गांधीवादी रिवायत के कैलाश सत्यार्थी बचपन बचाओ मुहिम से जु़डे रहे है और अभी तक तकरीबन 80 हजार बच्चों को बाल मजदूरी से आज़ाद करवा चुके हैं। सत्यार्थी लंबे दिनो से बच्चों को बाल मजदूरी से हटाकर उन्हें तालीम की मुहिम से जोडने की मुहिम चलाते रहे हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान के स्वात वादी की मलाला ने सिर्फ 14 साल की उम्र से ही लडकियों की तालीम की ताईद में आवाज उठाई थी, क्योंकि स वक्त स्वात पर तालिबान के कब्जे के बाद सारे स्कूल बंद कर दिए गए थे।
इतना ही नहीं मलाला को आवाज उठाने की कीमत अदा करनी पडी और स्कूल से लौटते वक्त दहशतगर्दो ने उन पर हमला कर दिया। दहशतगर्दों ने मलाला के सिर में गोली मार दी, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए लंदन लाया गया और अब वह लडकियों की तालीम को लेकर पूरे दुनिया का चेहरा बन चुकी हैं। जुमे के रोज़ नार्वे की नोबेल कमेटी के चेयरमैन ने इसका ऐलान किया । कुल 278 पार्टिसिपेंट्स (Participants) की फहरिस्त में से कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसूफजई को फातेह करार दिया गया । कमेटी के मुताबिक इस साल सबसे ज़्यादा पार्टीसिपेंट्स ने इस इनाम के लिए फार्म भरा था। साल 2013 में 259 पार्टीसिपेंट्स ने नामज़दगी किया था।
इस बार के Peace awards को लेकर नोबेल कमेटी ने खासतौर से यह बात कही है कि एक हिन्दू और एक मुस्लिम, एक हिन्दुस्तानी और एक पाकिस्तानी दोनों ही बच्चों की पढाई और उनके हक के लिए बुनियाद परस्त से लड़ कर रहे हैं।
Nobel Peace Awards का ऐलान करने वाली कमेटी ने कैलाश सत्यार्थी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने महात्मा गांधी की रिवायत (परंपरा) को आगे बढाते हुए बच्चों के हुकूक के लिए जंग / जद्दो ज़हद किया है।
आखिरकार करोडों बच्चों की आवाजें सुन ली गईं। सत्यार्थी ने कहा, मैं इस जदीद दौर में दर्द से गुजर रहे लाखों बच्चों की खराब हालत पर काम को मंज़ूरी देने के लिए नोबेल कमेटी का शुक्रगुजार हूं। साल 1954 में 11 जनवरी को जन्मे कैलाश सत्यार्थी बच्चों के हुकूक (Child Rights) के लिए काम करने वाले कारकुन हैं। वह 90 के दहा से ही हिंदुस्तान में Child labor के खिलाफ तहरीक करते आये हैं।
उनकी तंज़ीम बचपन बचाओ तहरीक ने अब तक 80,000 से ज्यादा Child labor को आज़ाद कराया है। मध्य प्रदेश के साकिन कैलाश सत्यार्थी Nobel Peace Awards पाने वाले दूसरे हिंदुस्तानी हैं। इससे पहले मदर टेरेसा को इस अवार्ड से नवाजा जा चुका है।