“हमारे भोजन को विष-मुक्त करो” इंडिया फ़ॉर सेफ फ़ूड ने एफ़एसएसएआई से लगाईं गुहार

नई दिल्ली: सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीऐसइ) की नवीनतम जांच में पता चला है कि भारत के बाज़ारों में जीएम खाद्य पदार्थ भारी मात्रा में मौजूद हैं| भारतीय भोजन में अवैध ढंग से मौजूद जीएम खाद्य पदार्थों के ख़िलाफ़ सख्त करवाई की मांग के साथ इंडिया फ़ॉर सेफ फ़ूड से जुड़े नागरिकों का प्रतिनिधिमंडल एफएसएसएआई के एफ़डीए भवन के दफ़्तर पहुँचा.

इंडिया फ़ॉर सेफ फ़ूड ने अपने बयान में कहा है – “एफ़एसएसएआई की प्रतिक्रिया संतोषजनक नहीं है. एफ़एसएसएआई का इतना भर कहना काफ़ी नहीं है कि वे जीएम भोजन को लेकर नियम बना रहे हैं. वे ऐसा वर्षों से कहते आ रहे हैं. जबतक ये नियम नहीं बनते तबतक भारतीय नागरिक क्या इसी तरह बिना जानकारी के अवैध जीएम भोजन का सेवन करते रहें और कम्पनियाँ इसी तरह अवैध खाद्य पदार्थ बेचने को आज़ाद रहेंगी?”

इंडिया फ़ॉर सेफ फ़ूड ने मांग की है कि एफ़एसएसएआई अविलम्ब बाज़ार से ऐसे सभी प्रोडक्ट्स को हटाए और नियामकों पर दंडात्मक करवाई करे ताकि इस अपराध को फिर से दुहराया न जाए| प्रतिनिधिमंडल ने एफएसएसएआई के सीईओ से मिलकर एक ज्ञापन और उत्पादों से भरी एक टोकरी, जिसपर “हमारे भोजन में ज़हर नहीं” का सन्देश दिया। “हालांकि, एफएसएसएआई सीईओ अवैध गैरकानूनी खतरनाक जीएम खाद्य पदार्थों पर कार्य करने के मामले में कुछ भी ठोस नहीं कहा।

उन्होंने कहा कि वह एक निजी संगठन के निष्कर्षों पर कार्य नहीं करेंगे। लेकिन फिर, उन्होंने यह भी नहीं कहा कि एफएसएसएआई स्वयं परीक्षा ले लेगा, सत्यापित करेगा और कार्य करेगा! हम बेहद चिंतित हैं कि उन्होंने कहा कि जीएम खाद्य पदार्थों से कोई विपरीत स्वास्थ्य प्रभाव नहीं है| वह वैज्ञानिक साक्ष्य के विशाल परिमाण को अनदेखा कर रहा है जो पहले से मौजूद है|

केवल यही नही भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने जीएम भोजन की सुरक्षा निर्धारित करने के अपने दिशानिर्देशों में कहा है कि अनचाहे परिवर्तनों को शुरू करने की संभावना है, साथ ही लक्षित परिवर्तनों के साथ जो उपभोक्ता के पोषण की स्थिति या स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है|”

दिल्ली के एक युवा अजय एटिकाला ने कहा, जो शहरी उपभोक्ताओं के बीच सुरक्षित भोजन के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। “जब तक वे नागरिकों के हित में कार्य नहीं करेंगे तब तक हम एफएसएसएआई पर दबाव डालना जारी रखेंगे”।

सीएसई की प्रयोगशाला की दिल्ली, पंजाब और गुजरात के बाज़ारों से लिए गए नमूनों की जाँच में पता चला है कि उन नमूनों में से एक-तिहाई में जीएम तत्त्व पाए गए हैं जबकि भारत में जीएम खाद्यों की बिक्री अवैध है. 21 में से 16 आयातित खाद्यों के नमूनों (80%) में जीएम तत्त्व पाए गए जबकि 5 भारतीय ब्राण्डों में जीएम तत्त्व मिले. इसका सीधा मतलब यह है कि अवैध जीएम खाद्य पदार्थ धड़ल्ले से आयात हो रहे हैं| 21 में से केवल 8 ऐसे नमूने हैं जिनके पैकेट पर जीएम होने की जानकारी उपलब्ध थी जबकि 3 ऐसे ब्राण्ड भी थे जिन्होंने पैकेट पर झूठ लिखा था कि वे जीएम मुक्त हैं. जिन उत्पादों में जीएम तत्त्व मिले हैं वे सोया, कपास बीज, मक्का या सरसों से तैयार किए गए हैं|

“एक उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उसे मालूम हो कि उसके भोजन में क्या है. उसका अधिकार है कि उसका भोजन सुरक्षित हो और यह भी कि वह पूरी सूचना के आधार पर अपने भोजन से जुड़े फैसले ले सके| लेकिन एफ़एसएसएआई की लापरवाही और अकर्मण्यता के कारण भारतीय उपभोक्ताओं के इन सभी अधिकारों का हनन हो रहा है| यह चिंता का विषय है कि अभी तक एफ़एसएसएआई ने ऐसे सभी उत्पादों को दुकानों, वितरण केन्द्रों और गोदामों से हटाने की दिशा में कोई कारवाई शुरू भी नहीं की है| पूर्व में ऐसे कई मामलों में एफ़एसएसएआई ने पूरी मुस्तैदी से अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करते हुए अनाधिकृत खाद्यों के ख़िलाफ़ त्वरित कारवाई की है|

अभी ऐसी क्या मजबूरी है कि इस बार वे कोई कारवाई नहीं कर रहे? होना तो यह चाहिए कि उन तमाम जीएम खाद्य-उत्पादक देशों से ऐसे सभी खाद्य उत्पादों का आयात तभी हो जब आयात करने वाली कंपनी प्रयोगशाला में जाँच करके यह प्रमाणित करे कि उसके द्वारा आयातित खाद्य पदार्थ पूरी तरह जीएम-मुक्त हैं. विदेशी व्यापार नियमों के अनुसार ऐसा करना ज़रूरी भी है | अगर जल्दी ही इन विषयों पर ठोस क़दम नहीं उठाए जाते तो हम यह मानने को मजबूर होंगे कि नियामक एजेंसियाँ जीएम खाद्य उत्पादक और आयातक कंपनियों के साथ हैं और उनके लिए हिन्दुस्तानी उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य का कोई महत्त्व नहीं है| एजेंसियाँ अपने दायित्त्वों का निर्वाह नहीं करना चाहतीं.” उपभोक्ता जाग्रति अभियान ‘खाना’ की जया अय्यर ने कहा|

जन-स्वास्थ्य एवं बाल-स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ० अमर सिंह आजाद ने बताया, “उपभोक्ताओं के लिए जीएम भोजन को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है | अनुवांशिक प्रोद्योगिकी की प्रक्रिया में जीन के आलावा ऐसे रसायनों का भी इस्तेमाल होता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक हो सकते हैं | कई अध्ययनों में पाया गया है कि जीएम खाद्यों के सेवन से नपुंसकता या बाँझपन, प्रतिरक्षा प्रणाली विकार, गुर्दे, जिगर, फेफड़े, अग्न्याशय, मस्तिष्क आदि अंगों से जुड़ी गंभीर बीमारियाँ, एलर्जी, पाचनतंत्र से जुड़ी बीमारियाँ और यहाँ तक कि कैंसर होने की आशंका हो सकती है | अमरीका में इसके भी प्रमाण मिले हैं कि जीएम फ़सलों के उपभोग या जीएम फ़सलों को खिलाकर बड़े किए गए पशुओं में मांस के सेवन और कई जीर्ण रोग, थाइरोइड और जिगर के कैंसर और स्नायविक बीमारियों के बीच सम्बन्ध है | इस बात के वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं कि जीएम भोजन की पौष्टिकता में बदलाव आ जाते हैं | भारत के भोजन में जीएम खाद्य को शामिल करने की न तो कोई ज़रूरत है और ना ही कोई कारण. सरकार को यह पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे भोजन श्रृंखला में जीएम भोजन बिलकुल भी शामिल न होने पाएँ|”

“हम एफ़एसएसएआई से यह अपेक्षा रखते हैं कि वह उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उच्चतम मानकों का पालन करे| जिस दिन सीएसई ने अपनी जाँच का ख़ुलासा किया उसके अगले दिन नागरिकों ने हज़ारों ट्वीट्स के द्वारा एफ़एसएसएआई से ठोस कारवाई की मांग की थी| उसके बाद कोएलिशन फ़ॉर अ जीएम-फ़्री इंडिया ने अपने पत्र के द्वारा एफ़एसएसएआई से प्रभावी कारवाई की मांग की थी| अभी तक एफ़एसएसएआई की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है और इससे उसकी साख पर बुरा असर पड़ता है| स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को उन सभी प्रक्रियाओं की जाँच शुरू करनी चाहिए जिनकी चूक की वजह से भारत के बाज़ारों में जीएम खाद्य उत्पाद धड़ल्ले से बिक रहे हैं. साथ ही उसे उन नियामक एजेंसियों पर भी कारवाई करनी चाहिए जो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह सही ढंग से नहीं कर रही हैं”, कुदरती खेती अभियान के डॉ० राजेंद्र चौधरी ने मांग रखी|

जिस समय आईएफ़एसआई का प्रतिनिधिमंडल एफ़एसएसएआई अधिकारीयों को अपना ज्ञापन दे रहा था, देश भर से नागरिक और उपभोक्ता हजारों की संख्या में ट्वीट करके बाज़ार से जीएम खाद्य पदार्थों को हटाने और लापरवाह नियामकों पर उचित कारवाई की मांग कर रहे थे|