हसद की तबाहकारियां

( मोहम्मद कामरान तालिब) जमाना कयामत की चाल चल रहा है, नफ्सा-नफ्सी का आलम है। एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को दबोच रहा है। एक दूसरे की जड़े काटने में मसरूफ है, अच्छे खासे दीनदार लोग भी इस फितने का शिकार हैं। अगर किसी शख्स के पास अल्लाह तआला की दी हुई नेमते और सलाहियतें हैं तो उनको देख कर हसद में मुब्तला नहीं होना चाहिए बल्कि रश्क करना चाहिए और अललाह तआला से उस शख्स की सलाहियतों में मजीद तरक्की की दुआ करनी चाहिए।

इससे यह फायदा होगा कि अल्लाह तआला उसकी दुआ की बरकत से उस शख्स की सलाहियतों को निखार देगा और उसे भी नवाज देगा। अल्लाह तआला के यहां किसी चीज की कमी नहीं।

हसद अल्लाह तआला की वह पहली नाफरमानी है जो उस वक्त वजूद में आई जब अल्लाह तआला ने आदम (अलैहिस्सलाम) को पैदा फरमाया और फरिश्तों को उन्हें सजदा करने का हुक्म दिया तो इब्लीस ने हसद से यह कह कर सजदा से इंकार कर दिया कि आप ने उनको मिट्टी से पैदा किया है और मैं आग से पैदा किया गया हूं, मैं इन्हें सजदा करूं? इंकार किया और हसद ही ने उसे रांद-ए-बारगाह बना दिया।

हसद हर गुनाह और हर बुराई की जड़ है। हसद हासिद को इस बात पर आमादा करता है कि बातें गढ़े और दूसरों की तरफ मंसूब करें। हसद हासिद को उस शख्स की गीबत करने का कुसूरवार बनाता है जिससे उसको हसद है। यह उसको मुसीबत और परेशानी में डालने के लिए उसकी तरफ से इधर-उधर की नामुनासिब और बदतरीन बातें नकल करता फिरता है, उसके लिए मुश्किलात व दुश्वारियां पैदा करता है, हकायक को बिगाड़ कर पेश करता है, उसकी हर बात को यह मायनी पहनाता है जो उसके तसव्वुर में भी नहीं। हासिद यह तमाम खेल इसलिए खेलता है कि जिससे उसको हसद है उसे यह उसके पड़ोसियों से लड़वा दे, दोस्तों में फूट डाल दे।

हासिद इत्तेफाक व एत्तेहाद के बजाए सताता और परेशान करता है। जिस समाज में रहता है बिगाड़ पैदा करता है, दूसरों की खूबियों और एहसान का इंकार करता है, फितना की आग लगाता है, खूबी और नेकी की बातों को मिटाने के लिए तैयार रहता है, सही को गलत और गलत को सही बनाकर पेश करता है, जिसके असरात देर तक बाकी रहते हैं और दुश्वारी व मुश्किलात पैदा करते हैं।

हासिद बदतरीन आदत का हामिल होता है। हसद ही ने इबलीस की मिट्टी पलीद की। अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ और जब हमने फरिश्तों को हुक्म दिया कि आदम (अलै0) के आगे सजदा करो तो वह सब सजदे में गिर पड़े मगर शैतान ने इंकार किया और गुरूर में आकर काफिर बन गया।’’(बकरा-32)

उसके हसद ने घमण्ड की इसी हद पर इक्तफा न किया बल्कि हजरत आदम (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह की नाफरमानी पर आमादा किया और उन्हें शजर-ए-ममनूआ खिलाकर जन्नत से निकलवाया। अल्लाह तआला का इरशाद है- ‘‘फिर शैतान ने दोनों को वहां से फिसलाया और जिस (ऐश व निशात) में थे उससे निकलवा दिया।’’(बकरा-36)

हसद ने इब्लीस को कुर्बे खुदावंदी और उसके दायरे इताअत व इबादत से निकाल दिया, उसको रूहानी सिफत से महरूम और खुदापरस्ती से आरी कर दिया, खौफ व तकवा का लिबास उतार कर फरिश्तों के जुमरे से धुतकार दिया और हकीकत को इन अल्फाज में बयान किया है- ‘‘यहां से निकल जा तू मरदूद है और तुझ पर कयामत के दिन तक लानत रहेगी।’’(हज्र 33.34)

हसद, हासिद को इख्तिलाफ व निफाक पर आमादा करता है, वह जब किसी को अच्छा और खुशहाल देखता है जलता-भुनता और घुट घुट कर रह जाता है। अपने हासिदाना मिजाज की वजह से खुद परेशान व गम में मुब्तला रहता है और दूसरों को भी उससे दुःख / तकलीफ पहुंचता रहता है। यह होता है हसद का अंजाम खुद को भी नाराज करता है और हर वक्त उलझन व परेशानी में भी रहता है।

हसद ही वह जुर्म है जिसे सरजमीं पर पहली बार कत्ल व खूंरेजी का गुनाह कराया। काबील ने महज हसद की वजह से अपने भाई हाबील को कत्ल किया और उनकी लाश को लिए लिए फिरा। समझ में न आया कि क्या करे। यहां तक कि अल्लाह तआला ने एक कौआ भेजकर उसे यह समझाया कि अपने भाई को दफन कर दे। हसद ने दो भाइयों में फूट डाला और वाल्दैन को रंज पहुंचाया। हसद ही ने यहूदियों को सरकशी पर आमादा किया और इस्लाम में दाखिल होने और इताअत कुबूल करने से बाज रखा।

अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ तो जिस चीज को वह खूब जानते थे जब उनके पास आ पहुंची तो उससे मुकर हो गए, पस काफिरों पर खुदा की लानत।’’(बकरा-89)

हसद ने अरबों को इस हकीकत से इंकार पर आमादा किया जिसको वह अच्छी तरह समझ गए थे और यह यकीन था कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के भेजे हुए रसूल हैं। अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ वह उसको उतना ही पहचानते हैं जितना अपने बेटे को।’’

जब हसद की हकीकत यह है और वह इतना खतरनाक और मोहलिक है जो उससे अपने दिल को पाक रखना चाहिए और हसद से बहुत परहेज करना चाहिए। खुदा की इताअत व फरमांबरदारी को अपना शिआर बनाकर इस मरज का इलाज करना चाहिए।
हजरत जुबैर (रजि0) से मरवी है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया-‘‘ तुम्हारे अंदर तुम से पहली कौमों का मरज (हसद व कीना) पैदा हो रहा है, यह मरज तो मूड देता है यानी दीन को मूंड देता है।’’(तिरमिजी)

हसद आपसी कुर्ब व ताल्लुक को बिगाड़ देता है, रिश्तों को खत्म कर देता है, बुग्ज व कीना को उभार देता है और दीन को बर्बाद कर देता है, अज्र व सवाब को खत्म करके गुनाह करा देता है, इताअत और इबादत से गाफिल कर देता है, दिल में हसद के पैदा हो जाने से रूहानी ताकत कमजोर पड़ जाती है और हसद खुदादाद सलाहियतों को बुझा कर रख देता है, लोगों में इख्तिलाफ व इंतिशार और फिरकाबंदी हसद ही की बदौलत होती है, आपसी लड़ाई झगड़े इसी से पैदा होते हैं।

हसद ही ने लोगों को नेकियों से महरूमी और अमल खैर से जमूद व तअत्तुल का शिकार बना देता है, मुफीद कामों की तंजीम में बेतवज्जोही पैदा की है, ओहदो और मनसबों के हुसूल में रस्साकशी का सबब बना है। एक हुकूमत का खात्मा और दूसरी का कयाम यह सब हसद का नतीजा है। गरज यह कि हसद ही हर बुराई की जड़ है। तमाम बुराइयां इसी से पैदा होती है। अल्लाह तआला के नजदीक इसकी नापसंदीदगी का सबसे बड़ा सबूत यह है कि अल्लाह तआला ने सूरा फलक में रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हासिद के शर से पनाह मांगने की तालीम फरमाई। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- ‘‘हसद से बहुत दूर रहो, हसद नेकियों को इस तरह खा जाता है जिस तरह आग लकडि़यों को खा जाती है।’’ (अबू दाऊद)

हसद तो इंसान को इस पस्ती तक पहुंचा देता है कि वह जिससे हसद करता है उसके मुताल्लिक यह आरजू और तमन्ना करने लगता है कि वह कुफ्र का कुसूरवार होकर इस्लामी दायरे ही से खारिज हो जाए जैसा कि अल्लाह तआला ने अहले किताब का हाल बयान किया है-‘‘ बहुत से अहले किताब अपने दिल की जलन से यह चाहते हैं कि ईमान ला चुकने के बाद तुम्हे फिर काफिर बना दे हालांकि उनपर हक जाहिर हो चुका है तो तुम माफ कर दो और दरगुजर करो, यहां तक कि खुदा अपना दूसरा हुक्म भेजे, बेशक खुदा हर बात पर कादिर है।’’ (बकरा-109)

अलगरज कि हसद से कुढ़ने और जल जल कर कबाब बनने से बेहतर है कि इंसान हसद जैसी नाफरमानी और गुनाहे अजीम से तायब होकर रहमते खुदावंदी से खिलकर गुलाब बने। अल्लाह तआला हसद जैसी नाफरमानी से हमारी हिफाजत फरमाए- आमीन।

बशुक्रिया: जदीद मरकज