हज और क़ुरबानी अल्लाह के नेक बंदे की यादगार और ख़ुदा के सामने तस्लीम ओ रज़ा का शिआर है

मेरी नमाज़ ,मेरी क़ुरबानी ,मेरा जीना ,मेरा मरना सब उस एक अल्लाह के लिए है जो तमाम जहानों का मालिक है॥
ﻟَﺒَّﻴْﻚَ ﺍﻟﻠَّﻬُﻢَّ ﻟَﺒَّﻴْﻚَ ﻟَﺎ ﺷَﺮِﻳﻚَ ﻟَﻚَ ﻟَﺒَّﻴْﻚَ ﺇِﻥَّ ﺍﻟْﺤَﻤْﺪَ ﻭَﺍﻟﻨِّﻌْﻤَﺔَ ﻟَﻚَ ﻭَﺍﻟْﻤُﻠْﻚَ ﻟَﺎ ﺷَﺮِﻳﻚَ ﻟَﻚ

इस्लाम के माने हैं इंसान अपने आप को अपने पैदा करने वाले मालिक के हुक्म के सामने बिछा दे ,उसके सामने बिला हुज्जत सरेंडर कर दे ,अपनी ख़्वाहिशात को ख़ुदा की रज़ा के लिये क़ुरबान कर दे।

अबुल अंबिया हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिये क़ुरबानी की कोई क़िस्म बाक़ी ना रखी ,आज़माइश की कोई मंज़िल एैसी ना गुज़री जिसको उन्होंने सब्र ओ इसतक़ामत से पार ना किया हो ।

अभी आपका बचपन ही था मगर आज़र के तराशे हुए बुतों की परसतिश देख कर बेचैन रहने लगे और अक्सर हक़ीक़ी माबूद की तलाश में फिक्रमंद रहने लगे ,कभी रात की तारीकी में चमकते सितारे को माबूद समझते तो कभी चौदहवीं के चाँद को ख़ुदा समझते तो कभी रौशनी बिखेरते सूरज के ख़ुदा होने के वहम में मुब्तिला हो जाते मगर हासिल ये के फितरतन मुव्वहिद इब्राहीम माह ओ नुजूम को भी ख़ुदा तस्लीम करने पर राज़ी ना हुये तब उस ख़ालिक़ ए दो जहान की वहादानियत के असरार ओ रुमूज़ आपकी ज़ात कुछ इस तरह रौशन हुये

“यकता है बेमिस्ल है समद है वो माबूद
किसी का वालिद वो नहीं और ना वो मौलूद”

कि ना सिर्फ आपको पैग़म्बरी का शरफ अता किया गया बल्कि आपको अबुल अँबिया का आला मनसब भी हासिल हुआ,आपको ख़लीलउल्लाह का एज़ाज़ बख़्शा गया और आप ही नस्ल में इमामुल अंबिया हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैदा फरमा कर अल्लाह ने आपके मुक़ाम ओ मरतबे को बुलंदी अता कर दी और आपकी पाक ज़ात को क़यामत तक के लिये मुव्ह्हिदीन के लिए मेअयार तौहीद मुक़र्रर फरमा दिया ।

मुशरिकाना अक़ाएद और बुतपरस्ती से बेज़ारी और बुतशिकनी के नतीजे में बुतशिकनी की सज़ा के तौर पर आग में झोंक दिये गये मगर रहमते इलाही ने जोश में आ कर अपनी आग़ोश में ले लिया और आग को हुक्म दिया
یا نار کونی بردا و سلاما علی ابراہیم
और आग गुलज़ार हो गयी ।

हज और क़ुरबानी दरअसल अल्लाह के इसी नेक बंदे की यादगार और ख़ुदा के सामने तस्लीम ओ रज़ा का शिआर है।

काबातुल्लाह शरीफ जिसकी बुनियादें तक मिट चुकी थीं हज़रत इब्राहीम ने उसको दोबारा उन्हीं क़दीम ख़ुतूत पर तामीर किया,आज भी मुक़ामे इब्राहीम काबा शरीफ के सामने मौजूद है।

ज़मज़म का कुआँ उनके बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम के लिये अल्लाह की मदद और एहसान की याद दिलाता है।
सफा और मरवह की सई उनकी बीवी हज़रत हाजरा की बेचैनी और मादरी तड़प की याद ताज़ा कराती है और फिर मिना की क़ुरबानी उस ज़बह-ए-अज़ीम की यादगार है जिसमें एक पैग़म्बर अपने जिगर गोशे को अपने ख़ालिक़ की रज़ा के लिये अपने बशरी शऊर के मुताबिक तक़रीबन क़ुरबान कर चुका था मगर ख़ुदा को बेटे की क़ुरबानी नहीं इब्राहीम की आज़माईश मक़सूद थी और इब्राहीम इस आज़माईश में कामयाब हुए और बतौर इनआम अल्लाह ने अपनी रज़ा और रहती दुनिया तक उनकी क़ुरबानी की यादगार को बाकी रखने का तोहफा अता कर दिया ।

हमारे प्यारे रसूल हज़रत मुहम्मद_मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि क़ुरबानी किया करो ये मेरे बाप इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है।

जमरात की कंकरियां अज़्मे इब्राहीमी और शैतानी वसवसे से पंजा आज़माई की यादगार है ।

ज़िन्दगी में बहुत से ऐसे मौक़े आते हैं जब हमारी ख़्वाहिशात कुछ और होती हैं और ख़ुदा का हुक्म कुछ और होता है यही वक़्त होता है जब हम को चाहिये कि हम हज़रत इब्राहीम के किरदार से रौशनी हासिल कर के शैतान और नफ्से अम्मारह को शिकस्त दें।

शिर्किया अमल , मुआशरे के ग़लीज़ रस्मो रिवाजात,निकाह और वलीमे में असराफे बेजा ,
ज़ात पात हसब नसब और क़ौमियत की बुनियाद पर इंसानों में तफरीक़ करना ,जहेज़ की लानत ,रिश्वत ,चोरी ,बेईमानी ,जालसाज़ी,धोखाधड़ी ,फह्हाशी ,उरयानियत ,सूदी कारोबार,हक़ तलफी ,औरतों के साथ ग़ैर इंसानी ग़ैर इस्लामी सुलूक,ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ख़ामोश तमाशाई बने रहना,ज़ुल्म के ख़िलाफ़ जद्दोजहद से जान छुड़ाना वगैरह वगैरह इस दौर में हमारी आज़माइश हैं ।

साहिबे ईमान के सामने अगर हज़रत इब्राहीम की आज़माइशें आईना बन कर सामने रहें और साहिबे ईमान उस आईने में अपनी सूरत देख कर अपने अमल और किरदार का मुहासिबा करें कि हम ने जानवर की क़ुरबानी कर के अलामती तौर पर ख़ुदा के सामने सरेंडर का जो वादा किया है क्या हम रोज़ मर्राह की ज़िन्दगी के मुआमलात में उस वादे को वफा कर रहे है?
आईये आज हम अहद करते हैं कि हमारा जीना ,हमारा मरना,हमारी क़ुरबानी हमारी नमाज़ फक़त अल्लाह की रज़ा ओ ख़ुशनूदी हासिल करने के वास्ते होगी ना कि दुनिया में नाम ओ नुमूद इज़्ज़त ओ जाह ओ जलाल के वास्ते !
अल्लाह हम सब को अमल की तौफीक अता करे
आमीन

शैख़ मौहम्मद आमिर क़ुरेशी