लखनऊ, 02 मार्च: इलहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बेंच जो चीफ़ जस्टिस और जस्टिस डी के उपाध्याय पर मुश्तमिल थी के सामने
सैंटर्ल हज कमेटी के इस फ़ैसले जिस की रो से अब कोई शख़्स दुबारा हज के लिए नहीं जा सकता है, के जवाज़ को ज़िला हज कमेटी के सदर ने चैलेंज किया। फ़ाज़िल बेंच को आज समाअत करनी थी, लेकिन अदालत ही इस दरख़ास्त पर समाअत का नंबर नहीं आसका जिस की बिना पर अब इस दरख़ास्त पर कल समाअत होगी।
याद रहे कि सैंटर्ल हज कमेटी ने इस साल भी ये फ़ैसला किया है कि अगर किसी शख़्स ने एक मर्तबा हज करलिया है तो फिर उस को दुबारा हज करने की इजाज़त नहीं दी गई। सैंटर्ल हज कमेटी के इस आजलाना फ़ैसले के ख़िलाफ़ ज़िला हज कमेटी के सदर ने इलहाबाद हाईकोर्ट में चैलेंज किया। दरख़ास्त गुज़ार का कहना है कि सैंटर्ल हज कमेटी के इस फ़ैसले से मुसलमानों के एक शरई इख़तियार पर ज़रब पड़ी है।
दरखास्त गुज़ार का कहना है कि एक मर्तबा हज करने वाले शख़्स को दुबारा हज पर जाने से इस लिए नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि एक मर्तबा का हाजी अपने वालदैन की जानिब से हज्जे बदल कर सकता है। ये एक शरई मसला है शरीयते इस्लामी ने उस की अजामत दी है। बगै़र हज किए हुआ शख़्स हज्जे बदल नहीं कर सकता है। ऐसी सूरत में सैंटर्ल हज कमेटी का ये फ़ैसला शरीयते इस्लामी में मुदाख़िलत और शरई क़ानून की पाबंदी से रोकने के मुतरादिफ़ है। दरख़ास्त गुज़ार ने मर्कज़ी हज कमेटी के इस फ़ैसले को ग़ैर आईनी ग़ैर दस्तूरी क़रार देने की इस्तिदा की है।