हज सब्सीडी दस साल के अंदर ख़त्म‌ करदी जाए

* सुप्रीम कोर्ट का मर्कज़ को हुक्म, आजीमीन की अक्सरियत को भी नागवार(ना पसंद)
* सब्सीडी की रक़म मुसल्मानों की तालीमी-ओ-मआशी तरक़्क़ी पर ख़र्च करने की तजवीज़
* हज सिर्फ़ साहिब इस्तिताअत(मालदार शख्स) पर फ़र्ज़, क़ुरान मजीद की आयत का हवाला
* ख़ैर सीगाली हज वफ़द भेजने का सिल्सिला रोक दिया जाए

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ग़ैरमामूली(अहम) फैसला सुनाते हुए मर्कज़ी हुकूमत हज सब्सीडी अंदरून दस साल(के अंदर) ख़त्म‌ करने का हुक्म दिया ।

अदालत ने कहा कि सब्सीडी की ये रक़म मुसल्मानों की समाजी-ओ-तालीमी तरक़्क़ी के लिए सर्फ(खर्च) की जा सकती है । सुप्रीम कोर्ट ने बड़े पैमाने पर ओहदेदारों को ख़ैर सगाली हज वफ़द के तौर पर रवाना करने से भी रोक दिया जिन का मनमानी और बेतरतीब अंदाज़ में इंतिख़ाब किया जाता है।

जस्टिस आफ़ताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई पर मुश्तमिल(को शामील) बंच ने क़ुरान मजीद की आयत का हवाला दिया जिस का मफ़हूम(मत्लब) ये है कि जो लोग सफ़र हज के माली और माद्दी तौर पर मुतहम्मिल(बरदाशत करने कि ताकत रख्ते) होँ, उन्ही पर उसे फ़र्ज़(लाजिम) किया गया है।

बंच का ये एहसास(मान्ना) था कि इन के मुक़द्दस सफ़र हज के लिए हुकूमत की जानिब से ख़ातिरख़वाह(जरुरत के मुताबिक) रक़म की फ़राहमी(ना मिल्ने) से शायद कई आज़मीन एक तरह की बे चैनी महसूस करते होँ। ये भी एक हक़ीक़त है कि दीगर कई(दूसरे बहुत सारे) मज़हबी मुआमलात में सरकारी फंड्स और वसाइल को इस तरह रास्त या बिल्वासता इस्तिमाल नहीं किया जाता। चुनांचे हमारी ये राय है कि हज सब्सीडी एक एसी चीज़ है जिसे ख़त्म‌ करना ही मौज़ूं(दूरुस्त‌) होगा।

मर्कज़ इस वक़्त फ़ी आज़िम ए हज(एक हज में जाने वाले को) 38,000 रुपया की रक़म बतौर सब्सीडी फ़राहम करता(देता) है। हज कमेटी के ज़रीया सऊदी अरब जाने वाले आज़मीन को फ़िज़ाई(हवाइ) सफ़र में ये सब्सीडी दी जाती है। बंच ने आज़मीन हज के लिए सब्सीडी बतदरीज(आहिस्ता आहिस्ता) ख़त्म‌ करने के मक़सद से दस साल का वक़्त मुक़र्रर(तय) किया है।

गुज़श्ता(पीछ्ले) साल तकरीबन(लग भग) 1.25 लाख आज़मीन ने हज अदा किया था । बंच ने ये एहसास(वीचार) ज़ाहिर किया कि मर्कज़ी हुकूमत आज के दिन से दस साल तक बतदरीज(आहिस्ता आहिस्ता) सब्सीडी कम कर्दी जाये और आख़िर कार(फीर) उसे मुकम्मल तौर पर ख़त्म‌ करदे।

सब्सीडी की ये रक़म का मुसल्मानों की तालीमी और दीगर(दूसरी) समाजी सरगर्मियों के लिए इस्तिमाल किया जा सकता है ओर ये फ़ायदा मंद भी होगा। अदालत मुल्क भर के मुसल्मानों की जानिब से कोई दावे नहीं कर सकती और वो सिर्फ़ मुस्ल्मानों को ये बावर करने(बताने) की कोशिश कर सकती है कि इन के हक़ में अच्छा या ख़राब मज़हबी अमल कौन्सा है। हमें इस बारे में कोई शुबा नहीं कि मुसल्मानों की अक्सरियत(बडी तादाद) जो फ़रीज़ा हज की अदाएगी के लिए हज कमेटी में अपनी दरख़ास्त पेश करती(देती) है, वो अपने मुक़द्दस(पाक) सफ़र के मुकम्मल मसारिफ़(खर्चों) से पूरी तरह बाख़बर नहीं होती और जब तमाम हक़ायक़ से आज़िम हज को बाख़बर कर दिया जाये और ये बताया जाये कि हुकूमत उन के सफ़र हज के लिए ख़ातिरख़वाह रक़म बतौर सब्सीडी फ़राहम कर रही है तो शायद वो एक तरह की बे चैनी महसूस करे।

सुप्रीम कोर्ट ने मज़ीद(ओर) कहा कि हज के दौरान(बिच मे) ममलकत सऊदी अरब को ख़ैर सगाली का पयाम रवाना करने के मक़सद से किसी एक लीडर और नायब को मर्कज़ी हुकूमत रवाना कर सकती है । हम हिंदूस्तान के अवाम की जानिब से इस मुक़द्दस सफ़र के मौके पर सऊदी अरब के साथ जज्बा ख़ैर सगाली की सताइश(तारीफ) करते हैं लेकिन हम ये समझने से क़ासिर(समझ नहि पा रहें) हैं कि एक बड़े और गैर मुनज़्ज़म(बगैर किसी प्लान के) या मनमानी अंदाज़ में मुंख़बा वफ़द(तय कि हुइ जमात) को भेजने से ये मक़सद पूरा होगा। इस बारे में बग़ौर(अच्छी तरह) जायज़ा लेने के बाद ये बिलकुल वाज़िह होचुका है कि ख़ैर सगाली हज वफ़द रवाना करने का अमल बंद कर दिया जाना चाहीए ।

बंच ने कहा कि हुकूमत ने मुख़ालिफ़ हिंद प्रोपेगंडा(साजीशों) को रोक्ने के मक़सद से ख़ैर सगाली वफ़द रवाना करना शुरू किया था लेकिन मौजूदा(इस वकत के) हालात में इस की ज़रूरत नहीं रही और अब ये वफ़द दीगर अग़राज़(दूसरे मकसद) के लिए काम कर रहा है। ये कोई राज़(छीपी हुइ बात) नहीं कि 1965 की जंग के बाद पाकिस्तान ने हज जैसे मुक़द्दस फ़रीज़ा को भी मुख़ालिफ़ हिंद प्रोपेगंडा के तौर पर इस्तिमाल करने से गुरेज़ नहीं किया(दूर नहि रहा) था और हिंदूस्तान की जानिब से ख़ैर सगाली वफ़द रवाना करने का मक़सद मुख़ालिफ़ हिंद प्रोपेगंडा से निमटना था। यही वजह थी कि पहली मर्तबा जो ख़ैर सगाली वफ़द रवाना किया गया इस के बाद ये सिल्सिला आज तक जारी(चल रहा) है, हालाँकि पाकिस्तान एसा कोई सरकारी ख़ैर सगाली हज वफ़द सऊदी अरब रवाना नहीं करता है।

बंच ने कहा कि ये दलील पेश की जा सकती है वक़्त और हालात की तबदीली(बदलाव) के बाद इस ख़ैर सगाली वफ़द के दौरा का मक़सद भी अब बदल चुका है लेकिन एसा महसूस होता है कि ये सिल्सिला अब रोक दिया जाना चाहीए। बंच ने उन रियासती हज कमेटियों की कारकर्दगी से वाक़फ़ियत हासिल करने की भी ख़ाहिश की जो रियासत के लिए मुख़तस(तय कीए हुए) कोटे से ज़ाइद (ज्यादा)दरख़ास्तों से किस तरह निमट्ती है।

इस ज़िमन में सुप्रीम कोर्ट ने हज कमेटी आफ़ इंडिया को तफ़सीली हलफ़नामा(शपथ पत्र) दाख़िल करने का हुक्म दिया जिस में आज़मीन हज की दरख़ास्तों की वसूली से लेकर उन के इंतेख़ाब(चूनाव) तक का अहाता किया गया(तक कि तफसील लिखी गइ हों)। इस के इलावा हलफनामा में आज़मीन की शिकायात से निमट्ने के इलावा उन्हें दी जाने वाली सहूलयात का भी ज़िक्र किया जाये। सुप्रीम कोर्ट आज मर्कज़ की जानिब से दायर की गई अपील की समाअत(सून्वाइ) कर रही थी जिस में मुंबई हाइकोर्ट के फैसले को चैलेंज किया गया है। मुंबई हाइकोर्ट ने वज़ारत उमूर ख़ारिजा(वीदेश मंत्रालय) को हुकूमत की जानिब से सब्सीडी के तहत वी आई पी कोटा के ज़रीया 11,000 आज़मीन के मिंजुमला(मे से) 800 को रवाना करने के लिए ख़ान्गी ओपरेटर्स की ख़िदमात हासिल करने की इजाज़त दी थी । बंच ने इस दरख़ास्त के जायज़ा के साथ साथ आज़मीन हज को दी जाने वाली सब्सीडीज़ पर हुकूमत की पोलीसी के जवाज़ का भी अहाता(दुरुस्तगि को भी शामिल) किया है।