मुंबई 8 मार्च : अपने वक़्त की मशहूर चाइल्ड अदाकारा डेज़ी ईरानी ने जवान होने के बाद एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया कि उन्हें हीरोइन के रोल मिल जाएं लेकिन क़िस्मत उनपर बचपन में जितनी मेहरबान थी उतनी जवानी में नहीं रही । सिर्फ़ दो चार फिल्मों में उन्हें देखा गया जिस में आरज़ू, वारिस और गीत फ़िल्म के नाम काबिल-ए-ज़िकर हैं ।
अलबत्ता डेज़ी ईरानी जब उम्र रसीदा होने लगीं तो उन्हें ख़ुसूसी तौर पर पार्सी लेडी के रोलज़ ज़्यादा ऑफ़र होने लगे । वो ख़ुद भी एक पार्सी हैं । उन्होंने कहा कि उन्होंने कई हीरोज़ और हीरोइनज़ के उरूज और ज़वाल अपनी आँखों से देखे हैं । फ़िलहाल पुरानी अदाकाराऊँ में वो जिस अदाकारा को हनूज़ मुस्तहकम समझती हैं इन में फ़रीदा जलाल का नाम उनकी फेहरिस्त में सब से ऊपर है ।
डेज़ी ईरानी हाल हाल में फ़िल्म दिल तो बच्चा है जी में नज़र आई थीं । उनका कहना है कि आज के अदाकाराऔ में टेलैंट की कमी नहीं है लेकिन इनका तलफ़्फ़ुज़ ठीक नहीं है जिस की वजह उर्दू ज़बान से उन की ना वाक़फ़ीयत है । हमारे ज़माने में उर्दू ज़बान का चलन बहुत ज़्यादा था ( अब भी है ) लेकिन अब हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलफ़ाज़ रोज़मर्रा की बोल चाल में ज़्यादा शामिल होगए हैं ।
आजकल के अदाकार ख़ानदान को ख़ानदान ख़ून को खून ख़ुशी को ख़ूशी और ना जाने क्या क्या कहते हैं । हमारे ज़माने में एडीशन के वक़्त ग़लत तलफ़्फ़ुज़ वाले उम्मीदवारों को फ़ौरी तौर पर मुस्तर्द कर दिया जाता था ।