और जो कुछ उन्होंने किया है उन के नामा आमाल में दर्ज है। और हर छोटी और बड़ी बात (इस में) लिखी हुई है। बेशक परहेज़गार बाग़ों में और नहरों में होंगे। बड़ी पसंदीदा जगह में अज़ीम क़ुदरत वाले बादशाह के पास (बैठे) होंगे। (सूरा अल क़मर। २५ता५५)
आख़िर में अपने मक़बूल बंदों का ज़िक्र फ़रमाया जा रहा है। वो जन्नतों में अबदी नेअमतों से लुत्फ़ अंदोज़ हो रहे होंगे। मीठे पानी, शराब तहव्वुर, साफ़ मुसफ़्फ़ी शहद और ताज़ा दूध की नहरें बह रही होंगी। अवाख़िर आयात की रियायत करते हुए लफ़्ज़ वाहिद ज़िक्र किया है, लेकिन मुराद अनहार है।
मक़अद: बैठने की जगह। सिदक़: मर्ज़ी यानी पसंदीदा। यहां मौसूफ़ सिफ़त की तरफ़ मुज़ाफ़ है। हज़रत इमाम माफ़र सादिक़ रज़ी० फ़रमाते हैं कि अल्लाह तआला ने उस जगह को सिफ़त सिदक़ से मौसूफ़ फ़रमाया है, इसलिए वहां अहल सिदक़ ही को बैठने की जगह मिलेगी। इस नशिस्त गाह को मक़अद सिदक़ इसलिए फ़रमाया गया है (रूह अलमानी) ये वो मुक़ाम है, जहां अल्लाह तआला ने अपने औलिया के साथ जो वाअदे फ़रमाए हैं, वो पूरी फ़रमाएगा। उस वक़्त उन आशक़ान दिलफ़िगार को इज़न-ए-आम होगा कि ऐ आतिश इश्क़ में जलने वालो! इश्क ए दीदार में माही बे आब की तरह उम्र भर तड़पने वालो! महबूब अज़ल अपने रुख़ ज़ेबा से पर्दा उठा रहा है, आंखें उठाओ और सैर होकर शाहिद राना का दीदार कर लो।