हज सीज़न में भिकारीयों का बैन-उल-अक़वामी रैकेट सरगर्म

मक्का मुकर्रमा 30 अक्टूबर (ज़हीरउद्दीन अली ख़ान)माज़ूर और अपाहिज् अफ़राद से इस्तिफ़ादा सालाना 150 करोड़ रुपयॆ की तिजारत दुनिया भर से मुस्लमान फ़रीज़ा हज की अदायगी के लिए हर साल माक्का‍ उल-मुकर्रमा पहुंचते हैं ।

ल्लाह के घर की ज़यारत और तवाफ़ के इलावा अहम फ़रीज़ा की अदायगी का एहसास उन्हें एक तरह का कलबी-ओ-रुहानी सुकून बहम पहुंचाता है इस के बरअक्स बाज़ ऐसे लोग भी हैं जो इस सूरत-ए-हाल से माद्दी फ़ायदा हासिल करने का कोई मौक़ा नहीं गंवाते ।

हज के दौरान रिहायश के मुक़ाम से हिर्म शरीफ़ आते हुए या फिर मदीना मुनव्वरा में क़ियाम के दौरान रास्ता में ऐसे कई लोग नज़र आयॆगे जो जिस्मानी तौर पर माज़ूर या अपहिज़् हैं और हुज्जाज ऎ किराम उन कॊ फ़राख़ दिलाना मदद करते हैं।

लेकिन ये जान कर हैरत होगी कि बैन-उल-अक़वामी सतह पर एक रैकेट उन हज़ारों फ़क़ीरों के पसेपर्दा सरगर्म है और उन का हज सीज़न के दौरान बिज़नस तक़रीबन 150 करोड़ रुपय तक का होता है ।

दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक से ये रैकेट अपने मुंख़बा अफ़राद को जो माज़ूर होते हैं रवाना करता है जिस पर उन्हें फीकस एक लाख रुपय का ख़र्च आता है ।

इस के जवाब में ये फ़क़ीर यौमिया 10 हज़ार रुपय तक रक़म ख़ैरात के ज़रीया जमा करता है इस तरह 40 दिन क़ियाम के दौरान तक़रीबन 40 लाख रुपय रक़म जमा हो जाती है ।

इन फ़क़ीरों को एजैंट 40 दिन खाने के इलावा रिहायश का इंतिज़ाम करते हैं और असल रक़म हासिल करते हुए मामूली हिस्सा बतौर उजरत अदा करते हैं।

इन फ़क़ीरों की भी ज़मुरा बंदी की गई है और तक़रीबन दस फ़क़ीरों का एक इंचार्ज हुआ करता है । ये टोलियां गुज़शता 25 ता 30 साल से सरगर्म हैं ।

उन के ख़िलाफ़ हुकूमत सऊदी अरब कार्रवाई करती है लेकिन मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से ये दुबारा हज सीज़न के दौरान यहां पहुंचने की राह हमवार कर लेते हैं । हिंदूस्तान से हर साल जाने वाले फ़क़ीरों की तादाद 500 ता 600 है जबकि पाकिस्तान और बंगला देश को मिलाकर तक़रीबन 20 हज़ार भिकारी हज सीज़न में मक्का पहुंचते हैं ।

तक़रीबन 30 हज़ार भिकारी अफ़्रीक़ी ममालिक से यहां पहुंच जाते हैं । उन्हें भेजने वाली टोली टिकट का इंतिज़ाम करते हुए 30 ता 40 हज़ार रुपय की रक़म उन्हें फ़राहम करती है लेकिन हक़ीक़ी फ़ायदा हासिल करने वाले दरअसल इस टोली के सरग़ना होते हैं और हुज्जाज किराम को ये पता ही नहीं होता कि उन्हों ने अल्लाह की ख़ुशनुदी केलिए जिन्हें ज़रूरतमंद समझ कर मदद की इन का हक़ीक़ी रूप तो इस के बिलकुल बरअक्स है ।