रियास्ती हज कमेटी की जानिब से सेलेक्टेड आज़मीन-ए-हज्ज के पासपोर्टस की वसूली की कंप्यूटराईज़ड रसीद और ऑनलाइन डाटा ऐन्ट्री आज़मीन के लिए बाइस(वजह) ज़हमत बन चुकी है । कमेटी की जानिब से आज़मीन को ऑनलाइन कंप्यूटराईज़ड ऐन्ट्री के लिए क़तार में खड़ा किए जाने के सबब घंटों दरकार होरहे हैं जो आज़मीन के लिए तकलीफ़ का बाइस(वजह) हैं ।
साबिक़ मैं (पहले)आज़मीन-ए-हज्ज के पासपोर्ट वसूल करते हुए वसूली की रसीद हज कमेटी के स्टैंप साथ पासपोर्ट नंबर लिख कर दी जाती थी लेकिन इस मर्तबा हज कमेटी ने तजुर्बा की बुनियाद पर ऑनलाइन ऐन्ट्री के बाद ही रसीद जारी करने का जो फ़ैसला किया है इस से आज़मीन परेशान हैं ।
5जून को मुंबई से हज कमेटी वैब साईट में ख़राबी पैदा होजाने से रियासत के आज़मीन जो कि पासपोर्ट दाख़िल करने हज हाउज़ पहुंचे थे उन्हें चार घंटे से जियादा इंतिज़ार करना पड़ा। आज़मीन ने मुलाज़मीन पर ब्रहमी का इज़हार किया ।
मुलाज़मीन के बमूजब वैब साईट में ख़राबी के लिए रियास्ती कमेटी ज़िम्मेदार नहीं लेकिन इस तरह की ख़राबियां पैदा होती हैं जिनकी दरूस्तगी के लिए वक़्त दरकार होता है । बताया जाता है कि हज कमेटी ऐगज़ीक्यूटिव ऑफीसर-ओ-सीनीयर ओहदेदारों की ईमा पर ऑनलाइन रसाइद के इजरा (जारी करने)का फ़ैसला किया गया जिस के सबब(वजह) आज़मीन को मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है ।
साबिक़ में जिस अंदाज़ से पासपोर्ट जमा करवाने पर रसीद दी जाती थी ताहम कमेटी का नया तरीका ना सिर्फ आज़मीन के लिए दुशवारीयों का बाइस(वजह) है बल्कि मुलाज़मीन भी इस से परेशान हैं चूँकि आज़मीन को रोक कर ऑनलाइन डाटा ऐन्ट्री के बाद रसीद जारी करने के लिए उन्हें भी वक़्त दरकार है ।