हर न्यूड तस्वीर को अश्लील नहीं कहा जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीमकोर्ट का कहना है कि किसी खातून की न्यूड तस्वीर शाय करना अश्लील नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि हम 2014 में हैं न कि 1994 में। अदालत ने 154 साल पुरानी आईपीसी में अश्लीलता की दफा का तब्सिरा करते हुए कहा कि किसी खातून की न्यूड तस्वीर आईपीसी की दफात और इनडिसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वीमन (प्रॉहिबिशन) एक्ट के तहत अश्लील नहीं माना जा सकता है।

यह खबर अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया में जुमे के रोज़ छपी है। जस्टिस के एस राधाकृष्णन और जस्टिस एके सीकरी की बेंच ने कहा कि किसी खातून की न्यूड या सेमी न्यूड तस्वीर तब तक अश्लील नहीं कहा जा सकता है जब तक वह सेक्स की ख्वाहिश को न जगाए या वैसा अहसास कराए।

बेंच ने दो पब्लिसिंग इदारो के खिलाफ इन दफात के तहत चल रहे मुकदमे को खारिज करते हुए यह ख्याल ज़ाहिर किया। उन मगजीन ने मशहूर जर्मन टेनिस खिलाडी बोरिस बेकर और उनकी मंगेतर फिल्म अदाकारा बारबरा फेल्ट्स की न्यूड तस्वीर छापी थी। यह तस्वीर जर्मन मैगजीन स्टर्न ने पहले शाय की थी और इन्हें रेसिज्म‍ नस्ल परस्ती (Racism – apartheid) के खिलाफ बेकर की आवाज बुलंद करने के लिए छापा गया था।

जस्टिस राधाकृष्णन ने कहा कि कोई तस्वीर अश्लील है या नहीं, इसका फैसला करने के लिए अदालतों को उसके मुताबिकत और कौमी मयार को समझना होगा न कि मुट्ठी भर बेहसी (Insensitive) और झुक जाने वाले लोगों के मयार को। अदालत ने कहा कि तस्वीर / पोर्टरेट में कई चीजें देखनी होंगी और यह मुंहसिर करेगा अलग-अलग तरह के पोस्टर और पसमंज़र पर जिनमें वह पोर्टरेट लिया गया है। सिर्फ वही मवाद जो सेक्स से मुताल्लिक हो और जो हवस के जज़्बात को भडकाने वाला हो, अश्लील कहे जा सकते हैं।