हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

हमारे नबी का नाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम है, जो पीर के दिन, सुबह सादिक के वक्त (12) बारह रबीउल अव्वल, बमुताबिक बीस (20) अप्रैल 571 ईसवी, मुल्क अरब के शहर मक्का शरीफ में पैदा हुए। आपके वालिद का नाम हजरत अब्दुल्लाह और वालिदा का नाम हजरत आमेना है और दादा का नाम अब्दुल मुत्तलिब है और नाना का नाम वहब है।

अल्लाह तआला ने हमारे नबी को हर चीज से पहले अपने नूर से पैदा फरमाया। अम्बिया, फरिश्ते, जमीन-आसमान, अर्श व कुर्सी, लोह व कलम और पूरी दुनिया को आपके नूर की झलक से पैदा फरमाया। तमाम जहाँ में कोई किसी भी खूबी में हुजूर के बराबर नहीं हो सकता। हमारे नबी तमाम नबियों के नबी हैं। हर शख्स पर आपकी इताअत लाजिम है।

अल्लाह तआला ने अपने तमाम खजानों की कुँजी हमारे प्यारे नबी को अता फरमाई है। दीन व दुनिया की सब नेमतों का देने वाला अल्लाह तआला है और तकसीम करने वाले हमारे प्यारे नबी हैं (मिशकत शरीफ जि. 1, स. 32)।

अल्लाह तआला ने अहकामे शरीअत भी हमारे नबी को बख्श दिए, जिस पर जो चाहें हलाल फरमा दें और जिसके लिए जो हराम कर दें। फर्ज भी चाहें तो मआफ फरमा दें (बहारे शरीअत जि. 1, स. 15)।

अगर किसी इबादत से हुजूर नाराज हैं तो वो इबादत गुनाह है और किसी खता से हुजूर राजी हैं तो वो खता ऐन इबादत है। हजरत सिद्दीके अकबर का गारे सौर में साँप से अपने को कटवाना खुदकुशी नहीं, ऐन इबादत है। खैबर की वापसी पर मकाम सहबा पर हजरत अली का असर की नमाज कजा कर देना गुनाह नहीं, बल्कि इबादत था। इसलिए कि इन चीजों से हुजूर राजी थे। अरफात में आज भी नमाज मगरीब को कजा करना इबादत है के इससे हुजूर राजी हैं (शाने हबीबुर्रेहमान 11)।

ND
अल्लाह तआला ने आपको मेराज अता फरमाई यानी अर्श पर बुलवाया, जन्नत, दोजख अर्श व कुर्सी वगैरह की सैर करवाई, अपना दीदार आँखों से दिखाया, अपना कलाम सुनाया, ये सब कुछ रात के थोड़े से वक्त में हुआ। कब्र में हर एक से आपके बारे में सवाल किया जाता है। कयामत के दिन हश्र के मैदान में सबसे पहले आप ही शफाअत करेंगे।

सारी मखलूक खुदा की रजा चाहती है और खुदा हमारे प्यारे नबी की रजा चाहता है और आप पर दुरुदों सलाम भेजता है। अल्लाह तआला ने अपने नाम के साथ आपका नाम रखा, कलमा, अजान, नमाज, कुरान में, बल्कि हर जगह अल्लाह तआला के नाम के साथ प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम का नाम है।

अल्लाह तआला ने हुजूर की बेत को अपनी बेत, आपकी इज्जत को अपनी इज्जत, हुजूर की खुशी को अपनी खुशी, आपकी मोहब्बत को अपनी मोहब्बत, आपकी नाराजगी को अपनी नाराजगी करार दिया। हमारे प्यारे नबी तमाम नबियों से अफजल हैं, बल्कि बाद खुदा आपका ही मरतबा है। इसी पर उम्मत का इजमा है। आपकी मोहब्बत के बगैर कोई मुसलमान नहीं हो सकता, क्योंकि आपकी मोहब्बत ईमान की शर्त है। आपके कौल व फेल, अमल व हालत को हेकारत की नजर से देखना या किसी सुन्नत को हल्का या हकीर जानना कुफ्र है।

ND
आपकी जाहिरी जिंदगी (63) तिरसठ बरस की हुई, जब आपकी उमर 6 साल की हुई तो वालेदा का इन्तेकाल हो गया। जब आपकी उमर 8 साल की हुई तो दादा अब्दुल मुत्तलिब का इन्तेकाल हो गया। जब आपकी उमर 12 साल की हुई तो आपने मुल्के शाम का तिजारती सफर किया और पच्चीस साल की उमर में मक्का की एक इज्जतदार खातून हजरत खदीजा रदिअल्लाहो तआला अन्हा (जो चालीस की बेवा खातून थीं) के साथ निकाह फरमाया और चालीस साल की उमर में ऐलाने नबुवत फारान की चोटी से फरमाया और (53) तिरपन साल की उमर में हिजरत की (63) तिरसठ साल की उम्र में बारह रबीउल अव्वल 11 हिजरी बमुताबिक 12 जून 632 ई. पीर के दिन वफात फरमाई। आपका मजार मुबारक मदीने शरीफ में है, जो मक्का शरीफ से उत्तर में तकरीबन 320 किलोमीटर दूर है।

मसअला- हुजूर के कब्र अनवर का अंदरूनी हिस्सा, जो जिस्स अतहर से लगा हुआ है व काबे मोअज्जमा व अर्शे आजम से भी अजजल है (मिरातुलमनाजिह जि. 1, स. 431)।

हजरत आजबिर बिन सुमरा फरमाते हैं कि मैंने चाँद के चौदहवीं रात की रोशनी में प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम को देखा। आप एक सुर्ख यमनी जोड़ा पहने हुए थे। मैं कभी आप की तरफ देखता और कभी चाँद की तरफ। यकीनन मेरे नजदीक आप चौदहवीं रात के चाँद से ज्यादा हसीन नजर आते थे।

हसीन तो क्या आफताब रिसालात के सामने चौदहवीं रात का चाँद फीका था। हजरते बरार बिन आजीब से पूछा गया क्या रसूल्लल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम का चेहरा तलवार के मानिन्द था। उन्होंने कहा, नहीं, बल्कि चाँद के मानिन्द था (शमायले तीरमीजी शरीफ सफा 2)।