ग़ज्वा बनू मुस्तलीक़ में सय्यदना उमर (रज़ी.) का किरदार बहुत नुमायां था। हुआ यूं कि रसूल अल्लाह स.व. ग़ज्वा से फ़ारिग़ होकर अभी मूरैसी के चशमा पर ही क़ियाम पज़ीर थे कि कुछ लोग चशमा से पानी लेने गए। इन में सय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ी.) का एक मुहाजिर मज्दूर जहजाह बिन क़ैस ग़फ़्फ़ारी भी था। इस की एक अंसारी स्नान बिन वबर जहनी से पानी लेने पर तकरार हो गई और दोनों आपस में लड़पड़े।
स्नान जहनी ने अपने लोगों को पुकारा और निदा लगाई: ए अंसारी लोगों ! ! मदद के लिए पहुंचो। उधर जहजाह ने आवाज़ दी: ए मुहाजिर भाईओ मदद को पहुंचो। अल्लाह के रसूल स.व. ख़बर पाते ही वहां तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया: में ये कैसी आवाज़ें सुन रहा हूँ, एसे तो ज़माना-ए-जाहिलीयत में लोग अपने क़बीलों को पुकारा करते थे। इस पुकार को छोड़ दो ये मुतअफ़्फ़िन है।
मूनाफीकिन का सरदार अबद उल्लाह बिन उबैय ने सुना तो बोला: क्या वाक़ई इस मुहाजिर ने एसा किया है?। ख़बरदार! अल्लाह की क़सम! जब हम वापिस मदीना पहुंचेंगे तो हम में से इज़्ज़त वाला ज़िल्लत वाले को मदीना से निकाल बाहर करेगा। सय्यदना उमर फ़ारूक़ (रज़ी.) ने इस की बात सुन ली। आप नबी करीम स.व. की ख़िदमत में आए और कहा: ए अल्लाह के रसूल! मुझे इजाज़त दीजिए में इस मुनाफ़िक़ की गर्दन उतारदूं। नबी करीम स.व. ने फ़रमाया: उसे छोड़ दो, एसा ना हो कि लोग कहीं मुहम्मद (स.व.) अपने ही साथीयों का क़त्ल करने लगे। (सीरत नब्वी ,इब्न हीशाम ३३१९)