गीता ने जिंदगी के 13 साल पाकिस्तान में इस उम्मीद में गुजार दिए कि एक दिन वो अपने मुल्क हिंदुस्तान लौटकर जरूर जाएगी. गीता महज 11 साल की थी जब वो किसी बात पर अपने वालदैन से नाराज होकर घर से बाहर चली गई. चलते-चलते वो गलती से पाकिस्तान की सरहद में दाखिल हो गई, जहां पर उसकी बात कोई न समझ सका. गीता न सुन सकती है, न बोल सकती है.
पाकिस्तान के पंजाब रेंजर्स ने इस छोटी-सी बच्ची को अकेले देखा और उसे अब्दुल सत्तार एदी फाउंडेशन के हवाले कर दिया. एदी साहब पाकिस्तान का सब से बड़ा और मुताबिर फलाही इदारा चलाते हैं.
इस कहानी के 13 साल बाद तक गीता अपने घर ना जा सकी. आज भी वो एदी सेंटर में रहती है जहां जहां पर खास गीता के लिए एक मंदिर भी बनाया गया है.
सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ पाकिस्तान के सिनेमा में रिलीज हुई एदी साहब के बेटे फैजल एदी ने कहा कि बजरंगी भाईजान की असल कहानी तो उनके एदी सेंटर की गीता की है. एदी सेंटर पिछले कई सालों से गीता के खानदान को तलाश करने की कोशिशों में है मगर सब सिफर. गीता सिर्फ हिंदुस्तान के नक्शे को पहचान पाती है. इस नक्शे को देखकर वो रो पड़ती है, मगर इससे ज्यादा अपने घर के बारे में कुछ नहीं बता पाती.
उसके अलावा वो हिन्दी के कुछ अल्फाज़ लिख सकती है, मगर अब तक इन अल्फाज़ों को कोई समझ नहीं पाया है. उसका नाम ‘गीता” भी एदी साहब की बेगम बिलकिस ने रखा था जब ये छोटी सी बच्ची भटककर पाकिस्तान पहुंच गई थी.
गीता की कहानी दुबारा सामने आने के बाद हिंदुस्तान की वज़ीर ए खारेज़ा सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान में हिंदुस्तानी हाई कमिश्नर टीसीए राघवन को गीता से जाकर मिलने की हिदायत दी.
इससे पहले गीता की कहानी 2012 में पाकिस्तानी मीडिया में शाय हुई थी और पाकिस्तानी अखबारों ने इसको बहुत कवरेज दी थी ताकि शायद मीडिया के जरिए गीता अपने खानदान से मिल सके. उस वक्त भी हिंदुस्तान की हाइ कमिश्नर की तरफ से डेलीगेशन गीता से मिलने आया था.
मगर उसके बाद कुछ न हुआ और गीता को सब भूल गए. उम्मीद है कि इस मरतबा हिंदुस्तानी सिफारतखाना गीता को उसके खानदान से मिलाने में कामयाब हो जाएगा.
गीता एक तरह से किस्मत व नसीब वाली है कि रेंजर्स ने उसे एदी सेंटर पहुंचाया और जेल नहीं. हिंदुस्तान और पाकिस्तान की जेलों में मालूम नहीं कितने बच्चे रहते हैं, और रह चुके हैं, जिन्होंने नादानी में सरहद पार की. इस साल जनवरी में एक पाकिस्तानी बच्चा हिन्दुस्तान के एक जेल से 4 साल बाद रिहा हुआ क्योंकि जब वो 13 साल का था तो उसने गलती से सरहद पार की थी. इसी तरह से लोग समंदर से गिरफ्तार होते हैं जहां सरहद पार करने का अंदाजा भी होना मुश्किल है.
2011 में 9 पाकिस्तानी बच्चे हिन्दुस्तान की जेल से रिहा हुए थे जिन्हें मछली पकडते वक्त सरहद खत्म होने का अंदाजा नहीं था.
पाकिस्तान के जेलों में भी नामालूम कितने मासूम हिन्दुस्तानी होंगे. हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे को इस साल 68 बरस हो जाएंगे. बहुत वक्त गुजर गया.
अब दोनों हुकूमतों को मिलकर एक ज्वाइंट कमीशन बनाना चाहिए जो ऐसे लोगों की पहचान कर सके और उन्हें अपने खानदानों से वापस मिलवा सके.
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सरहदें अपने शहरियों के लिए बहुत जालिम हैं. अब इन सरहदों को और इंसानी जानें नहीं गंवानी चाहिए.
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