हिंदुस्तानी अफ़्वाज में मुसलमानों की भर्ती के लिए इदारा सियासत से ख़ुसूसी तरबियत का एलान

जनाब ज़ाहिद अली ख़ान एडीटर रोज़नामा सियासत ने कहा कि तेलंगाना रियासत में उर्दू अख़बारात को मोअस्सर और नुमायां रोल अदा करना चाहीए और हुकूमत के तरक़्क़ियाती इक़दामात में अक़लीयतों बिलख़सूस मुसलमानों की शमूलीयत को यक़ीनी बनाते हुए मुल्क में तेलंगाना रियासत को एक मॉडल रियासत बनाने में हिस्सा लेना होगा।

वो कल शाम मुमताज़ सहाफ़ीयों के जल्सा एतराफ़ ख़िदमात और तहनियत को महबूब हुसैन जिगर हॉल अहाता रोज़नामा सियासत (आबिड्ज़) में मुख़ातब कर रहे थे। रोज़नामा तेलंगाना इज के ज़ेरे एहतेमाम मुनाक़िदा इस तक़रीब में उर्दू सहाफ़ीयों, अदीबों, शोरा और मोअज़्ज़िज़ीन की बड़ी तादाद शरीक थी।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ने अपने सदारती ख़िताब में कहा कि उर्दू सहाफ़ीयों की क़ौमी और समाजी ख़िदमात नाक़ाबिले फ़रामोश रही हैं और उन ख़िदमात का एतराफ़ हैदराबाद की तहज़ीबी और अख़लाक़ी रवायात का मज़हर और सबूत है। अपने तवील सहाफ़ती सफ़र के बावजूद उर्दू सहाफ़ीयों के साथ ना तो हुकूमत ने इंसाफ़ किया और ना ही उर्दू अवाम ने सहाफ़ीयों की क़दरदानी की।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ने कहा कि उर्दू अख़बार का इजरा करना और इस के बाद उसे चलाना कोई मामूली बात नहीं। उन्हों ने इस मौक़ा पर सहाफ़ती बिरादरी को मश्वरा दिया कि वो अपने मसाइल को हल करने के लिए मुत्तहिदा तौर पर काम करें क्यों कि इन्साफ़ रसानी की लड़ाई तन्हा नहीं लड़ी जा सकती। उन्हों ने तजवीज़ रखी कि सहाफ़ती तन्ज़ीमों को अपना एक फेडरेशन बनाना चाहीए क्यों कि अब तेलंगाना रियासत में उर्दू सहाफ़त की कामयाबी के इमकानात ज़्यादा रौशन दिखाई दे रहे हैं।

उन्हों ने कहा कि इदारा सियासत सिर्फ़ एक अख़बार ही नहीं रहा बल्कि हमारा मक़सद है कि मिल्लत इस्लामीया की तालीमी, समाजी और मआशी मसाइल को हल करने के लिए इमकानात पैदा किए जाएं। उन्हों ने मुसलमानों पर ज़ोर दिया कि वो अपने बच्चों को हिंदुस्तानी मुसल्लह अफ़्वाज में मुलाज़मत करने की तरग़ीब दिलवाएं क्यों कि हिंदुस्तानी बहरीया, एयरफ़ोर्स और दीगर दिफ़ाई शोबों में मुसलमानों की नुमाइंदगी इंतिहाई कम है।

इस सिलसिले में बाअज़ साबिक़ फ़ौजी ओहदेदारों से उन्हों ने राय तलब की थी, इन हालात के पेशे नज़र इदारा सियासत ने तय किया है कि आइन्दा चंद दिनों बाद फ़ौज में भर्ती के लिए मुस्लिम नौजवानों की तरबियत का इंतेज़ाम किया जाएगा। उन्हों ने कहा कि 1964 से ग्रैजूएशन की तकमील के बाद ही उन्हें सहाफ़त से वाबस्ता होने का मौक़ा मिला।