हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) के अच्छे अख़लाक

मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) सबसे पहले नबी हैं आप आखिरी नबी हैं और आप उम्मुल किताब के हामिल हैं। आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) साहबे मेराज हैं आप शाफये महशर हैं। आप साहिबे अजवाज व औलाद हैं आप फातहे आलम हैं, आप मुत्तकी थे, आप साबित कदम और मुस्तकिल मिजाज थे, आप साहिबे जेहाद थे, आप(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) वक्त के पाबंद थे, ताजिर थे, मेहमान नवाज थे, हौसला और अज्म की मिसाल थे, शर्म व हया की तस्वीर थे, सादा मिजाज थे, बच्चो, बड़ो, गुलामों, गरीबों, औरतों व गैर इंसानी तबकों पर एक सी मोहब्बत और मेहरबानी करते थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को दुनिया में सबसे ज्यादा जो चीज पसंद थी वह नमाज और खुश्बू थी। इन सबसे बढ़कर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को अपनी उम्मत प्यारी थी।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) हमेशा बीवी बच्चों का, बुजुर्गो का, रिश्तेदारों का, पड़ोसियों का, यतीमों का, मेहमानों का, बीमारों का, गुलामों का, इंसानी बिरादरी का यहां तक कि जानवरों के हुकूक का ख्याल रखते थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को आदाबे मजलिस में, खाने पीने में, बात-चीत करने में, सफर में, बैठने उठने में, सोने-जागने में, लिबास के पहनने में, इबादत में गरज कि हर चीज में आदाब का ख्याल दिल में रहता था।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) एक ही वक्त में नबी भी थे रसूल भी थे, सरदार भी थे, हाकिम भी थे, मुंसिफ भी थे, अमीन भी थे, सादिक भी थे, आबिद भी थे, मुतवक्कल भी थे। इस तरह अगर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) के औसाफ व अच्छे एखलाक को लिखा जाए तो यह सिलसिला खत्म नहीं हो सकता। यूं तो तमाम आलिमों का परवरदिगार और तारीफों का मालिक अल्लाह खुद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की तारीफ फरमाता है तो हम जैसे गुनाहगार बन्दों की क्या मजाल कि उस जात-ए-पाक की तारीफ कर सकें।

शर्म व हयाः- आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की शर्म व हया का यह आलम था जिसके मुताल्लिक सहाबा कराम फरमाते हैं कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) एक पर्दा करने वाली क्वारी लड़की से भी ज्यादा शर्मीले थे।

वादे के पाबंद:- हजरत नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) वादे के बहुत पाबंद थे। जो वादा करते वह पूरा करते। लिहाजा अब्दुल्लाह बिन हमस सहाबी फरमाते हैं कि मैंने हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) से एक सौदा किया और कुछ देर बाद उसी जगह मिलने का वादा करके चला गया। जो मुझे याद नहीं रहा। तीन दिन के बाद जब मैं वहां पहुंचा तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) उसी जगह इंतेजार में थे जब मुझे देखा तो सिर्फ इतना कहा तुम ने तकलीफ दी मैं तीन रोज से इसी जगह पर तुम्हारे इंतजार में हूं।

एहसान:- नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का दुनिया में तशरीफ लाकर अपनी मुबारक तालिमात से अरब बल्कि तमाम अहले दुनिया को जलालत व गुमराही से निकालकर हिदायत की राह पर डालना और उनके दिलों एखलाक व आमाल को बुराइयों से पाक कर देना और गुलाम को आका और आकाओं के आका बना देना। लड़कियों को जिंदा दफन करने से बचा लेना, महरूम व मजलूम औरतों को उनके जायज हुकूक दिलवाना, गुलामी की मनहूसियत को हमेशा के लिए इंसानों के सर से उतार देना, बेगानों से अच्छे सुलूक से खुद पेश आना, इसके अलावा इंसानों को उसकी तालीम से आरास्ता कर देना।

गरज कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की जिंदगी का यह कारनामा दुनिया इंसानियत बल्कि सारी खिलकत पर एक अजीम एहसान है। तवाजो सादगी और बेतकुल्लफी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) लोगों को खुद पहले सलाम करते। हर छोटे-बड़े के साथ खुशी से बातचीत करते, जब किसी से मुसाफेहया ( मुसाफा) करते तो जब तक दूसरा शख्स खुद हाथ नहीं छोड़ता आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) थामें रहते।

जब सदका देते तो खुद अपने हाथ से मिस्कीनों को दिया करते। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) सहाबा कराम की मजलिस में जाते तो पीछे ही बैठ जाते और अपना काम अपने हाथों से कर लिया करते थे। किसी पर कोई सख्ती नहीं करते। खुद बाजार जाते और अपना सामान खुद ही उठाकर लाते।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने मदीने मुनव्वारा की मस्जिद की तामीर और खन्दक की खुदाई के कामों में खुद भी अमली तौर से हिस्सा लिया है। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का लिबास तमाम लोगों की तरह बिल्कुल सादा होता। दौलत और हुकूमत की तरह बड़े मकानों के बजाए मामूली मकानों में रहते, अपने ही हाथ से अपने कपड़े और जूते ठीक किया करते थे। अपने ऊंट को आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) खुद ही बांधते थे और अपने खादिम के साथ बेतकल्लुफी के साथ खाना खा लिया करते थे। मुसीबत जदा लोगों और मोहताजों की मदद करते।

फसाहत व बलागत:- आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का अंदाजे बयान इतना आसान और दिलकश समझाने वाला और ऐसा निराला व मोजिजाना था कि उसकी मिसाल किसी नसीहत करने वाले के कलाम में नहीं मिलती। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) फसाहत व बलागत के मम्मबा (श्रोत) आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का हर लफ्ज मानी का समन्दर था और हर कलमा हकायक से लबरेज, हर कौल हुकूमतों का सर चश्मा और हर जुमला फसाहत व बलागत का एक दरिया था।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का सुनने वाला चाहे वह मुल्क के किसी भी इलाके का रहने वाला क्यों न हो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का चाहने वाला बन जाता। और उसको मानना पड़ता कि हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) फसाहत व बलागत के इमाम हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) रूक-रूक कर साफ कलाम करते।

अहले अरब को अपनी फसाहत व बलागत पर बहुत नाज था और लाजवाब अशआर को खाना-ए-काबा की दीवारों पर लटका दिया करते थे। लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की फसाहत व बलागत के जौहर देख कर दंग रह जाते थे हजरत अबू बक्र सिद्दीक (रजि0) हुजूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की फसाहत व बलागत पर हैरत करते थे।

इसलिए आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) फरमाते हैं कि मैने अरब की हर गली, कूचा और बाजार में घूमते हुए तमाम फसीह व बलीग कलाम सुना है लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की फसाहत व बलागत के मुकाबले में वह सब बहुत नीचे हैं।

बहादुरी:- हजरत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की जिंदगी का बहादुरी का दौर बचपन से वफात तक आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की शुजाअत के जवाहर के नमूने रौशन रहे हैं। बचपन में जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को बुतों की कसम खाने पर मजबूर किया गया कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया कि मेरे सामने उनका नाम ना लो, मुझे उनसे सख्त नफरत है। एक मर्तबा जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) चचा अबु तालिब के साथ सीरिया के सफर पर गए तो काफिले को एक ऐसी वादी से गुजरना था जिसमें पानी भरा हुआ था काफिले के लोग खौफजदा हो गए लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने कदम बढ़ाया और सबको पीछे-पीछे आने की हिदायत करके वादी को काफिले के साथ पार कर लिया।

हजरत अली (रजि0) फरमाते हैं कि आहजरत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) से ज्यादा दुश्मन का मुकाबला करने वाला कोई न था। जब ज्यादा खौफनाक सूरत अख्तियार कर जाती और हंगामा मच जाता तो हम आपकी ही आड़ लेते। एक रात मदीने के लोग एक अजनबी आवाज से घबरा गए। कुछ लोग आवाज की जानिब दौड़े तो देखते हैं कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) घोड़े पर सवार वापस आ रहे हैं।

लोगों के पहुंचने से पहले ही आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) आवाज का पता लगाने निकल चुके थे। वापस आकर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने लोगों से कहा घबराओ नहीं।

हक की बात कहना:‍ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) हक की बात कहने से कभी बाज न आए और न दुनिया की कोई चीज इससे आपको रोक सकी। अगरचे इससे रोकने के लिए आपके पास माल व दौलत, सोना, चांदी, जवाहरात, बड़ी इमारतें, हुकूमतें और खूबसूरत औरतों तक की पेशकश की गई लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने उनकी तमाम पेशकश को ठुकरा दिया और कहा कि मैं हक की तरफ से आया हूूं, हक की बात कहना मेरा काम है सफा और मरवा के बराबर सोने और चांदी के ढेर भी मेरे सामने लाकर रख दिए जाएं तो भी मैं हक बात कहने से बाज नहीं रह सकता।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) ने हर मामले और हर मरहले में हक गोई से काम लिया। ( सैयद हामिद अशरफ )

—————बशुक्रिया: जदीद मरकज़