़ायदे और नुक़्सान से बेग़र्ज़ होकर अपनी पसंद से एक मुनासिब मुस्लिम उम्मीदवार का इंतेख़ाब करें और जिन का ताल्लुक़ उस हलक़े के सब से बड़े मसलकी गिरोह और बिरादरी से हो 30 फ़ीसद तनासुब वाले हलक़ों में एक बड़ी सैक्यूलर पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार को चुनें ।
ये20 फ़ीसद से कम वाली सीटों पर एक मुनासिब ।सैक्यूलर पार्टी एक मुस्लिम दोस्त यह गैर मुस्लिम उम्मीदवार का इंतेख़ाब करें।जब एक से ज़्यादा मुनासिब उम्मीदवार मैदान में हो तो उसे हलक़े की एक सयासी नुमाए निदा कमेटी उन से बात चीत करके सब से मुनासिब उम्मीदवार का इंतेख़ाब करे।
मुक़ामी कमेटी में हर मकतब फ़िक्र और मैदान अमल की नुमाइंदगी हो लेकिन इस के अरकान का सयासी पार्टी से ताल्लुक़ ना हो।उसे वाहिद मुस्लिम यह गैर मुस्लिम उम्मीदवार को हलक़े की सतह पर मुत्तहिद हो कर वोट देने से मुस्लमानों का सयासी वज़न पैदा होगा।जीतने वाले भी शुक्र गुज़ार होंगे और हारने वाले को भी आगे के लिए उम्मीद बंधी रहेगी।
बाक़ी 3 पार्टियों के दरमियान उनके रिकॉर्ड और उन के उम्मीदवार की काबिलियत , सयासी समझ और तजुर्बे की बुनियाद पर फैसला करना चाहीए।उम्मीदवार अगरजीत नहीं सकता है तो बेकार है इस लिए कि इस के वोट काटने से एक गैर मुनासिब उम्मीदवार जीत सकता है।आज कुछ लोग फिर रियास्ती सतह पर मुस्लिम इत्तेहाद की बात कर रहे हैं उसे सभी लोग तो चुनाव के नज़म से नावाक़िफ़ है दानिस्ता तौर पर मुस्लमानों को सबज़ बिग दिखा कर धोका देते हैं । वो किसी ना किसी पार्टी के एजंट हैं इस लिए इन का मक़सद ये है कि कुछ मुस्लमान वोट अपनी पार्टी के लिए हासिल करें और उन के बाक़ी वोटों को राइगां कर दें।