हमारी आज़ादी पर सियासी पहरा

1947 से हम आज़ादी का जश्न मना रहे हैं| लेकिन क्या हम सच में आज़ाद हैं ? इस पर सोचना| हम बस हर साल दिखावे के लिए आज़ादी मनाते हैं| हकीकी तौर पर आज भी हम गुलाम हैं पहले अंग्रेज़ के थे और अब उस सत्ता के जिसके विचार एक दूसरे को बाँटने पर लगे हैं| हम आज एक ऐसी सोच के गुलाम हो चुके हैं जो शायद पहले से भी डरावना है| आज़ादी के समय आज़ादी के लिए हम सब एक थे| लेकिन आज हम आज़ाद होकर भी एक नहीं हैं| आज हम समुदाय, जातिवाद में हर जगह बंट चुके हैं | लोकतांत्रिक अधिकार, अभिव्यक्ति की आज़ादी सबकी आवाज़ दब चुकी है| सभी मौलिक अधिकारों का गला घोंट दिया गया है खासकर निचली जात वालों के लिए| उनके अधिकार उनसे छीने जा रहे हैं| कौन कर रहा है ये सब ? संविधान ,कानून, नहीं, बल्कि आज के समय पर संविधान का पाठ पढ़ाने वाला और कानून का रक्षक बताने वाला हर एक शख्स ऐसा कर रहा है|

राजनीति में लोकतंत्र, विश्वसनीयता निष्पक्षता ये सब कहीं एक कोने में धरे के धरे रह गए| अब विचारों की राजनीति ,कट्टरवाद की राजनीति और पक्षपात की राजनीति हावी होने लगी है| ये राजनीति धीरे धीरे उन सभी मौलिक अधिकारों को खाने लगी है जो हमारे संविधान ने हमें दिया है| इस भयावह राजनीति से न आम इन्सान को ख़तरा है बल्कि इससे संविधान पर ख़तरा मंडरा रहा है| ये हमें जातिवाद में बाँट रहा है हमें समूहों में तब्दील कर रहा है| ऐसा नहीं है की हम सिर्फ हिन्दू मुस्लिम में बट रहे हैं बल्कि आज न जाने कितने समुदायों में बदल चुके हैं हम| इस वक़्त हम एक भारतीय न होकर बल्कि कोई हिन्दू तो उसमे भी बड़ी जात छोटी जात तो कोई मुस्लिम उसमें भी कोई सुन्नी कोई शिया तो कोई देवबंदी निकल रहा है|

इसका असर ये है कि जिसकी संख्या जितनी ज़्यादा उसका उतना ही बोलबाला| यानी की जिसकी लाठी उसी की भैंस| ये भेदभाव हर एक इन्सान नहीं करता बल्कि जिस शख्स के अन्दर सत्ता की लालच और कुर्सी पर बैठने की ललक हो वो ही करता है| वो हमें एक नहीं होने देता उसे डर है जिस दिन हम एक हो गए उस दिन उसकी लाशों की ढेर पर बैठी सत्ता धराशायी हो जाएगी| झूठ की बुनियाद पर खड़ी की गयी सत्ता की इमारत पल भर में गिर जाएगी| झूठी सत्ता गिर जाएगी उसका पर्दाफाश हो जायेगा| उसके किये हुए झूठे वादों के भ्रम सब ख़त्म हो जायेंगे| लेकिन ऐसा होगा नहीं क्यूंकि उसका पक्ष मज़बूत है, वो खेल अच्छे से खेल रहा है|

वो ऐसी चाल चलता ही नहीं जिसमें उसके फसने का डर हो या हारने का डर| आज इसलिए इस लोकतंत्र में चुनाव किसी सामाजिक विकास को छोड़कर बल्कि किसी विचारों पर होने लगे हैं| वो किसी पार्टी पक्ष से चुनाव नहीं जीतता बल्कि उसको उसकी अपनी छवि जितवाती है| सबके पास अपना अपना एजेंडा है| भाजपा के पास हिंदुत्व का और ओवैसी के पास मुस्लिम का| और मेरे हिसाब से दोनों हकीकी तौर पर दोनों अपने अपने धर्म के प्रति उतना नहीं जानते जितना वह बताने की कोशिश करते हैं| लेकिन यह एजेंडा बखूबी काम कर रहा है| लोगों के दिल व् दिमाग पर इसका खासा असर हो रहा है|

इसलिए आज इन दोनों की लगायी आग में कहीं पहलु खान चपेट में आ रहा है तो कहीं अमित कुमार| इस सत्ता पर बैठे लोगों को किसी का फर्क़ नहीं पड़ता हाँ बस फायदा जहाँ से होता है उधर दो आंसू की जगह दो ट्वीट कर देते हैं| हमें खुश हो जाते हैं कोई हमारे लिए बोला| लेकिन असल में वो हम पर हस के जाता है| की केसे उनके बनाये प्लान में हम सभी फस रहे हैं| हम सभी एक रोबोट की तरह हो गए हैं जिसका रिमोट कंट्रोल सत्ता पर बैठे लोगों के पास है| वो जैसा चाहते हैं हम करते जाते हैं| कभी इनसे लड़ना कभी उनसे लड़ना यही सब| हमें करना पड़ता है वरना हमारा इस्लाम ख़तरे में आ जाता है हिंदुत्व ख़तरे में आ जाता है| और फिर एक ऐसी लड़ाई में कूद जाते हैं जहाँ पर हमारी इंसानियत ख़तरे में आ जाती है| कब तक हम इस दलदल में रहेंगे कब तक हम एक रोबोट की तरह काम करेंगे|

क्या ऐसा भी दिन आयेगा जब हम किसी धर्म के लिए नहीं बल्कि इंसानियत और अपने मुल्क के लिए लड़ें| एक साथ खड़े होकर भारत के संविधान को मज़बूत बनायें| उखाड़ फेंके उन कमज़ोर और बुजदिल लोगों की सत्ता को जो कौम के नाम पर हमें बाँट रही हैं| जो अपनी सत्ता की लालच में देश को दो हिस्सों में बाँटने की कोशिश कर रहा है| ये हमें और आपको करना होगा आपसी सौहार्द और भाईचारे के साथ| कानून और संविधान का सहारा लेकर|

 

शरीफ़ उल्लाह