बिजनौर गोलीकांड के बाद जब सीएम अखिलेश यादव ने मुआवज़े की घोषणा मुसलमानों के लिए की तो उन्होंने कहा,’हमें भीख नहीं चाहिए, मुआवज़ा भीख होता है, पहले मारो फिर मुआवज़ा दे दो, अन्याय हो रहा मुसलमानों के साथ।’
दो तीन दिन से वे इसलिए परेशान हैं कि दादरी कांड के आरोपी को सरकार मुआवज़ा देने वाली है। अब वे कह रहे हैं,’अखिलेश ने संघी निक्कर पहनी है, सेक्यूलर के नाम पर कलंक हैं, मुसलमानों बदला ले लेना चुनाव में।’
मुंह में आग जला कर समाज और राजनीति में लगी आग को कभी ठंडा नहीं किया जा सकता। खुदा ने लिखने की सलाहियत अता की है तो कुछ ऐसा लिखिए जो ‘प्रैक्टिल’ हो। जिसका कुछ ओर छोर और असर हो।
यदि अखिलेश यादव संघी है तो फिर उनसे उम्मीद कैसी? यदि उम्मीद है तो समझिए सूबे की सियासत में क्या कुछ हो रहा है। मुसलमानों की तरफ से ओवैसी कूद रहे हैं, हिंदुओं की ओर से भाजपा। सपा ज़मीन खोने के डर से सबको साध रही है। ऐसे में गलती तो होगी ही। सत्ता हाथ से निकल जाए, इससे बड़ा भय क्या होगा अखिलेश यादव के लिए ? वही भय, ऐसे फैसले करने पर मजबूर कर रहा है। लेकिन यह सत्य है कि सांप्रदायिकता की चैम्पियन बीजेपी थी, है और रहेगी। नरेंद्र मोदी सबकी बात करते हैं पर उनका मंत्री अख़लाक की मौत पर उसके घर नहीं गया , वह एक हिंदू के घर जाता है। बीजेपा पहुंच चुकी है बिसाहड़ा , अखिलेश यादव ने पैसा फेंक कर वहां लगी आग ठंडी करनी चाही है , समाजवादी पार्टी बिसाहड़ा में गाली खा रही है , उन गालियों में कमी आए इसलिए पैसा देने की बात हुई।
इस देश की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था से जो लोग परिचित नहीं उन्हीं की नाक सबसे पहले बहनी शुरू होती है। जिनको थोड़े बहुत पता होता है वे सोचते हैं ,’सब ठीक कैसे हो, उस पर काम किया जाए।’ मुआवज़ा गलत है। हत्यारोपी को पहली बार पैसा नहीं दिया है। प्रतापगढ़ में डीएसपी ज़िया उल हक़ हत्याकांड के आरोपियों के यहां मरने वाले मृतकों को भी दिया गया है। मुआवज़ा पॉलिसी वाले बड़े डरपोक हैं अखिलेश यादव के पास। गलत से क्या डरना मुआवज़ा बाबू।
भावुकता नामक नज़ले का इलाज करा लो मुसलमानों। ज़हर जल्दी असर करता है , दवा देर में। राजनीति नहीं समझ आती तो बिरयानी खाओ, मस्त रहो। रहते भी मस्त ही हो , फर्जी भावुकता दिखाते हो फेसबुक पर।