हलीफ़ पार्टीयों की तलाश

तृणमूल कांग्रेस की सरबराह और चीफ़ मिनिस्टर मग़रिबी बंगाल ममता बनर्जी ने यू पी ए इत्तिहाद से बढ़ कर अपना फ़ैसला सुनाने का मौक़िफ़ बनालिया है तो यू पी ए की असल पार्टी कांग्रेस के लिए ये नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है। ममता बनर्जी ने कई मौज़ूआत पर हुकूमत को तंग करना शुरू किया है।

इन की राय को एहमीयत देने के बजाय यू पी ए को अपनी मिल्कियत तसव्वुर करनेवाली कांग्रेस ने दूसरी राहें तलाश करना शुरू की हैं। इस का मतलब यही हुआ कि सियासत में दोस्त और दुश्मन की इस्तिलाह कांग्रेस के लिए मौक़ा पुरसताना होती है। अब वो मुलायम सिंह यादव में अपनी बक़ा तलाश करती नज़र आ रही है।

यूपी के असैंबली इंतिख़ाबात से क़बल अगर चीका माक़बल इंतिख़ाबात इत्तिहाद के इमकानात को मुस्तर्द करदिया जा रहा है लेकिन कांग्रेस के बाअज़ ज़िम्मेदार क़ाइदीन दरपर्दा तौर पर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को दोस्त बनाने की कोष करते नज़र आ रहे हैं।

कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के दरमयान कशीदगी में इस वक़्त मज़ीद इज़ाफ़ा हुआ जब चीफ़ मिनिस्टर मग़रिबी बंगाल ने कांग्रेस पर इल्ज़ाम आइद किया कि वो उन की हुकूमत को कमज़ोर करने के लिए सी पी ऐम के साथ साज़बाज़ कर रही है।

असल मसला मग़रिबी बंगाल का है जहां ममता बनर्जी ने इंदिरा भवन का नाम बदल दिया है। इस तबदीली ने बाएं बाज़ू पार्टीयों और कांग्रेस दोनों को एहतिजाज का एक नया मौक़ा फ़राहम किया। इस लिए कोई ना कोई बहाना तलाश करके कांग्रेस ने एहतिजाज का मूड बना लिया है जो एक हलीफ़ पार्टी के लिए मुनासिब नहीं समझा जाता।

पार्लीमैंट में भी ममता बनर्जी ने हुकूमत की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कई एतराज़ात उठाई, लोक आयुक़्त के मसला पर उन्हों ने कहा था कि कांग्रेस और बाएं बाज़ू के गठजोड़ के ज़रीया लोक आयुक़्त् बिलों को मंज़ूर करने की कोशिश की जा रही है।

बिलाशुबा लोक आयुक़्त का मसला अहम है। इस को रियास्तों की मर्ज़ी पर छोड़ने की जहां तक बात है इस पर वसीअ तर ग़ौर व ख़ोस होना ज़रूरी है।

मगर कांग्रेस अपनी बात मनवाने की देरीना आदत से मजबूर है इस लिए वो ममता बनर्जी के एतराज़ात को बर्दाश्त नहीं करसकती। रोज़मर्रा की तन्क़ीदों से बेज़ार कांग्रेस ने नई हलीफ़ पार्टीयों को तलाश करना शुरू कर दिया ।

लोक सभा में यू पी ए की अक्सरीयत को बढ़ाने के लिए हाल ही में राष्ट्रीय लोक दिल को हलीफ़ बनालिया गया जिस के पाँच अरकान-ए-पार्लीमैंट हैं और आर एलडी के सदर अजीत सिंह को मर्कज़ी काबीना में शामिल किया गया।

काबीबा में शामिल होने का ख़ाब हर एक पार्टी को अज़ीज़ होता है। ममता बनर्जी ने कांग्रेस को हर महाज़ पर नाराज़ करना शुरू किया है तो इस की नज़र मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी पर टिकी हुई है जिस के 22 अरकान-ए-पार्लीमैंट हैं।

यू पी ए को ऐसे सयासी क़ाइदीन की ज़रूरत है जो कांग्रेस की हर बात को आँख बंद कर क़बूल कर लें। ममता बनर्जी भी कल तक कांग्रेस की हर बात आँख बंद कर के ही क़बूल करती थीं लेकिन जब से वो मग़रिबी बंगाल की चीफ़ मिनिस्टर बनें हैं उन्हें अपनी पार्टी की पोज़ीशन को मज़बूत बनाने का ख़्याल आया है।

इस लिए अपने बिल पर हुक्मरानी करने का इरादा पैदा हुआ है तो वो कांग्रेस को मग़रिबी बंगाल से लेकर मर्कज़ तक परेशान करने लगी हैं।

कांग्रेस को ग़ुस्सा इस बात का है कि ममता बनर्जी ने कोलकता में इंदिरा भवन का नाम बदल कर बंगाल के इन्क़िलाबी शायर नज़र अस्सलाम से मौसूम कर दिया है। इस के बाद से कांग्रेस की ब्यान बाज़ीयों में ममता बनर्जी को तन्क़ीद का निशाना बनाया जाता।

यू पी ए के लिए नुक़्सान का बाइस बनने लगा। तृणमूल कांग्रेस की वजह से यू पी ए को रीटेल शोबा में बैरूनी रास्त सरमाया कारी का फ़ैसला वापिस लेना पड़ा था।ये फ़ैसला कांग्रेस के लिए कड़वा घूँट ही था। कॉरपोरेट घरानों की ख़ुशनुदी का ख़्याल रखने वाली कांग्रेस के लिए एफडी आई का फ़ैसला वापिस लेना मुश्किल साबित हुआ।

यू पी ए को लोक सभा में ख़ातिरख़वाह अक्सरीयत हासिल है इस के बावजूद वो ममता बनर्जी से ख़ौफ़ज़दा दिखाई देती है।

समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष़्ट्रा जनतादल ने यू पी ए की बाहर से ताईद का ऐलान किया है लेकिन कांग्रेस को इज़्ज़त नफ़स का मसला सताता है इस लिए जब से ममता बनर्जी ने इस को नजरअंदाज़ करना शुरू किया है और अहम मसाइल पर उन के एतराज़ात ने कांग्रेस को नई हलीफ़ों की तलाश के लिए मजबूर कर दिया।

कांग्रेस को मर्कज़ में अपनी माबाक़ी मीयाद पूरी करने के लिए ख़ातिरख़वाह अक्सरीयत हासिल है इस के बावजूद वो ममता बनर्जी को सबक़ सिखाने के लिए अपना मौक़िफ़ मज़बूत बनाना चाहती है।

उत्तर प्रदेश असैंबली इंतिख़ाबात में समाजवादी पार्टी के साथ इत्तिहाद और राष्ट्रीय लोक दल से दोस्ती के बाद अगर यूपी में इक़तिदार हासिल हो जाय तो दो दहों बाद कांग्रेस ज़ेर क़ियादत हुकूमत तशकील देने की राह हमवार होगी।

उत्तर प्रदेश की चीफ़ मिनिस्टर मायावती की बी एस पी हुकूमत को बदलना इतना आसान नहीं है लेकिन कांग्रेस को बहरहाल अपना खोया हुआ मौक़िफ़ हासिल करने के लिए हलीफ़ पार्टीयों का सहारा लेना ज़रूरी है।

सयासी नज़ाअम के तालाब में मौजूद गंदी मछलीयों को अवाम अपने वोट से निकाल बाहर करना शुरू करें तो कांग्रेस को सब से ज़्यादा परेशानी होगी। मगर अवाम की अक्सरीयत की सोच भी मुनक़सिम है। उत्तरप्रदेश के अवाम को आइन्दा माह अपने फ़ैसला के लिए तैय्यार रहना है इन का वोट किन किन पार्टीयों को जाएगा इस से यूपी को किस हद तक फ़ायदा होगा ये सोचना वहां के राय दहिंदों का काम है।

अवाम अगर मुहतात होकर सयासी पार्टीयों का जायज़ा लें तो उन्हें राय दही के वक़्त दरुस्त फ़ैसला करने में देर नहीं होगी। उत्तर प्रदेश असैंबली इंतिख़ाबात के नताइज ही नई दिल्ली में कांग्रेस ज़ेर क़ियादत यू पी ए हुकूमत के मुस्तक़बिल पर मोहर लगा सकते हैं।