हज की फर्जियत:- हजरत इब्ने उमर (रजि0) से रिवायत है कि एक शख्स नबी करीम (स०अ०व०) की खिदमत में हाजिर हुआ और दरयाफ्त किया कि या नबी करीम (स०अ०व०)! कौन सी चीज हज को वाजिब करती है? आप (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया- जादे राह और सवारी। (तिरमिजी, इब्नेमाजा)
हज और इसकी इस्तताअत:- अल्लाह तआला के इरशाद के हवाले से कशीरी (रह०) ने बयान किया है कि इस्तताअत कई किस्म पर है। एक तो अपने नफ्स व माल से इस्तताअत रखने वाला है और वह सही व सालिम शख्स है और गैर के सहारे इस्तताअत रखने वाला है वह अपाहिज है और वह शख्स जो बनफ्सा हज करने से आजिज हो और एक अपने रब के सहारे इस्तताअत रखने वाला है और वह फकीर है क्योंकि उसकी बलाओं को उसकी सवारी नहीं झेलती बल्कि वह खुद झेलता है।
हज गुनाहों से पाकी का सबब:- नबी करीम (स०अ०व०) से मरवी है कि जब हाजी अपने घर से निकलता है तो गुनाहों से ऐसा निकल आता है कि गोया आज ही अपनी मां के पेट से पैदा हुआ और उसको हर कदम पर सत्तर बरस की इबादत का सवाब मिलता रहता है यहां तक कि वह अपने घर लौट आता है और जब वह लौटे तो उसकी दुआ को गनीमत समझो क्योंकि उसकी दुआ मुस्तजाब होती है।
नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है कि हज मबरूर के सिवा जन्नत के कोई जजा नहीं है।
काबातुल्लाह अल्लाह तआला से रजा मंदी का जरिया:- हजरत जाफर सादिक (रजि0) से मरवी है कि एक शख्स ने उनके वालिद से बैतुल्लाह की इब्तेदा के बारे में सवाल किया तो आपने फरमाया- अल्लाह तआला ने फरिश्तों से फरमाया था- बेशक जमीन में मैं एक खलीफा मुकर्रर करने वाला हूं। उन्होंने कहा- क्या आप इसमें ऐसे को मुकर्रर करेंगे जो इसमें फसाद मचाएगा।
इस पर अल्लाह तआला की उनपर नाराजी हुई और वह सात रोज तक अर्श के गिर्द तवाफ करते रहे और खुदा की रजाजूई में मशगूल रहे फिर अल्लाह तआला उनसे रजामंद हो गया और इरशाद फरमाया कि जमीन में मेरा एक घर बनाओ कि बनी आदम में से जिस पर मैं गुस्सा हूंगा वह इसके जरिये से पनाह मांगेगा और फिर मैं उससे रजामंद हो जाऊंगा इसलिए उन्होने यह घर बनाया।
हज तमाम इबादतों के मुशाबा हैः- मजम उल अहबार में है कि यह हज का कमाल है कि तमाम उम्र में सिवा एक बार के और फर्ज नहीं और यह भी उसका कमाल है दूसरी इबादतों के भी मुशाबा है। इसलिए इसका एहराम तहरीमा नमाज के मुशाबा है और अजकार तवाफ वकूफ अजकारे सलात के मुशाबा है और सई और तवाफ रूकूअ के मानिन्द है मिना में ठहरना और रमी जमार करना जेहाद के मिस्ल है मशअर हराम में ठहरना एतकाफ की तरह है और मशअर हराम मुजदुल्फा के सिरे पर एक छोटा सा पहाड़ है और उसमें खर्च करना जकात के मुशाबा है।
जिसने हज किया गोया उसने तमाम इबादात को अदा किया और नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया- हज पर उमरा करने वाले खुदा के मेहमान है जो कुछ वह मांगते हैं उनको अता होता है और जो उनकी दरख्वास्त होती है मकबूल होती है और जो कुछ वह खर्च करते हैं बजाए एक दरहम के दस-दस लाख अता करता है। इसको बेहकी ने रिवायत किया है और तबरानी की भी एक रिवायत में आया है कि हज में खर्च करना फी सबीलिल्लाह सात सौ गुना खर्च करने के मिस्ल है।
हज गुनाहों को धुलने का जरिया:- नसफी (रह०) ने जिक्र किया है कि किसी नेक मर्द ने हज किया जब अरफात से वापसी हुई तो उसे याद आया कि अपनी हुमयानी भूल आया है फिर वह अरफात लौट गया तो उसे वहां बंदर और सुअर मिले जिनसे वह घबरा गया। फिर किसी ने उससे कहा कि खौफ न कर हम तो हाजियों के गुनाह हैं हमें यहां छोड़कर गए हैं और पाक साफ होकर लौट गए हैं। उसने हुमयानी ले ली और ताज्जुब करता हुआ वापस आया।
वकूफे अरफा में दुआ:- नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया जो मुसलमान अरफा की शाम को मौकुफ के करीब पहुंच गया हो और किब्ला रूख होकर ‘‘लाइलाह इल्लाहोे वहदहू ला शरीक लहू लहुल मुल्क….’’ सौ बार पढ़ता है फिर सौ बार ‘‘कुल होवल्लाहू अहद’’ पढ़ता है फिर सौ बार ‘‘अल्लाहुम्म सल्ले अला…’’ पढ़ता है तो अल्लाह तआला फरिश्तों से फरमाता है ऐ मेरे फरिश्तों! मेरे बंदो की क्या जजा होनी चाहिए? उसने मेरी पाकी बयान की, मेरा कलमा पढ़ा, मेरी बड़ाई और अजमत की, मेरी हम्द व सना की और मेरे नबी पर दुरूद भेजा, अच्छा ऐ मेरे फरिश्तों! तुम गवाह रहो कि मैंने उसे बख्श दिया और उसकी सिफारिश खुद उसके हक में मंजूर की अगर मेरा बंदा मुझ से दरख्वास्त करता तो मैं सारे अहले मौकुफ के लिए उसकी सिफारिश मंजूर कर लेता।
अल्लाह तआला के यहां अहले मौकुफ की बख्शिश लाजमी:- सफवतुल सफवा में लिखा है कि इब्ने मौफिक का बयान है कि मैंने कुछ ऊपर पचास हज किए और अहले मौकुफ की तरफ मैंने देख कर कहा कि ऐ अल्लाह! अगर उनमें से कोई ऐसा हो जिसका हज आपने न कुबूल किया हो तो उसको मेरा हज इनायत कर दीजिए। इसके बाद जब मैं मुजदुल्फा में सो रहा था तो ख्वाब में अल्लाह तआला को देखा कि मुझ से इरशाद हो रहा है कि ऐ इब्ने मौफिक! तू मुझ को अपना करम दिखलाता है, मैंने सारे अहले मौकुफ को और इतने ही औरो को बख्श दिया और उनमें से हर एक की उसके घर वालों और खानदान वालों की बाबत सिफारिश भी मंजूर कर ली, मैं साहबे तकवा और साहबे मगफिरत हूं।
एक दूसरी रिवायत है कि कसम अपनी इज्जत और जलाल की। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उस मौकुफ में कोई आकर ठहरा हो और उसे मैंने बख्श न दिया हो, फिर उस खुशी की हालत में मेरी आंख खुल गई और इस वाकिये की मैंने यहया बिन मआज राजी को इत्तेला की। उन्होंने फरमाया अगर तुम्हारा ख्वाब सच्चा है तो तुम चालीस रोज और जिंदा रहोगे। इसलिए जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही हुआ।
इब्ने अब्बास (रजि०) की रिवायत है फरमाते हैं कि नेकियों के मुसल्ले पर नमाज पढ़ा करो और नेकियों का पानी पिया करो। जब उनसे इससे मुताल्लिक दरयाफ्त किया गया तो फरमाया- नेकियों का मुसल्ला मीजाब के नीचे है और नेकियों के पीने की चीज आबे जमजम है।
आबे जमजम:- सही मुस्लिम में नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है कि जमजम मजेदार खाना और शिफा-ए-मरीज है और मजेदार खाने से मुराद यह है कि जो इसे पी लेता है उसे पेट भरा हुआ महसूस होता है। इब्ने मुबारक फरमाते थे कि नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया है कि आबे जमजम जिसलिए पिया जाए उसी के लिए है लिहाजा मैं उसको तिशनगी कयामत के लिए पीता हूं।
शहर मक्का मुस्तजाबुद्दुआ है:- हसन बसरी (रह०) ने जिक्र किया है कि काबा के गिर्द तीन सौ नबी दफन हैं उनमें से सत्तर नबी हज्र असवद और रूक्न यमानी के बीच है और इस्माईल और उनकी वालिदा की कब्र मीजाब के नीचे पत्थर में है जो शख्स मक्का में एक नमाज पढ़ता है तो एक लाख नमाजों का सवाब पाता है बिला शुब्हा जन्नत मक्का की तरफ कुशादा है एक दरवाजा काबा की तरफ, एक दरवाजा मीजाब की तरफ, एक दरवाजा सफा की तरफ और एक दरवाजा मरवा की तरफ है और सिवा मक्का के सरजमीन पर मैं कोई ऐसा शहर नहीं जानता जिसमें जब कोई दुआ करता हो तो फरिश्ते आमीन-आमीन कहते हों। (
मौलाना मोहम्मद इदरीस हुब्बान रहीमी)
————बशुर्किया: जदीद मरकज़