श्रीनगर।२६मई। हिंदूस्तानी मुस्लमान अपनी मज़हबी शनाख़्त, तहज़ीबी तशख़्ख़ुस के इलावा तमद्दुन की बरक़रारी के अह्द की पाबंदी करें और हिंदूस्तानी सयासी निज़ाम का हिस्सा ना बनते हुए रज़ाए इलाही के लिए तहरीकों से वाबस्ता रहीं। जब तक कोई भी तहरीक सिर्फ़ अल्लाह केलिए चलाई जाती है वो कामयाब क़रार पाती है लेकिन जब इस में सयासी अंसर पैदा हो जाता है तो ख़ुदग़रज़ी के सबब तहरीकें इंतिशार का शिकार होकर बिखर जाती हैं।
मुहतरमा आसीया इंदिराबी सरबराह तंज़ीम दुख़तर इन मिल्लत (कश्मीर ) ने नुमाइंदा सियासत से एक ख़ुसूसी मुलाक़ात के दौरान इन ख़्यालात का इज़हार किया। उन्हों ने मुलाक़ात के दौरान बताया कि हिंदूस्तानी मुस्लमान लादीनी सियासत का हिस्सा बनते हुए अपनी शनाख़्त खोते जा रहे हैं।
उन्हों ने कश्मीर की मिसाल पेश करते हुए कहा कि कश्मीर में जो तहरीकें ललाहीत की बुनियाद पर आज़ादी की मुहिम चला रही थीं उस वक़्त तक हर कोई इन तहरीकों की हिमायत कररहा था लेकिन जब ये तहरीकें जमहूरीयत के नाम पर चलाए जाने वाले ताग़ूती सयासी निज़ाम का हिस्सा बनें तो उन की एहमीयत-ओ-वक़ात में कमी आती गई।
मुहतरमा आसीया इंदिराबी ने बताया कि दुख़तर इन मिल्लत का नज़रिया वाज़िह है कि दुख़तर इन मिल्लत कभी किसी सयासी प्लेटफार्म का हिस्सा नहीं बनेगी। उन्हों ने हिंदूस्तानी क़ानूनसाज़ इदारों को तन्क़ीद का निशाना बनाते हुए कहा कि इन ताग़ूती इदारों में पहुंच कर लोग सैकूलर अज़म का लुबादा ओढ़ लेते हैं जो कि मिल्लत के मुफ़ाद में नहीं है। सरबराह तंज़ीम दुख़तर इन मिल्लत ने बताया कि जब तक मिल्लत-ए-इस्लामीया उमत वाहिदा का तसव्वुर पैदा करते हुए अपनी तर्जीहात को एक नहीं करती उस वक़्त तक उसे फ़तह-ओ-नुसरत हासिल नहीं हो सकती।
उन्हों ने अक़वाम-ए-मुत्तहिदा को इसराईल-ओ-अमरीका की लौंडी क़रार देते हुए कहा कि पूरी दुनिया ताग़ूती साज़िशों का शिकार बनी हुई ही। ऐसे माहौल में मिल्लत-ए-इस्लामीया की ज़िम्मेदारी है कि वो तारीख़ इस्लाम से सबक़ हासिल करते हुए इन साज़िशों के ख़िलाफ़ उम्मत वाहिदा के नज़रिया को तक़वियत पहुंचाई। उन्हों ने बताया कि मुस्लमान की ज़िंदगी जिहाद पर मबनी है और जद्द-ओ-जहद के रास्ता से मुस्लमान पीछे नहीं हट सकती।
उन्हों ने रूस । अफ़्ग़ान जंग के दौरान गुलबुद्दीन हिकमतयार के एक जुमले का हवाला देते हुए कहा कि एक इंटरव्यू के दौरान गुलबुद्दीन हिकमतयार से सवाल किया गया था कि आख़िर वो रूस से कब तक जंग करेंगी?। इस के जवाब में गुलबुद्दीन हिकमतयार ने कहा था कि ये सवाल उन से करने के बजाय रूस से किया जाना चाहीए चूँकि जंग करना तो मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा ही। मुहतरमा आसीया इंदिराबी ने बताया कि इसराईल-ओ-अमरीका ताग़ूती साज़िशों के ज़रीया आलम इस्लाम को तहा तेग़ करने का मंसूबा तैय्यार किए हुए हैं जिस में उन्हें बड़ी हद तक कामयाबी हासिल हो रही है।
उन्हों ने दुख़तर इन मिल्लत के नज़रिया आज़ादी कश्मीर-ओ-इंज़िमाम पाकिस्तान का दिफ़ा करते हुए कहा कि दुख़तर इन मिल्लत ऐन इस्लामी उसोलों के मुताबिक़ ग़ैर मुनक़सिम भारत के ज़रीया मुस्लमानों में इत्तिहाद की मुतमन्नी हैं।जब उम्मत मुस्लिमा में फैल रही दीन बेज़ारी के मुताल्लिक़ सवाल का जवाब देते हुए बताया कि इस दीनी बेज़ारगी का अहम सबब जिहाद फ़ी सबील अल्लाह से फ़रार इख़तियार करने का नतीजा है।
उन्हों ने बताया कि दुख़तर इन मिल्लत का सैकूलर अज़म, सामरा जीत, सरमाया दाराना निज़ाम पर कोई ईक़ान नहीं है चूँ कि हमारा ये एहसास है कि आलिम इस्लाम के मुस्लमानों को 1924-ए-में ख़िलाफ़त के ख़ातमा के साथ क़ौमीयत के नाम पर मुनक़सिम करते हुए बिखेर दिया गया और मुस्लमान मुंतशिर हो गई।
मुहतरमा आसीया इंदिराबी ने पाक ज़ेर-ए-इंतिज़ाम कश्मीर की मौजूदा सूरत-ए-हाल के बावजूद कश्मीर के पाकिस्तान में इंज़िमाम के नताइज के मुताल्लिक़ सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जो हालात पाक ज़ेर-ए-इंतिज़ाम कश्मीर के हैं इसी तरह के हालात से दुनिया का तक़रीबन हर ख़ित्ता दो-चार ही, इसी लिए हम उसे सानवी हैसियत का हामिल समझते हैं, हमारी तर्जीहात सिर्फ और सिर्फ उम्मत को जोड़ना है।
आज़ादी कश्मीर की सूरत में पैदा होने वाली सूरत-ए-हाल और हिंदूस्तानी मुस्लमानों पर इस के असरात के मुताल्लिक़ किए गए सवाल का जवाब देते हुए मुहतरमा आसीया इंदिराबी ने बताया कि अगर दीढ़ करोड़ कश्मीरी मुस्लमान अपनी तहज़ीब-ओ-तशख़्ख़ुस के साथ अपनी बक़ा के लिए जद्द-ओ-जहद कर सकते हैं तो 25करोड़ हिंदूस्तानी मुस्लमानों की तादाद बहुत बड़ी ही, उन्हें दीढ़ करोड़ से ज़्यादा जद्द-ओ-जहद के सामान मयस्सर आ सकते हैं।
उन्हों ने बताया कि दुनिया का उसोल है कि जब तक ताक़त का जवाब ताक़त के ज़रीया नहीं दिया जाता उस वक़्त तक दुनिया आप के वजूद को तस्लीम नहीं करती। मुहतरमा आसीया इंदिराबी ने बताया कि जब जिहाद फ़ी सबील अल्लाह से इन्हिराफ़ का आग़ाज़ होता है तो गु़लामी के अबवाब खुलने लगते हैं और मुस्लिम मुमलकतें फ़िलहाल उन्ही अदवार से गुज़रते हुए गु़लामी का तविक पहने हुए हैं। सरबराह दुख़तर इन मिल्लत ने मुस्लमानों बिलख़सूस नौजवानों को मश्वरा दिया कि वो ग़लबा इस्लाम के लिए हुब्ब दुनिया तर्क करें और उखरवी फ़लाह की फ़िक्र करें ताकि हमें आख़िरत में कामयाबी हासिल होसकी, दुनिया में फ़तह-ओ-कामरानी का हुसूल हमारे लिए सानवी हैसियत का हामिल होना चाहिए।
उन्हों ने बताया कि हिंदूस्तान की जानिब से कश्मीर पर ग़ासिबाना क़बज़ा किया गया है और हिंदूस्तानी अफ़्वाज के ज़रीया हकूमत-ए-हिन्द इस क़ब्ज़ा को बरक़रार रखने की कोशिश कर रही है। उन्हों ने बताया कि कश्मीरी अवाम की राय अगर जानना हो तो हकूमत-ए-हिन्द को सिर्फ एक यौम के लिए सरज़मीन कश्मीर से अपनी अफ़्वाज हटाना चाहीए ताकि हुकूमत को ये पता चल सके कि आख़िर कश्मीरी अवाम क्या चाहते हैं और हक़ीक़त में कश्मीर किस का है। वाज़िह रहे कि मुहतरमा आसीया इंदिराबी 1981-ए-में क़ायम की गई तंज़ीम दुख़तर इन मिल्लत की बानी-ओ-सरबराह हैं और उन्हें कई मर्तबा मुख़्तलिफ़ इल्ज़ामात के तहत हिरासत में भी लिया गया था और मुहतरमा आसीया इंदिराबी ने शोपियाँ दोहरे क़त्ल-ओ-इस्मत रेज़ि वाक़िया के बाद बड़े पैमाने पर एहतिजाज करते हुए उसे एक तहरीक की शक्ल दी थी।