नई दिल्ली: देश में अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 को भी, दलित व आदिवासी कर्मचारियों को मिलने वाले प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा की तरह ही, लगभग निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिये जाने के खिलाफ देशभर में व्यापक आक्रोश व ’भारत बन्द’ आदि आन्दोलनों की तीव्रता से मजबूर होकर ही केन्द्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में काफी विलम्ब से जो आज पुनर्विचार याचिका दाख़िल की गई वह बहुत ही ज़रूरी था, परन्तु यह सरकारी प्रयास पहले की तरह केवल दिखावटी, नुमाइशी व गुमराह करने वाला नहीं होनी चाहिये बल्कि पूरी तैयारी व मज़बूती के साथ केस की प्रस्तुति करके एस.सी.-एस.टी. कानून को दोबारा उसे उसके असली रूप में तत्काल बहाल कराना चाहिये।
बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने मीडिया से बात करते हुये आज कहा कि अगर केन्द्र सरकार सम्बंधित मामले में समय पर उचित कार्रवाई करती तो आज ’’भारत बन्द’’ की नौबत ही नहीं आती और ना ही कुछ ग़ैर-आन्दोलनकारी असामाजिक तत्वों को सरकारी लापरवाही के कारण आगजनी व हिंसा आदि करने का मौका मिलता।
बीएसपी ’’भारत बन्द’’ के दौरान हिंसक घटनाओं की तीव्र निन्दा करती है, लेकिन बीजेपी सरकारों को इसकी आड़ में सरकारी जुल्म-ज्यादती करके लोगों को और भी ज्यादा भड़काने का प्रयास नहीं करना चाहिये। सरकार पूरी निष्पक्षता से काम करते हुये मृतकों व घायलों की उचित सहायता करे।
वैसे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व बीजेपी की इनकी विभिन्न राज्यों की सरकार में ख़ासकर दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों की बहुत ही ज़्यादा उपेक्षा हो रही है तथा इन्हें इनके संवैधानिक व कानूनी अधिकारों से भी वंचित रखने का षडयंत्र लगातार किया जा रहा है, परन्तु एस.सी.-एस.टी. कानून, 1989 को पूरी तरह से प्रभावाहीन व बेअसर बना देने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व महाराष्ट्र बीजेपी सरकार की साज़िशों ने इन वर्गों के लोगों को काफी ज्यादा उद्वेलित व आन्दोलित कर दिया है, जिस कारण ही दलितों व आदिवासियों ने मिलकर आज ’भारत बन्द’’ का आयोजन किया है, जिसको हर तरफ व्यापक समर्थन मिला है।
बीएसपी इसके लिये उन सभी का शुक्रिया व आभार भी प्रकट करती है तथा यह आश्वस्त करना चाहती है कि हमारी पार्टी इन सभी मामलों में अपनी जबर्दस्त भूमिका व संघर्ष को लगातार जारी रखेगी। हम संसद में नहीं हैं तो क्या हुआ, संसद के बाहर की हमारी राजनीति व जीवन संघर्ष श्री नरेन्द्र मोदी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करता रहेगा जैसाकि किसानों की खेतिहर जमीन जबर्दस्ती अधिग्रहण करने के मामले में सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था।
वैसे भी इन वर्गों के उपेक्षित व शोषित लोग पहले से ही सरकारी शह व संरक्षण के कारण जातिवादी हिंसा व उत्पीड़न से काफी ज्यादा परेशान थे, परन्तु इस सम्बंध में अत्याचार निवारण कानून को एक प्रकार से कागज का टुकड़ा बना देने से इनके सबर का पैमाना छलक गया है और वे लोग भी किसानों की तरह ही सड़कों पर उतर आने को मजबूर हुये हैं।
उन्होंने कहा कि जैसा कि सर्वविदित ही है कि बीजेपी के शासन में ख़ासकर दलितों व आदिवासियों के संवैधानिक व कानूनी अधिकारों पर लगातार कुठाराघात हो रहा है। सरकारी मंत्रालयों का लगातार निजीकरण करके तथा बड़ी-बड़ी सरकारी योजनाओं को धन्नासेठों की प्राइवेट कम्पनियों को देकर नौकरी में आरक्षण की सुविधा को पहले ही लगभग समाप्त कर दिया गया है। इसीलिये प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण की व्यवस्था तत्काल लागू करने की जरूरत है जिसके लिये बी.एस.पी. काफी लम्बे समय से संघर्षरत भी है तथा उत्तर प्रदेश में अपनी चैथी सरकार में ऐसा करके भी दिखाया है।
इसके अलावा सरकारी षडयंत्र के कारण नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण की सुविधा पहले से ही लगभग निष्क्रिय व निष्प्रभावी बन कर रह गयी है, जिससे इस वर्ग के लोग बुरी तरह से प्रभावित हुये हैं, परन्तु बीजेपी सरकार पूरी तरह से लापरवाह व उदासीन बनी हुई है तथा इस सम्बन्ध में राज्यसभा से पारित संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा से पारित ना करके मामले को पिछले चार सालों से लटकाये हुये है। इन तथ्यों से क्या यह साबित नहीं होता है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व बीजेपी की सरकार दलित-विरोधी नीयत, नीति व मानसिकता रखती है, जो कि पूरी तरह से देश व संविधान-विरोधी सोच नहीं है तो और क्या है?
इसीलिये प्रमोशन में आरक्षण के कानून की तरह ही, एस.सी./एस.टी. अत्याचार विरोधी कानून को भी, प्रभावहीन बनाने के विरोध में दलितों व आदिवासियों द्वारा आज आयोजित ’भारत बन्द’ के लिये सभी लोगों का शुक्रिया व आभार प्रकट करते हुये सुश्री मायावती जी ने कहा कि ऐसे मामलों में खासकर बीजेपी के सांसदों व इनके एन.डी.ए. के सहयोगी नेताओं को सबक सीखना चाहिये जो सत्ता की कुर्सी के लिये समाज के हितों का सौदा व उसकी अनदेखी करते रहते हैं।
आज देश के सामने यह सवाल है कि आखिर क्या कारण है कि प्रमोशन में आरक्षण के सम्बंध में संविधान संशोधन विधेयक के, बीएसपी के जबर्दस्त संघर्ष के कारण राज्यसभा से पारित होने के बावजूद, केवल लोकसभा से पारित होने के लिये लम्बित पड़ा हुआ है और बीजेपी व एनडीए के दलित सांसद व मंत्री पिछले चार वर्षों से खामोश तमाशाई बने बैठे हुये हैं?