रियासत बिलख़ुसूस हैदराबाद और सिकंदराबाद में हर रोज़ इस्मतरेज़ि के 6 ता 8 वाक़ियात पेश आ रहे हैं और लगता है कि ख़्वातीन पर जिन्सी हमलों के मुआमला में हैदराबाद और साइबराबाद दिल्ली को मात दे चुका है। लेकिन दिल्ली और हैदराबाद में फ़र्क़ ये है कि दिल्ली में चलती कार में किसी लड़की को हवस का निशाना बनाया जाए या किसी झोपड़ पुट्टी में कमसिन तालिबा या फिर किसी वीरान मुक़ाम पर अधेड़ उम्र की ख़ातून की इस्मतरेज़ि हो गैर सरकारी तनज़ीमें और सयासी जमाअतें फ़ौरी हरकत में आ जाती हैं
और देखते ही देखते हज़ारों की तादाद में आम शहरी बाशमोल तलबा तालिबात सड़कों पर निकल आते हैं मजबूरन रियासती हुकूमत के इलावा मर्कज़ी वज़ारते दाख़िला पुलिस पर दबाव डाल कर ख़ातियों को फ़ौरी गिरफ़्तार करवाते हैं।
मीडिया भी दिल्ली में पेश आने वाले वाक़ियात को बड़ी दिलचस्पी के साथ पेश करता है लेकिन हमारे शहर और अतराफ़ वो अकनाफ़ में 8 साला मासूम तालिबा के साथ कोई ऑटो ड्राईवर मुँह काला करता है या फिर 12 साला गरीब लड़की किसी दरिंदे की दरिंदगी का शिकार हो भी जाए तो एक आम ख़बर की तरह उसे अख़्बारात और चैनलों में जगह दे कर फ़रामोश कर दिया जाता है।
उसे हुकूमत, क़ानून नाफ़िज़ करने वाली एजेंसियों, पुलिस, रज़ाकाराना तन्ज़ीमों या इदारों के साथ साथ शहरियों की मुजरिमाना ग़फ़लत कहा जाए या मुतास्सिरा लड़कियों और ख़्वातीन और उन के वालिदैन की बदक़िस्मती कुछ भी हो एक बात ज़रूर है कि इस तरह के वाक़ियात पर मुआशरा को बेहसी का मुज़ाहरा करने की बजाय उठ खड़े होना चाहीए।
कल शाम 5 बजे राजेंद्र नगर के इलाक़ा हकीम हिल्ज़ में एक इंतिहाई गरीब ख़ानदान की 11 साला मासूम और कमज़ोर लड़की की इस्मतरेज़ि का दिलसोज़ वाक़िया पेश आया। दूसरी तरफ़ हैदराबाद और साइबराबाद में ख़्वातीन और लड़कियों के ख़िलाफ़ जिन्सी हमलों के वाक़ियात में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है।
2012 में इन दोनों कमिशनेरीएट्स में इस्मतरेज़ि अग़वा, ख़्वातीन की हुर्मत पर हमलों के 1033 मुक़द्दमात दर्ज किए गए। एक और अहम बात ये है कि पुलिस को सिर्फ़ ये कह कर ख़ामोश होने की ज़रूरत नहीं कि हम ने मुल्ज़िम को निरभय एक्ट के तहत गिरफ़्तार कर लिया है। एक्ट पर सख़्ती के साथ एक्शन की ज़रूरत है।