सैय्यदना उमर फ़ारूक़ ( रज़ी०) के दौर में ज़ख़ीराअंदोजी की मुमानअत

अमीरुल मोमिनीन सैय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० हर उस माल का ज़ख़ीरा करने से मना फ़रमाते थे, जिसकी बाज़ार में मांग होती। हज़रत इमाम मालिक रह० माल असबाब में रिवायत करते हैं कि सैय्यदना उम्र फ़ारूक़ रज़ी० ने फ़रमाया हमारे बाज़ारों में ज़ख़ीराअंदोजी मना है, लोग अपने ज़ाइद माल को ये देख कर ज़ख़ीरा ना करें कि अल्लाह तआला ने हमारे लिए हमारे बाज़ार में रिज़्क मुहय्या फ़रमा दिया है, जब वो बिक जाएगा तो वो अपना माल महंगे दामों में फ़रोख़्त करेंगे।

आज के बाद कोई भी बाहर से माल लाने वाला जो अपने कंधे पर माल उठाए होगा, सर्दी हो या गर्मी, वो हमारा मेहमान होगा। वो जल्दबाज़ी ना करे, जिस तरह जी चाहे सुकून के साथ अपना माल फ़रोख़्त करे।

सैय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० का फ़रमान है कि कमाई का कोई भी ज़रीया चाहे वो कितना ही हक़ीर और हल्का नज़र आता हो, लोगों के सामने हाथ फैलाने से बदरजहा बेहतर है। आप ने फ़रमाया ऐ फुकरा की जमात! अपने सर उठाओ, तिजारत करो, अब रास्ता वाज़िह हो चुका है, लिहाज़ा अब तुम लोगों पर बोझ मत बनो।

मुस्लिम बिन जनदब बयान करते हैं कि एक दफ़ा मदीना में खाने का सामान आया। बाज़ार के ताजिर आए और सामान खरीदकर ले गए। सैय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० ने उन लोगों से फ़रमाया ऐ बाज़ार वालो! क्या तुम हमारे बाज़ारों में तिजारत करते हो? लोगों को भी इसमें शरीक करो। तुम यहां से निकलो, बाहर जाओ, वहां से माल खरीदकर लाओ और फिर फ़रोख़्त करो।

सैय्यदना फ़ारूक़ आज़म रज़ी० अक्सर औक़ात अवामुन्नास और तिजारत की सहूलत की ग़र्ज़ से अश्या-ए-ज़रुरीया की क़ीमत मुनासिब सतह पर लाने के लिए बज़ात-ए-ख़ुद ज़रूरी हिदायात जारी फ़रमाते थे। एक दफ़ा एक शख़्स तेल लेकर आया और बाज़ार की क़ीमत की बजाय अपने भाव से बेचने लगाए।

आप ने फ़रमाया तुम अपना सौदा बाज़ार के भाव बेचो, वर्ना यहां से चले जाओ, हम तुम्हें अपने नर्ख़ पर मजबूर नहीं करेंगे। फिर उस शख़्स को वहां के लोगों से दूर रवाना कर दिया। आप ऐसे शख़्स की सरज़निश करते थे, जो तिजारत की ग़र्ज़ से बाज़ार में बैठ जाता और उसे तिजारत के इस्लामी अहकाम का इल्म ना होता।

आप ने फ़रमाया जिसे सूद के बारे में इल्म ना हो, वो हमारे बाज़ार में तिजारत के लिए ना बैठे।