सोशल मीडिया पर वक़्त का गुज़ारना रिश्तों में दराड़ का बाइस बन रहा है। इलावा अज़ीं सोशल मीडिया पर किए जाने वाले अमल पर दुनिया भर की निगाहें मर्कूज़ होती हैं और कई मर्तबा रिश्तेदार जो कि सोशल मीडिया पर राबितामें होते हैं उन के ज़रीए कई हरकतें ग़ैर म्यारी तसव्वुर करते हुए उन की सरज़निश भी की जाने लगती है।
सोशल मीडिया जहां तक समाजी राबिता के इलावा दबी हुई आवाज़ को उजागर करने में अहम किरदार अदा कर रहा है वहीं इस के कई नुक़्सानात भी सामने आने लगे हैं।
फेसबुक, टोइटर के इलावा दीगर समाजी राबिता की वैबसाईटस पर मसरूफ़ रहने वाले अफ़राद इस के आदी बनते जा रहे हैं जिस के बाइस उन की निजी ज़िंदगी मुतास्सिरहोने लगी है।
सोशल मीडिया पर मसरूफ़ नौजवान तबक़ा मुख़्तलिफ़ सरगर्मीयों की इत्तिलाआत अपने सोशल मीडिया अकाउंट के ज़रीए दूसरों तक पहुंचाता रहता है लेकिन उन की बाअज़ हरकात और सकनात पर दीगर अफ़राद ख़ानदान की नज़रें भी मर्कूज़ होती हैं बिलख़सूस सोशल मीडिया पर मौजूद ख़ानदान के बुज़ुर्ग नौजवानों की हरकतों पर नज़र रखते हुए उन की सरज़निश करने लगे हैं और उन के हरकात और सकनात का बाज़ाबता जायज़ा लिया जा रहा है।
समाजी राबिता की वेबसाईट्स के ज़रीए आलमी सतह पर अपनी शनाख़्त बेहतर या बदतर दोनों तरह से बनाई जा सकती है इसी लिए इस तरह की वेबसाईटस पर काम करने के दौरान इस बात का ख़ुसूसी ख़्याल रखा जाना चाहीए कि आप के किसी भी तरह के इक़दाम या हरकत का आप की शख़्सियत पर क्या असर पड़ सकता है।
सोशल मीडिया के जितने मनफ़ी पहलू हैं इतने ही मुसबत पहलू भी मौजूद हैं इसी लिए इन का इस्तेमाल तर्क करना हल नहीं है बल्कि इस्तेमाल में बेहतरी पैदा करना मसाइल को ख़त्म करने का सबब बिन सकता है।