हज की फजीलत और बारगाहे रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) की हाजिरी

)मौलाना मोहम्मद मुजाहिद हुसैन हबीबी)हज अरकाने इस्लाम में से एक अहम रूक्न है। अल्लाह तआला ने जिन लोगों को ईमान व इस्लाम की दौलत से सरफराज फरमाया उनमें जो लोग साहबे हैसियत हैं और हज करने की इस्तताअत रखते हैं अल्लाह तआला ने उनपर जिंदगी में एक बार हज फर्ज फरमाया है। कुरआने करीम में अल्लाह तआला का इरशाद है -‘‘ और अल्लाह के लिए लोगों पर फर्ज है कि उसके घर का हज करे जो इसकी इस्तताअत रखते हों। (आले इमरान-97)

हदीस में भी हज बैतुल्लाह की अहमियत और इसके फजायल व बरकात कसरत से बयान हुए हैं जिन्हें पढ़ने के लिए नीचे की लाइनों को गौर फरमाएं-

हज अफजल तरीन अमल है- हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से मरवी है वह कहते हैं कि किसी ने रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) से दरयाफ्त किया कौन सा अमल सबसे पसंदीदा है? आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- सबसे पसंदीदा अमल अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाना है। पूछने वाले ने फिर पूछा- इसके बाद कौन सा अमल सबसे अच्छा है? फरमाया- अल्लाह के रास्ते में जेहाद करना। पूछने वाले ने दरयाफ्त किया- इसके बाद कौन सा अमल सबसे अच्छा है? तो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया- हज मबरूर (यानी वह हज जिसे अल्लाह कुबूल फरमा ले) (सही बुखारी)

हज का सिला व सवाब- हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से मरवी है वह कहते हैं कि मैंने रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) को यह फरमाते हुए सुना जिसने अल्लाह की रजा के लिए हज किया और दौराने हज न उसने बेहयाई की और न फसक किया तो वह गुनाहों से ऐसा पाक हो गया जिस तरह अपनी मां के पेट से बाहर आने के दिन गुनाहों से पाक था। (बुखारी)
जामे तिरमिजी में हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से एक हदीस इस तरह मरवी है- ‘‘जिस ने हज किया और दौराने हज न तो बेहूदा गोई की और न फसक किया तो अल्लाह तआला उसके पिछले गुनाहों को माफ फरमा देगा।’’ (जामे तिरमिजी)
हज बंदा के गुनाहों को दूर कर देता है- हजरत उमर (रजि0) से मरवी है, वह कहते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- हज और उमरा एक दूसरे के साथ एक के बाद अदा करो, इसलिए कि एक के बाद एक अदा करना फुक्र व फाका और गुनाहों को इस तरह दूर कर देता है जिस तरह आग लोहे के जंग को दूर कर देती है। (इब्ने माजा)
हज मबरूर की जजा जन्नत है – हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से मरवी है वह कहते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- एक उमरा दूसरे उमरा के बीच होने वाले गुनाहों का कफ्फारा है और हज मबरूर तो इसकी कोई जजा नहीं सिवाए जन्नत के। (इब्ने माजा)
हाजी अल्लाह का मेहमान है – हजरत जाबिर (रजि0) से मरवी है वह कहते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- हज और उमरा करने वाले अल्लाह के मेहमान है वह जो दुआएं मांगे अल्लाह उनकी दुआ कुबूल फरमाता है और वह जो सवाल करे उन्हें अल्लाह अता फरमाता है। (तरगीब व तरहीब)
हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से मरवी है वह कहते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- जो हज के इरादे से निकला फिर फौत हो गया तो कयामत तक के लिए उसके आमाल नामे में हज का सवाब लिखा जाएगा। इसी तरह जो उमरा के इरादे से निकला और फौत हो गया तो कयामत तक उसके आमाल नामे में उमरा का सवाब लिखा जाएगा। (तरगीब व तरहीब)
यहां तक तो आप ने हज करने की फजीलतें पढ़ी है अब आइए यह भी गौर फरमाएं कि इस्तताअत के बावजूद हज न करने वाले की नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने कितनी मज़म्मत बयान फरमाई है।
हज न करने पर वईद – हजरत अली (रजि0) से मरवी है वह कहते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- जो जादे राह और बैतुल्लाह शरीफ तक पहुंचने की सवारी की कुदरत रखता हो लेकिन इसके बावजूद अगर उसने हज न किया तो उसे चाहिए कि वह यहूदी होकर मरे या नसरानी होकर मरे। (जामे तिरमिजी)
जिंदगी में सिर्फ एक बार हज फर्ज है- हजरत अली बिन अबी तालिब (रजि0) से मरवी है वह फरमाते हैं कि जब यह आयत नाजिल हुई- ‘‘और अल्लाह के लिए लोगों पर फर्ज है कि वह उसके घर का हज करें जो इस रास्ते की इस्तताअत रखते हैं।’’ तो सहाबा (रजि0) ने रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) से अर्ज किया- क्या हर साल हम पर हज फर्ज है? आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) खामोश रहे। इसी तरह सहाबा ने दो बार हुजूर से सवाल किया तो आप ने फरमाया- नहीं, हर साल हज फर्ज नहीं है। और अगर मैं यह कह देता कि हां तो हर साल हज फर्ज हो जाता। (जामे तिरमिजी)
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि0) से मरवी है, वह कहते हैं कि हजरत इकरा बिन हाबिस ने नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) से पूछा- या रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम )! क्या हज करना हर साल फर्ज है या जिंदगी में एक बार फर्ज है तो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया- जिंदगी में सिर्फ एक बार हज फर्ज है। हां कोई इस्तताअत रखे तो नफिली हज कर सकता है। (इब्ने माजा)
खुद नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने सिर्फ एक बार हज फरमाया- हजरत कतादा (रजि0) से मरवी है, वह कहते हैं कि मैंने हजरत अनस (रजि0) से सवाल किया- नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने कितनी बार हज फरमाया? तो हजरत अनस (रजि0) ने जवाबन कहा- आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने एक बार हज अदा किया जबकि आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने चार उमरे किए। (सही मुस्लिम)
हज फर्ज होने पर अदा करने में जल्दी करो – हजरत फुजैल बिन अब्बास (रजि0) से मरवी है, वह कहते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- जो हज का इरादा रखता हो उसे चाहिए कि जल्द से जल्द हज करे। इसलिए कि आदमी कभी मरज में मुब्तला हो जाता है, कभी सामान खो जाता है और कभी कोई और हाजत दरपेश होती है। (इसलिए हज करने में जल्दी करनी चाहिए शायद आदमी बाद में हज करने के लायक न रहे)। (इब्ने माजा)
हज की शर्तें – हज की आठ शर्ते हैं जब यह सब पाई जाएं तब ही हज फर्ज होगा और वह यह हैं:-

मुसलमान होना , अगर दारूल हरब में हो तो इसकी फर्जियत का इल्म होना, बालिग होना,आकिल होना, आजाद होना, तनदुरूस्त होना कि हज को जा सके (लिहाजा अपाहिज, अंधा जिसके पांव कटे हुए हो, इतना बूढ़ा कि सवारी पर खुद बैठ न सके, इन लोगों पर हज फर्ज नहीं)
मसला – पहले तनदुरूस्त था और दूसरी शर्ते भी पाई जाती थी लेकिन हज न किया और अपाहिज हो गया तो उसपर वह हज फर्ज बाकी है अब खुद नहीं कर सकता तो हज बदल करवाए। सफर पर खर्च का मालिक का होना और सवारी पर कादिर होना। सफर खर्च और सवारी पर कादिर होने का यह मायने है कि हाजते असलिया छोड़ कर इतना माल हो कि सवारी पर मक्का जा सके और वहां से सवारी पर सवार होकर वापस आ सके और इतनी रकम हो कि जाने से लेकर आने तक अपना खर्च और अहल व अया का खर्च मुतवस्सुत दर्जे पर काफी हो। ऊपर लिखी शर्तों के पाए जाने से हज फर्ज होगा और हज न करने पर सख्त गुनाह होगा।
रौजा-ए-रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) पर हाजिरी – हज के बाद या हज से पहले नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) की बारगाह में हाजिरी देना ऐन सआदतमंदी और फिरोजबख्ती की अलामत और हज की कुबूलियत का जरिया है। इसलिए हर हाजी को चाहिए कि वह इस लाजवाल दौलत को हासिल करने की कोशिश करे। हदीस में है कि हजरत हातिब (रजि0) से मरवी है- वह फरमाते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया- जो मेरे विसाल के बाद मेरी जियारत के लिए आया तो वह ऐसा है गोया उसने मुझ से हयाते जाहिरी में मुलाकात की और जो मक्का या मदीना में इंतकाल कर जाए तो वह कयामत के दिन अजाबे इलाही से अम्न में होगा। (बेहिकी शरीफ)

हजरत इब्ने उमर (रजि0) से मरवी है वह फरमाते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया- जिसने मेरी कब्र की जियारत की तो मैं उसकी शफाअत करूं और कयामत के दिन उसकी तरफ से शाहिद हूंगा। (बेहकी)। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने फरमाया- जिसने मेरी कब्र शरीफ की जियारत की उसकी शफाअत मेरे जिम्मे वाजिब हो गई।

नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) ने इरशाद फरमाया- जिसने हज किया और मेरे विसाल के बाद मेरे रौजे की जियारत के लिए आया तो वह ऐसा है गोया उसने मेरी हयाते जाहिरी में मुझ से मुलाकात की। हजरत अली (रजि0) की जियारत की तो कयामत के दिन वह नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम)के पड़ोस में होगा।

नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया जिसने हज किया और मेरी जियारत को न आया तो उसने मुझ पर जुल्म किया। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- जो मेरी जियारत के लिए मदीना आए तो कयामत के दिन मैं उसकी शफाअत करूंगा और शहादत दूंगा। मजकूरा अहादीस के अलावा और भी कई हदीसों से हज के बाद रौजा-ए-रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) पर हाजिरी की ताकीद मिलती है। इसलिए हर हाजी को चाहिए कि वह नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) की बारगाह में हाजिरी देकर अपनी आंखो को ठंडा करे और अपनी निजात व मगफिरत का सामान करे।

———-बशुक्रिया: जदीद मरकज़