हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) का जज्बा-ए-रहम व करम

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पाक जिंदगी तमाम इंसानों के लिए नमूना है। आप इंसानियत के आला मकाम पर फायज थे। अगर आप की सीरत के मुताबिक इंसान जिंदगी बसर करे तो चारो तरफ अमन व अमान व भाईचारा और पाकीजगी नजर आए और बहुत से मसायल से इंसानों को निजात मिल जाए। आज चूंकि दुनिया मादियत के फंदे में फंसी हुई है इसलिए बहुत से मसायल दुनिया में आए दिन पैदा हो रहे हैं।

हैरानकुन बात यह है कि आखिरी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के उम्मती भी परेशानियों से दो चार हैं। दरअस्ल उनकी बड़ी तादाद पैगम्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तालीमात से दूर हैं और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत के मुताबिक जिंदगी नहीं गुजार रही है।

बहुत से मुसलमान आज ऐसे भी है जिन्हें नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पाक सीरत का इल्म नहीं है। हालांकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत का इल्म हर मुसलमान को होना चाहिए। अल्लाह तआला ने इंसानों पर बड़ा करम किया है उन्हें बेहतरीन मखलूक बनाया है और उनकी कामयाबी के लिए पैगम्बरों को मबऊस किया।

अल्लाह तआला ने जिस कदर मखलूकात को पैदा फरमाया है वह शुमार से बाहर दुनिया में अल्लाह की कितनी मखलूकात है, इसका सही इल्म तो अल्लाह ही को है, उन्हीं में से एक अहम मखलूक इंसान भी है। अलबत्ता बेशुमार मखलूकात में इंसान को आला मकाम दिया गया। इसलिए कि उसे अशरफुल मखलूकात बनाया गया और अल्लाह तआला ने अपनी नयाबत उसी के सुपुर्द फरमाई इसीलिए इंसान के अंदर तरह-तरह की सलाहियतें फरमा दी ताकि इंसान दीगर मखलूकात के मुकाबले दुनिया में सबसे अहम रोल अदा कर सके और अल्लाह की नयाबत के फरायज अंजाम दे सकें।

क्योंकि इंसान को सबसे अहम मखलूक करार दिया गया है इसलिए उसकी जिंदगी को महफूज बनाने के लिए अल्लाह ने उसे बेपनाह वसायल से मालामाल कर दिया। इसके लिए ऐसे जराए भी फरमा दिए जिनको अख्तियार करके वह दुनिया में हैरत अंगेज कारनामें अंजाम दे सकें।

अल्लाह तआला ने इंसान के अंदर अच्छे और बुरे दोनों तरह के काम करने की सलाहियत पैदा फरमाई है। इसलिए उसके अच्छे और बुरे दोनों तरह के काम करने के पूरे इम्कानात मौजूद हैं। मुशाहिदा में देखा जा सकता है कि बाज लोग अल्लाह के एहकाम की पैरवी करते हैं जिन चीजों से रूकने के लिए अल्लाह ने मना फरमाया है उससे कामिल तौर से बचते हैं, हर वक्त वह नेक कामों की तलाश में रहते हैं वह किसी को तकलीफ नहीं पहुंचाते, किसी को सताते नहीं, अपनी ताकत या दौलत का नाजायज इस्तेमाल नहीं करते।

हर वक्त अपने रब से खायफ रहते हैं और इस बात से डरते हैं कि कहीं कोई काम या गुनाह उनसे ऐसा सरजद न हो जाए कि उनका खालिक उनसे नाराज हो जाए। ऐसे लोग समाज के लिए नमूना होते हैं। इसके बरअक्स इसी दुनिया में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो खुलेआम अपने रब की खिलाफवर्जी करते हैं ऐसे कामों को बड़े शौक से करते हैं जिनको करने से मना किया गया है। ऐसे लोग भी समाज में पाए जाते हैं जिनके पेशेनजर सिर्फ अपना मुफाद और अपना आराम होता है।

इसके लिए वह दूसरों को सताने और जुल्म ढाने से भी नहीं चूकते। ऐसे लोगों से समाज और सोसाइटी को गलत पैगाम जाता है। गोया मालूम हुआ कि इंसान के अंदर अल्लाह तआला ने दोनों सलाहियतें रख दी है ताकि उसे आजमा सकें।

इसका यह मतलब नहीं कि इंसान को कश्मकश के आलम में छोड़ दिया गया है कि वह अपनी अक्ल से यह तय करें कि कौन सा काम अच्छा है और कौन सा बुरा, कौन सा अमल उसके हक में मुफीद है और कौन सा अमल गैर मुफीद। इस पस व पेश को दूर करने के लिए और इंसान को कामयाब व सीधा रास्ता दिखाने के लिए अल्लाह तआला ने हर दौर में अपना कोई न कोई नबी भेजा।

आखिर में इंसानों की फलाह व बहबूद के लिए नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को मबऊस किया गया। ताकि आप अपने कौल व अमल से लोगों को उन चीजों की तालीम दें जिन्हें अख्तियार करने के बाद वह दुनिया व आखिरत में कामयाब हो जाएं और मुकम्मल इंसान बन जाएं।

इसलिए जहां रसूले खुदा ने आम इंसानों को तौहीद व रिसालत की तालीम दी वहीं अखलाकी कद्रों से मुताल्लिक तालीमात भी पेश की ताकि दुनिया में मोहब्बत व शराफत, मेल जोल और इंसानियत का माहौल कायम हो जाए। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस मकसद के लिए दरगुजर और रहम व करम पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया और सबसे पहले खुद आप उस पर अमल पैरा हुए। आप बचपन ही से रहम व करम के पैकर थे।

इस्लाम के दाई हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का दरगुजर का मामला किसी खास तबका, कौम या जमाअत के लिए न था बल्कि पूरी इंसानियत के लिए था। यानी आप का नर्म व मुंसिफाना बरताव दोस्त दुश्मन मुस्लिम, गैर मुस्लिम, फकीर, अमीर, अरबी और अजमी के साथ यकसां था।

दरअस्ल अल्लाह की जानिब से आप को पूरी दुनिया के लिए रहमत बनाकर भेजा गया था और आप ने अपनी इस जिम्मेदारी को अच्छी तरह निभाया। आप रहम व करम का मामला करने में कभी पीछे न हटे। यहां तक कि आप के कदम उस वक्त भी न डगमगाए जब आप ने कुफ्फारे मक्का को शिकस्त देकर मक्का फतेह कर लिया।

अगरचे वह वक्त नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के लिए इंतिहाई सब्र आजमा था। कुफ्फारे मक्का आप के रहम करम पर थे। अगर आप चाहते तो उनसे चुन-चुन कर इंतेकाम ले सकते थे। इसलिए कि उन्होंने पैगम्बरे इस्लाम को बेइंतिहा सताया था, सहाबा पर तशद्दुद के पहाड़ तोड़े थे, तहरीके इस्लामी के खात्मे की कोशिश की थी, मुसलमानों का जीना दूभर कर दिया था।

यहां तक कि उन्होंने आप के कत्ल की साजिश भी रची थी। मगर आप ने इस मौके पर रहम व करम का दायरा इतना बड़ा कर दिया था कि बड़े-बड़े जालिमों, जाबिरों और इस्लाम दुश्मन लोगों को माफ कर दिया।

यह रहम व करम आप ने सिर्फ मक्का वालों पर ही नहीं किया बल्कि मदीना वालों के साथ भी दरिया दिली और रहम व करम का बेमिसाल मुजाहिरा किया। मदीना वह जगह है जहां औस और खजरज आपस में लड़ते थे उनके बीच नफरत की खलीजें इतनी गहरी थीं कि उनका पाटना मुश्किल था और यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि यह कबीले आपस में सुलह करके कभी मेल मिलाप का मुजाहिरा भी करेंगे।

मगर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उनके बीच सुलह करा दी जिसके बाद वह एक दूसरे के ऐसे साथी बन गए जैसे कि कभी उनमें दुश्मनी थी ही नहीं। अहले यजरब को नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की रफाकत में वक्त गुजार कर वह जौहर हालिस हो गए कि वह कभी उसका तसव्वुर भी नहीं कर सकते थे।

उन्होंने इतना ऊंचा मुकाम/ मकाम हासिल कर लिया कि वह आम मुसलमानों की आंखों के तारे बन गए थे।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मुसलमानों को हिदायत की कि वह इन कबीलों की कद्र करें (जो बाद में अंसार के नाम से मशहूर हुए) उनके मुताल्लिक नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया-‘‘ मुनाफिक की निशानी अंसार से बग्ज रखना है और मोमिन की निशानी उनसे मोहब्बत करना है।’’ (मुस्लिम शरीफ)

पैगम्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अहले किताब के साथ भी कुशादा दिली से काम लिया बावजूद यह कि उन्होंने इस्लाम और पैगम्बरे इस्लाम की मुखालिफत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पैगम्बरे इस्लाम चाहते थे कि वह ईमान ले आएं ताकि दुनिया व आखिरत में कामयाब हो जाएं और जहन्नुम की आग से खलासी पा जाएं। आप को मालूम था कि अगर अहले किताब यहूदी, ईसाई नसरानी वगैरह ने इस्लाम कुबूल न किया तो फिर जहन्नुम की आग उनका मुकद्दर बन जाएगी। इसलिए आप ने उनके साथ रहम का मामला किया उनहें समझाया और उन्हें हक की तरफ बुलाया।

ईसाइयों के साथ भी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने रहम व करम का मामला किया। इसका अंदाजा आप के उस फरमान से लगाया जा सकता है जिसमें आपने लिखाया- जो कलील व कसीर (मंकूला व गैर मंकूला) उनके गिरजाओं के तहत है वह सब ही ईसाइयों की ही रहेंगी। यानी बावजूद इस्लाम न लाने उनसे कुछ न लिया जाएगा। किसी पादरी को उसके ओहदे से न हटाया जाएगा न किसी राहिब को उसकी रहबानियत से न किसी काहन को उसकी कहानत से, न उनके हुकूक में तब्दीली की जाएगी, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ईसाइयों के लिए किस मुसबत सोंच का मुजाहिरा किया।

पैगम्बरे इस्लाम का जज्बा-ए-अम्न जंगी उसूलों में भी साफ तौर पर दिखाई देता है जो आप ने मुजाहिदीन के लिए मुतअय्यन फरमाए। आपने जिंदगी और मौत दोनों हालतों में इंसानियत के एहतेराम को मलहूज रखते हुए यह कानून बनाया कि लाशों को रौंदा न जाए औरतों और बच्चों पर तशद्दुद न किया जाए, उन दुश्मनों पर तलवार न उठाई जाए जो जंग में शामिल नहीं हैं।

इन उसूलों को नाफिज कर देने के बाद देखा गया कि इस्लामी जंगों में मुसलमानों की तरफ से खून खराबा देखने में नहीं आया। आज इस्लाम दुश्मन अनासिर यह प्रोपगंडा करते हुए नजर आते हैं कि इस्लाम दहशतगर्दी की तालीम देता है और मुसलमान दहशतगर्द हैं।

जबकि मजकूरा तफसील से यह अंदाजा लगाना बिल्कुल आसान है कि इस्लाम अमन का अलमबरदार है और इंसानों को पुरअमन माहौल फराहम करता है। पैगम्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अमन व अमान और रहम की तालीम दी और खुद अपने अमल से भी साबित किया कि रहम व करम और अम्न व अमान कितना जरूरी है।

तमाम इंसानों को चाहिए कि वह सच्चाई को सामने रखें और मुसलमानों को खासतौर पर अपने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तालीमात और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत के मुताबिक जिंदगी गुजारनी चाहिए। (मौलाना असरार उल हक कासमी)

————-बशुक्रिया: जदीद मरकज़