हाईकोर्ट की मर्द तालिब-ए-इल्म (छात्र) को जिन्स (सेक्स) तब्दीली ऑप्रेशन की इजाज़त

बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये कहते हुए कि मुल्क में ऐसा कोई क़ानून मौजूद नहीं है जो किसी भी नाबालिग़ मर्द या औरत को अपनी ज़िंदगी के अहम फ़ैसले करने से रोकता हो और इस तरह अदालत से गोहाटी के 21 साला तालिब-ए-इल्म भेदन भेरवा को जिन्स (सेक्स) तब्दीली के लिए आप्रेशन की राह हमवार कर दी।

अदालत ने अपने हुक्म में कहा कि रियास्ती और मर्कज़ी हुकूमत को जिन्स ( सेक्स) तब्दील करने सर्जरी पर कोई एतराज़ नहीं है। जस्टिस एस जे विजेंदर और ए आर जोशी पर मुश्तमिल एक डीवीजन बेंच ने ये फ़ैसला सुनाया। इत्तेलाआत ( खबर) के मुताबिक़ भेदन का ये इद्दिआ (दावा/इच्छा) है कि वो दरअसल एक औरत है जो मर्द के जिस्म में क़ैद है।

इस ने अदालत से रुजू होकर ये ख़ाहिश की थी कि अदालत इस के वालदैन को ऑप्रेशन रोकने की कोशिश ना करने की हिदायत दे। भेदन ने हाइकोर्ट को बताया कि इस के वालदैन जिन्स तब्दीली के ऑप्रेशन की मुख़ालिफ़त करते हुए उसे धमकीयां दे रहे हैं। अदालत ने इस्तेदलाल (प्रमाण/सुबूत) पेश किया था कि कोई शख़्स किसी दूसरे शख़्स को नुक़्सान ना पहुँचाए।

ऐसी हिदायत देना अदालत के इख्तेयार में नहीं है जबकि ये काम महकमा पुलिस का है। बेंच ने भेदन को हिदायत की कि वो क़ुल्लाबा पुलिस स्टेशन और कमिशनर आफ़ पुलिस की दरख़ास्तें तहरीर करते हुए तफ़सीली तौर पर ये बताए कि उसे अपने वालदैन से किस नौईयत का ख़तरा है।

जस्टिस विजेंदर ने कहा कि दरख़ास्त पर ग़ौर करने के बाद पुलिस को अगर ये महसूस हो कि भेदन को वाक़ातन ( वाकई कोइ) ख़तरा लाहक़ है तो इस के तहफ़्फ़ुज़ के इंतेज़ामात किए जा सकते हैं। भेदन ने कहा कि उसे अपनी ज़िंदगी के इब्तिदाई( शुरू का/पहले)साल में ही पता चल गया था कि वो एक लड़की है और लड़कीयों की तरह लिबास ज़ेब-ए-तन करने पर इस के वालदैन उसे ज़िद-ओ‍कूब ( मारना/पीटना) किया करते थे।